
झारखंड भी अब उत्तर प्रदेश की राह पर चल निकला है. दरअसल यूपी के मुख्यमंत्री जो भी कदम राज्यहित में उठा रहे हैं कमोबेश वही कुछ झारखंड में भी देखने को मिल रहा है. पहले यूपी की तर्ज पर एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन, फिर उसके बाद सरकारी दफ्तरों में सफाई और पान या गुटखा खाने पर पाबंदी लगाई गई.
अवैध बूचड़खाने बंद करने का निर्देश
अब इस सिलसिले में ताजी कड़ी है वो फरमान जिसमें कहा गया है कि राज्य में चलने वाले अवैध बूचड़खानों को इनके मालिक 72 घंटे के अंदर खुद-ब-खुद बंद करें या सरकारी कार्रवाई झेलने के लिए तैयार हो जाएं. वहीं विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है की झारखंड सरकार आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रही है.
72 घंटे का अल्टीमेटम
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास पर योगी इफेक्ट दिखने लगा है. इसकी ताजा मिसाल है, वो आदेश जिसमें सरकार ने राज्य में अवैध रूप से चल रहे सभी बूचड़खानों को तीन दिन के अंदर बंद कराने का आदेश दिया है. इस बाबत राज्य के गृह सचिव ने सभी जिले के उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर अवैध बूचड़खानों को नोटिस जारी कर उन्हें 72 घंटे का अल्टीमेटम देने को कहा है.
आदेश से परेशान हैं दुकानदार
ऐसा नहीं करने पर पुलिस स्टेशनों के जरिए इन्हें बंद कराने और कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. सरकार के जारी निर्देश में अवैध बूचड़खानों को बंद कराने की मॉनिटरिंग के लिए नोडल अफसर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है. साथ ही इस बात की जांच करने को भी कहा गया है कि वैध रूप से चल रहे बूचड़खाने पशुपालन और स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम के नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं. हालांकि दुकानदार सरकार के इस आदेश से परेशान हैं उन्हें अब अपने परिवार वालों की फिक्र सता रही है.
अवैध रूप से हैं अधिकतर बूचड़खाने
झारखंड में फिलहाल 245 से अधिक बूचड़खाने संचालित हैं. राज्य सरकार ने झारखंड हाईकोर्ट में दाखिल एक जवाब में यह माना है कि अधिकतर बूचड़खाने अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं. नगर विकास मंत्री के मुताबिक यह राज्य सरकार का निर्णय है, जिसका दृढ़ता से पालन किया जाएगा. वहीं विपक्ष इसे सरकार का तुगलकी फरमान बता रही है. गौरतलब है कि झारखंड में हजारों दुकानें रोड पर खुले आम मांस की बिक्री कर रही हैं. हालांकि कुछ दुकानों को नगर निगम से लाइसेंस भी दिया गया है. इसके एवज में निगम सालाना दो हजार रुपये टैक्स लेती है, लेकिन ये दुकानदार भी NGT के गाइडलाइन का अनुपालन नहीं करते और सड़क पर ही गंदगी फैलाते हैं.