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मध्य प्रदेश चुनाव: चाचौड़ा सीट से कांग्रेस के लक्ष्‍मण स‍िंह जीते

चाचौड़ा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) प्रत्याशी ममता मीना और कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह के बीच मुकाबला था ज‍िसे कांग्रेस नेता द‍िग्‍व‍िजय स‍िंह के भाई लक्ष्‍मण स‍िंह ने 9797 मतों से जीता. अभी इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और ममता मीना यहां की विधायक हैं.

बीजेपी और कांग्रेस (फाइल फोटो) बीजेपी और कांग्रेस (फाइल फोटो)
देवांग दुबे गौतम
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 10:53 PM IST

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 28 नवंबर को डाले गए वोटों की आज गिनती हुई. चाचौड़ा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) प्रत्याशी ममता मीना और कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह के बीच मुकाबला था ज‍िसे कांग्रेस नेता द‍िग्‍व‍िजय स‍िंह के भाई लक्ष्‍मण स‍िंह ने 9797 मतों से जीता. अभी इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और ममता मीना यहां की विधायक हैं.

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2013 में विधानसभा की क्या थी तस्वीर

मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 35 सीट अनुसूचित जाति जबकि 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 148  गैर-आरक्षित सीटें हैं. 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 165 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाई थी, जबकि कांग्रेस को 58 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 4 जबकि 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.

2008 और 2013 में क्या थे इस सीट पर नतीजे

2013 के चुनाव में ममता मीना को 82779 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के शिवनारायण मीना 47878 वोट के साथ दूसरे स्थान पर थे. 2008 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के शिवनारायण मीना को जीत हासिल हुई थी. उनको 34063 वोट मिले थे. वहीं बीजेपी की ममता मीना 26041 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर थीं.

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वोटिंग में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी

चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार मध्य प्रदेश में 75.05 फीसदी मतदान हुआ. जबकि 2013 में 72.07 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. इस बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले करीब 4 फीसदी बढ़कर 74.03 प्रतिशत रहा. 2013 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 70.11 रहा था.

इसके पहले कैसा रहा है वोटिंग का प्रतिशत

1990 में स्व. सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में बीजेपी मैदान में उतरी और 4.36 फीसदी वोट बढ़ गए. तत्कालीन कांग्रेस की सरकार को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 1993 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव में उतरी तो 6.03 प्रतिशत मतदान बढ़ा और बीजेपी की पटवा सरकार हार गई थी.

वहीं, 1998 में वोटिंग प्रतिशत 60.22 रहा था जो 1993 के बराबर ही था. उस वक्त दिग्विजय सिंह की सरकार बनी. लेकिन 2003 में उमा के नेतृत्व में बीजेपी सामने आई और दिग्विजय सिंह की 10 साल की सरकार सत्ता से बाहर हो गई. उस वक्त भी 7.03 प्रतिशत वोट बढ़े थे.

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