
मध्य प्रदेश में 15 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस जीत के लिए पूरा जोर लगा रही है. राज्य की शिवराज सरकार को हराने के लिए पार्टी इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस ने अपने दो दिग्गज नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी दे रखी है. कमलनाथ जहां मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं तो वहीं सिंधिया राज्य में कांग्रेस के चुनाव प्रभारी हैं.
कमलनाथ की गिनती देश के दिग्गज राजनेताओं में होती है. वह भले ही एक बार भी राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हों, लेकिन मध्य प्रदेश ने देश को जितने भी नामी राजनेता दिए हैं उनमें से एक कमलनाथ भी हैं. माना जा रहा है कांग्रेस इस बार अगर सत्ता पर काबिज होती है तो कमलनाथ या सिंधिया में से ही एक मुख्यमंत्री बनेगा.
18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ की स्कूली पढ़ाई मशहूर दून स्कूल से हुई. दून स्कूल में उनकी जान पहचान कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे संजय गांधी से हुई. दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज से बी.कॉम में स्नातक किया. 27 जनवरी 1973 को कमलनाथ अलका नाथ के साथ शादी के बंधन में बंधे. कमलनाथ के दो बेटे हैं. उनका बड़ा बेटा नकुलनाथ राजनीति में सक्रिय है.
34 साल की उम्र में जीता पहला चुनाव
कमलनाथ 9 बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. वह साल 1980 में 34 साल की उम्र में छिंदवाड़ा से पहली बार चुनाव जीते जो अब तक जारी है. कमलनाथ 1985, 1989, 1991 में लगातार चुनाव जीते. 1991 से 1995 तक उन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में पर्यावरण मंत्रालय संभाला. वहीं 1995 से 1996 तक वे कपड़ा मंत्री रहे.
1998 और 1999 के चुनाव में भी कमलनाथ को जीत मिली. लगातार जीत हासिल करने से कमलनाथ का कांग्रेस में कद बढ़ता गया और 2001 में उन्हें महासचिव बनाया गया. वह 2004 तक पार्टी के महासचिव रहे. छिंदवाड़ा में तो जीत का दूसरा नाम कमलनाथ हो गए और 2004 में उन्होंने एक बार फिर जीत हासिल की. यह लगातार उनकी 7वीं जीत थी. गांधी परिवार का सबसे करीबी होने का ईनाम भी उनको मिलता रहा और इस बार मनमोहन सिंह की सरकार में वे फिर मंत्री बने और इस बार उन्हें वाणिज्य मंत्रालय मिला.
उन्होंने यूपीए-1 की सरकार में पूरे 5 साल तक यह अहम मंत्रालय संभाला. इसके बाद 2009 में चुनाव हुआ और एक बार फिर कांग्रेस का यह दिग्गज नेता लोकसभा के लिए चुना गया. छिंदवाड़ा में कांग्रेस का यह 'कमल' लगातार खिलता गया और इस बार की मनमोहन सिंह की सरकार में इस दिग्गज नेता को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय मिला. साल 2012 में कमलनाथ संसदीय कार्यमंत्री बने.
मध्य प्रदेश में चुनाव के लिए मिली अहम जिम्मेदारी
कमलनाथ की गिनती कांग्रेस के उन नेताओं में होती है जो संकट के समय में भी पार्टी के साथ हमेशा रहे. चाहे वो राजीव गांधी का निधन हो, 1996 से लेकर 2004 तक जिस संकट से कांग्रेस गुजर रही थी, इस दौरान भी वह पार्टी के साथ रहे वो भी तब जब शरद पवार जैसे दिग्गज नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था. 26 अप्रैल 2018 को वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने. उन्हें अरुण यादव की जगह अध्यक्ष बनाया गया.
राजनीति में कैसे आए कमलनाथ
कानपुर में जन्मे, पश्चिम बंगाल में की पढ़ाई और ऐसा क्या हुआ कि कमलनाथ को राजनीति मध्य प्रदेश से करनी पड़ी. दरअसल देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार से आने वाले संजय गांधी की दोस्ती दून स्कूल में पश्चिम बंगाल से आने वाले कमलनाथ से हुई. दून स्कूल से शुरू हुई ये दोस्ती धीरे-धीरे पारिवारिक होती गई. दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद कमलनाथ कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज पहुंचे. हालांकि शहर तो बदल गया लेकिन दोनों की दोस्ती ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाई.
कमलनाथ पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के दौर से ही गांधी परिवार के करीबी रहे हैं. कमलनाथ अपना बिजनेस बढ़ाने चाहते थे. ऐसे में एक बार फिर दून स्कूल के ये दोनों दोस्त फिर करीब आ गए. कहा जाता है इमरजेंसी के दौर में कमलनाथ की कंपनी जब संकट में चल रही थी तो उसको इससे निकालने में संजय गांधी का अहम रोल रहा.
संजय गांधी की छवि एक तेज तर्रार नेता के तौर पर होती थी. कमलनाथ इंदिरा गांधी के इस छोटे बेटे के साथ हर वक्त रहते थे. बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में आने की इच्छा नहीं थी. ऐसे में संजय गांधी को जरूरत थी एक साथ की और वे थे कमलनाथ. 1975 में इमरजेंसी के बाद से कांग्रेस खराब दौर से गुजर रही थी. इस दौर में संजय गांधी की असमय मौत हो गई थी, इंदिरा गांधी की भी उम्र अब साथ नहीं दे रही थी. कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई. कमलनाथ गांधी परिवार के करीब आ ही चुके थे, वे लगातार मेहनत भी कर रहे थे.वह लगातार पार्टी के साथ खड़े हुए थे. इसका ईनाम उन्हें इंदिरा गांधी ने दिया जब उन्हें छिंदवाड़ा सीट से टिकट दिया और राजनीति में उतार दिया.
बस फिर क्या इसके बाद छिंदवाड़ा कमलनाथ का हो गया और कमलनाथ छिंदवाड़ा के. वे तब से लगातार इस सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं. सिर्फ एक बार उनको इस सीट पर हार मिली है. यह इलाका कमलनाथ का गढ़ बन चुका है. वह इस सीट पर तब भी जीते जब 2014 में कांग्रेस ने अब तक का अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया. छिंदवाड़ा के वोटर्स ने कमलनाथ को सिर्फ एक बार निराश किया है जब 1997 में उन्हें पूर्व सीएम सुंदर लाल पटवा के हाथों हार मिली थी. 1996 में कमलनाथ की जगह उनकी पत्नी चुनाव लड़ी थीं और जीत मिली थी.