
मध्य प्रदेश में मंदसौर के किसान एक बार फिर सरकार के खिलाफ होते दिख रहे हैं. इस बार प्याज और लहसुन की बंपर पैदावार के बाद मंडियों के बाहर किसान कई- कई दिन तक उपज बेचने का इंतजार कर रहे हैं, तो दूसरी ओर प्याज और लहसुन के भाव में गिरावट से किसान घाटे में भी जा रहे हैं.
पशुपतिनाथ मंदिर और अफीम की खेती के लिए मशहूर मध्य प्रदेश का मंदसौर उस वक्त अचानक दुनिया भर में सुर्खियां बन गया था, जब किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत हो गई थी और 6 जून, 2017 की तारीख मंदसौर के इतिहास में एक काला धब्बा बन गई.
उस दिन मध्य प्रदेश के मालवा इलाके में बसा मंदसौर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए एक राजनीतिक प्रयोगशाला बन गया और इसके केंद्र में था 17 साल का युवक अभिषेक पाटीदार. अभिषेक किसान आंदोलन के वक्त पुलिस फायरिंग में मरने वाला पहला शख्स था, लेकिन हादसे के डेढ़ साल बाद भी अभिषेक की मां को मलाल है कि जिन मांगों को लेकर आंदोलन हुआ था, वो तो जस की तस है. अभिषेक की मां अलका पाटीदार बताती हैं कि किसान आंदोलन में कर्जमाफी और फसल का सही दाम मुख्य मांग थी, लेकिन अभी तक दोनों मांगों पर सरकार से सिवाय आश्वासन कुछ नहीं मिला.
'भावांतर' का भंवर
किसान आंदोलन से उठे गुस्से को शांत करने के मकसद से शिवराज सरकार ने भावांतर योजना शुरू की जिसमें उपज की कीमत से ऊपर सरकार अपनी तरफ से थोड़ी और राशि देती है ताकि किसान को मंडी में मिलने वाले भाव से ज्यादा कीमत मिल जाए. करीब 70 फीसदी किसान आबादी वाले मंदसौर में किसानों की नाराजगी सरकार को इसलिए भी भारी पड़ सकती है क्योंकि जिन किसानों को भावांतर का मरहम शिवराज सरकार ने दिया था, उस भावांतर के भंवर में किसान फंसता दिख रहा है. कई किसानों का कहना है कि भावांतर से पहले उनकी उपज के उन्हें अच्छे दाम मिलते थे, लेकिन भावांतर के बाद उपज के दाम मंडी में इतने नीचे जा चुके हैं कि राशि जुड़ने के बाद भी किसान घाटे में ही हैं.
शिवराज सरकार से नाराज किसान
फिलहाल मंदसौर जिले में 4 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें 3 पर बीजेपी का कब्जा है. लेकिन उपज की सही कीमत न मिलने पर भी किसान सरकार से नाराज हैं. मंदसौर और उसके आसपास प्याज और लहसुन की बंपर पैदावार हुई है और उसके चलते मंदसौर कृषि उपज मंडी के बाहर कई टन प्याज और लहसुन लादे ट्रैक्टर-ट्रालियों की लंबी कतार लग गई है. मंडी के अंदर कई टन प्याज और लहसुन जमीन पर बिखरे पड़े दिखे. मंदसौर में इतना प्याज आ गया है कि अब किसानों को 50 पैसे प्रति किलो के भाव से प्याज बेचना पड़ रहा है.
एक किसान श्याम पाटीदार ने बताया की उसने 20 नवंबर को ही 50 पैसे प्रति किलो की दर से प्याज बेचा और हर एक किलो पर साढ़े पांच रुपए का घाटा उठाया. सिर्फ प्याज ही नहीं बल्कि लहसुन की गिरती कीमतों ने भी किसानों के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है. किसान 3-4 दिन से ज्यादा लहसुन रख नहीं सकता, इसलिए कम कीमत मिलने पर भी मजबूरी में लहसुन बेचने को मजबूर है.
घाटे में किसान
मंदसौर की मंडी में मध्य प्रदेश के आष्टा, सीहोर, भोपाल और उज्जैन जिले के अलावा राजस्थान के बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ से लहसुन आता है जबकि नीमच और राजस्थान से प्याज की आवक होती है. एक किलो प्याज उगाने में 5-6 रुपए का खर्च आता है, लेकिन मंदसौर मंडी में प्याज 50 पैसे प्रति किलो की दर से बिक रहा है. यानी हर एक किलो पर किसान को 4.50 रुपए से लेकर 5 रुपए तक का घाटा हो रहा है.
दूसरी ओर, एक क्विंटल लहसुन उगाने में 3000 रुपए का खर्च है, लेकिन मंदसौर मंडी में लहसुन 700 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बिक रहा है. यानी हर एक क्विंटल लहसुन पर किसान 2300 रुपए के घाटे में है. बीते एक सप्ताह में लगभग 1 लाख 20 हजार बोरी प्याज और लगभग इतनी ही बोरी लहसुन मंदसौर मंडी में आ चुका है.
आरोपियों को सजा देने की मांग
मालवा के एक छोर पर बसे मंदसौर में पाटीदारों का वोटबैंक बहुत अहम माना जाता है. किसान आंदोलन में सबसे सक्रिय भूमिका निभाने वाले किसान नेता अमृतराम पाटीदार बताते हैं कि मंदसौर में 16 फीसदी पाटीदार हैं, जो पूरी तरह से सरकार बदलने का मन बना चुके हैं. अमृतराम पाटीदार के मुताबिक, किसान इस बात से नाराज हैं कि न तो किसान आंदोलन के बाद किसानों का कर्ज माफ हुआ और न ही गोलीकांड के आरोपियों को सजा हुई.
नेताओं के अपने तर्क
स्थानीय विधायक और बीजेपी प्रत्याशी यशपाल सिंह सिसोदिया ने भावांतर के भुगतान में देरी और फसल के कम दाम का दोष कांग्रेस पर डाल दिया. उन्होंने कहा कि भावांतर को लेकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत की है, इसलिए पैसा नहीं दे सकते. यशपाल ने बताया कि सरकार ने लहसुन और प्याज पर 800 और 400 रुपए की अतिरिक्त राशि का इंतजाम किया है और किसान को इससे राहत मिली है. वहीं, यहां के कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र नाहटा कहते हैं कि बीजेपी से किसान नाराज हैं. नाहटा ने बताया कि कांग्रेस प्याज और लहसुन को एमएसपी के दायरे में लाने का वादा कर चुकी है, लिहाजा किसान उसके साथ हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो बीजेपी का 'गढ़' कहे जाने वाले मालवा में यदि मंदसौर के किसानों का गुस्सा फैला तो बीजेपी के लिए 15 साल की सत्ता हाथ से जाने के आसार बन सकते हैं.