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Exit Poll: शिवराज की सरकार बची, लेकिन सिंधिया के गढ़ में कमलनाथ की सेंध

मध्य प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ज्यादातर सीटों पर सीधी लड़ाई है और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे, लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक शिवराज सिंह चौहान की सरकार पूरी तरह से सेफ है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को गहरा झटका लगता नजर आ रहा है. 

शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 07 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 7:11 PM IST
  • एमपी की 28 सीटों पर 355 प्रत्याशी मैदान में थे
  • शिवराज सरकार बची, पर सिंधिया के दुर्ग में सेंध
  • कांग्रेस दर्जनभर सीटें जीतने की संभावना बनी है

मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में 355 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे थे. कांग्रेस और बीजेपी के बीच ज्यादातर सीटों पर सीधी लड़ाई है और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे, लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक शिवराज सिंह चौहान की सरकार पूरी तरह से सेफ है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को गहरा झटका लगता नजर आ रहा है. 

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इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक एमपी की 28 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 16 से 18 सीटें मिलती नजर आ रही हैं जबकि कांग्रेस को 10 से 12 सीटें मिलने का अनुमान है. इस तरह से शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार को तो बचा ले जाएंगे, लेकिन कमलनाथ ने जिस तरह से दर्जन भर सीटें जीतने की स्थिति में है. इस तरह से सिंधिया समर्थक जो विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे, उन्हें बड़ा झटका लग सकता है. 

एमपी का एग्जिट पोल

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान भले ही पहली पसंद हों, लेकिन कमलनाथ भी उनसे ज्यादा पीछे नहीं हैं. इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक एमपी के मुख्यमंत्री पद के लिए 46 फीसदी लोग की पसंद शिवराज सिंह चौहान हैं जबकि 43 फीसदी लोगों की पसंद कमलनाथ हैं. 

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बता दें कि एमपी की 29 विधानसभा सीटें रिक्त हैं, जिनमें से 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. उपचुनाव कांग्रेस के 25 विधायकों के इस्तीफा देने और 3 विधायकों के निधन से रिक्त हुई सीटों पर हो रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने कांग्रेस के आए सभी 25 विधायकों के टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है, जिनमें से शिवराज सरकार के 14 मंत्री भी हैं. 

शिवराज और कमलनाथ

एमपी की कुल 230 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 29 सीटें रिक्त हैं. इनमें से 28 सीटों पर चुनाव हो रहा हैं, जिसके लिहाज से कुल 229 सीटों के आधार पर बहुमत का आंकड़ा 115 चाहिए. ऐसे में बीजेपी को बहुमत का नंबर जुटाने के लिए महज आठ सीटें जीतने की जरूरत है जबकि कांग्रेस को सभी 28 सीटें जीतनी होंगी. मौजूदा समय में बीजेपी के 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के 87, चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा का विधायक है. 

28 सीटों पर उपचुनाव  

मध्य प्रदेश की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें से ग्वालियर-चंबल इलाके की 16 सीटें हैं. इनमें मुरैना, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, डबरा, बमोरी, अशोक नगर, अम्बाह, पोहारी,भांडेर, सुमावली, करेरा, मुंगावली, गोहद, दिमनी और जौरा सीट शामिल है. वहीं, मालवा-निमाड़ क्षेत्र की सुवासरा, मान्धाता, सांवेरस आगर, बदनावर, हाटपिपल्या और नेपानगर सीट है. इसके अलावा सांची, मलहरा, अनूपपुर, ब्यावरा और सुरखी सीट है. इसमें से जौरा, आगर और ब्यावरा सीट के 3 विधायकों के निधन के चलते उपचुनाव हो रहे हैं. 

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शिवराज के मंत्रियों की साख दांव पर
एमपी उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. इसमें से 11 पर तो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा भी दांव पर है, क्योंकि यह उन्हीं के समर्थक माने जाते हैं और सिंधिया के कहने पर ही सभी ने दल बदल किया था. इनमें तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रभु राम चौधरी, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, गिर्राज दंडोतिया, ओपीएस भदौरिया, सुरेश धाकड़, बृजेंद्र सिंह यादव, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, एदल सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और हरदीप सिंह डंग पर सबकी नजर है. 

सिंधिया के सामने खुद को साबित करने की चुनौती
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह गणित थोड़ा अलग है. गुना से चार बार लोकसभा सांसद रहे सिंधिया चाहेंगे कि उनके गुट के सभी 22 विधायक, जिन्होंने उनके लिए इस्तीफा दिया था, फिर से जीतकर विधानसभा पहुंचे. सिंधिया के लिए यह उप चुनाव उनके इलाके में उनके राजनीतिक कद को फिर से परिभाषित और पुनर्स्थापित करेगा, क्योंकि 22 में से 16 सीटें ग्वालिर और चंबल इलाके की हैं, जहां सिंधिया परिवार का दबदबा रहा है. सिंधिया को अपनी नई पार्टी बीजेपी (और लोगों) के सामने खुद को साबित करने की जरूरत में उनकी चुनौती सिर्फ कांग्रेस नहीं है, बसपा भी इस उपचुनाव में हर सीट पर चुनाव लड़ रही है. 

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