
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का असर उन भारतीयों पर सबसे ज्यादा पड़ा है जो बॉर्डर इलाकों में फंसकर रह गए हैं. मिशन गंगा के तहत अब सभी का रेस्क्यू जरूर शुरू हुआ है, लेकिन स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है. जिन छात्रों की वतन वापसी हो भी रही है, उनकी कहानी रोंगटे खड़े करने वाली है. किसी को पैदल ही रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचना पड़ा, किसी को बर्फबारी के बीच खुले आसमान में समय बिताना पड़ा तो किसी के पास खाना ही खत्म हो गया.
एक मार्च को यूक्रेन से आयुष वापस अपने देश आ गया था. वो मूल रूप से मेदिनीनगर के हमीदगंज का रहने वाला है. उसने यूक्रेन में फंसे भारतीयों की पूरी आपबीती विस्तार से बताई है. उसके मुताबिक वहां पर खाने का संकट है, जान का खतरा है और वतन वापसी काफी मुश्किल.
आयुष राज मेडिकल की पढ़ाई करने तीन माह पहले यूक्रेन गया हुआ था. वह ल्वानो फ्रेंकिवस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रथम वर्ष का छात्र है. आयुष ने बताया है कि यूक्रेन से रोमानिया बार्डर पार करने में उसे चार दिन लगे. इस बीच 36 घंटे तक उसने बिना छत के बर्फ़बारी में अपना समय गुजारा.
वहां पर हुए घटनाक्रम को लेकर उसने जानकारी दी कि गत 24 फरवरी को ल्वानो फ्रेंकिवस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल की छत पर बमबारी हुई. उसी समय उसके साथ मौजूद 25 छात्रों के दल ने वहां से निकलने का निर्णय लिया. 25 को निकल नहीं सके, लेकिन 26 को एक बस बुक कर रोमानिया बार्डर की ओर निकल गए.
आयुष के मुताबिक इंडियन एम्बेसी से 27 को निकलने की गाइडलाइन जारी की गयी थी. अगर गाइडलाइन को फॉलो करता तो फंस कर रह जाता. उसने बताया कि जिस जगह पर वह रह रहा है, वहां 27 को कब्जा हो गया था. 26 की शाम 5 बजे रोमानिया बार्डर्र से 10 किलोमीटर पहले ही बस ने उन्हें उतार दिया. शरीर को जमा देने वाली कड़ाके की ठंड में छात्रों को पैदल ही रोमानिया बॉर्डर पहुंचना पड़ा. बार्डर पर अफरा तफरी की स्थिति थी. बार्डर पार करने के लिए गेट लिमिट समय के लिए खुलता था. 26 की रात उसे खुले आसमान के नीचे बार्डर एरिया में गुजारनी पड़ी.
लेकिन उनका संघर्ष वहीं पर खत्म नहीं हुआ. आयुष की माने तो इस मुश्किल समय में भी भारतीय छात्रों के साथ भेदभाव किया गया. आयुष ने कहा कि 27 फरवरी को बार्डर पार करने की कोशिश नाकाम हुई. भारतीय छात्र-छात्राओं को बार्डर पार कराने में उपेक्षा की गयी. पहले यूरोपीय छात्र-छात्राओं को मौका दिया गया. इसके बाद लड़कियों को पार कराने में तरजीह दी गयी. 28 फरवरी को उसने बार्डर पार किया.
आयुष ने कहा कि यूक्रेन छोड़ने से लेकर रोमानिया बार्डर पार करने के दौरान खाने पीने का भारी संकट रहा. निकलने से पहले कुछ ब्याल अंडा और फल अपने साथ रख लिया था. उसे ही थोड़ा थोड़ा करके पूरे समय तक खाता रहा. 28 को रोमानिया में रात गुजारी और अगले दिन 1 मार्च को वहां से दिल्ली के लिए फ्लाइट पकड़ा. दिल्ली से सुबह 6.30 की फ्लाइट से रांची सुबह 8.30 बजे आया और फिर बस से मेदिनीनगर पहुंचा.
आयुष के वतन वापसी से परिवार में खुशी का माहौल है. माता-पिता का कहना है कि आयुष की वतन वापसी में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है. वैसे जो हाल आयुष का रहा है, यूपी के प्रशांत ने भी वैसी ही परिस्थिति का सामना किया. वे भी कुछ दिन पहले ही यूक्रेन से भारत वापस आए हैं. उनका कहना है कि वहां का दर्द किसी भी तरह से बयां नहीं किया जा सकता. बम और गोलों के बीच लगता था कि कभी घर नहीं जा पाऊंगा लेकिन मोदी सरकार हम सब को बचा लाई.
प्रशांत के पिता भी अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थे. वे पेशे से पीएसी के जवान हैं. उनका कहना है कि यूक्रेन जाने में मैं मजबूर था लेकिन अगर बेटा देश में कहीं फंसा होता तो वर्दी पहनकर कप्तान की अनुमति लेकर बेटे को लेने पहुंच जाता.
भारत के मिशन गंगा की बात करें तो अब एयरफोर्स द्वारा बड़े स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है. आज ही एयरफोर्स का तीसरा C-17 एयरक्राफ्ट 208 भारतीयों को लेकर हिंडल एयरबेस पर लैंड कर गया है. इससे पहले यूक्रेन में फंसे भारतीयों छात्रों को लेकर मुंबई भी एक फ्लाइट लैंड कर चुकी है. उस फ्लाइट से 183 भारतीय नागरिकों वापस लाया गया.