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राजधानी दिल्ली के बाद अब झारखण्ड के अधिकतर शहर प्रदूषण के घेरे में

प्रदूषण की मार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रहने वालों के लिए ही परेशानी का सबब नहीं है, आमतौर पर पर्यावरण के दृष्टिकोण से बेहतर राज्य झारखंड भी इसकी चपेट में आ गया है.

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो: पीटीआई) सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो: पीटीआई)
विवेक पाठक/धरमबीर सिन्हा
  • रांची,
  • 08 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 6:06 PM IST

कभी मिनी शिलॉन्ग के नाम से जानी जाने वाली झारखण्ड की राजधानी रांची अब प्रदूषण के लपेटे में है. देश भर में बढ़ रहे प्रदूषण के बीच रांची की हवा में भी जहर घुलने लगा है. दीपावली के दूसरे दिन आज रांची में पीएम 2.5 की मात्रा 170 के पास रिकॉर्ड की गई. जिसे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया जा रहा है.

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वहीं झारखंड के दूसरे जिलों में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति देखने को मिली. जहां रामगढ़ में पीएम 2.5 की मात्रा 163, बोकारो में 160, धनबाद में 162, जोड़ापोखर में 253, जबकि जमशेदपुर में 162 रिकॉर्ड की गई. हाल के दिनों में विकास के नाम पर हुई पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और सड़कों पर बढ़े बेइंतहा ट्रैफिक की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है. रही-सही कसर प्रदुषण रोकने में सरकारी विभागों की कोताही ने पूरी कर दी. स्वास्थय विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो हाल के दिनों में सांस से संबंधित बीमारी के मरीजों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है. इनमें बच्चों और बूढ़ों की संख्या काफी ज्यादा है.

कभी स्वास्थ्य लाभ के लिए रांची आदर्श था

रांची की आबोहवा महज कुछ दशकों पहले इतनी अच्छी थी कि दूर-दराज से लोग स्वास्थ्य-लाभ के बाद रांची आते थे. जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यहां के वातावरण को जीवनदायिनी माना जाता था. लेकिन बीते कुछ दशकों से विकास के नाम होनेवाली पेड़ों की कटाई और कमजोर प्रदूषण मानकों ने यहां की हवा में जहर घोलने का काम किया.

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वहीं इसके लिए सरकार की योजनाएं भी जिम्मेदार हैं, जिसमें एक तो प्रदूषण को रोकने के लिए किये जानेवाले उपायों का समावेश नहीं होता, अगर किन्हीं योजनाओं में इसका प्रावधान होता भी तो यह महज कागजों में ही सिमटी रहती थी. जिसकी वजह से आम-नागरिक को अब सांस लेने के लाले पड़ रहे हैं.

अभी से चेते नहीं तो स्थिति भयावह हो सकती है

वर्तमान स्थिति को देखते हुए अगर सरकार नहीं चेती तो आनेवाले दिनों में यहां की स्थिति दिल्ली और यूपी के शहरों की मानिंद बनते देर नहीं लगेगी. इसकी वजह वाहनों के साथ साथ यहां मौजूद खुली खदानें हैं. दरअसल हाल के दिनों में लोगों का रुझान कार और SUV जैसे वाहनों की तरफ काफी बढ़ा है. जिससे सडकों पर ट्रैफिक का दबाब बढ़ गया है. लेकिन खस्ताहाल सड़कों की वजह से वायु प्रदूषण काफी बढ़ा है. वहीं वाहनों के प्रदूषण मानकों की जांच भी सही से नहीं होती. जिसकी वजह से वातावरण में जहरीली गैसों की मात्रा में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसे में आम लोगों को भी प्राइवेट वाहन की बजाय शेयर वाहनों को तरजीह देनी होगी. लिहाजा सरकार की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वो प्रदूषण मानकों को बिना किसी देरी के दुरुस्त करे और साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों और इकाइयों से सख्ती से निपटा जाए. 

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