
मध्य प्रदेश तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए मतगणना शुरू हो गई है. उपचुनाव नतीजे ऐसे समय में आ रहे हैं, जब सत्ताधारी बीजेपी ने पड़ोसी राज्य गुजरात, उत्तराखंड और कर्नाटक में अपने मुख्यमंत्रियों को बदल दिया है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदलने की चर्चाएं तेज हैं. ऐसे में उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए भले ही कोई खास असर न रखते हो, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं. इसीलिए उन्होंने उपचुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी है.
एमपी में चार सीटों पर उपचुनाव
उपचुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है और दोनों ही पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है. सूबे की जोबट विधानसभा और पृथ्वीपुर विधानसभा पर कांग्रेस का कब्जा था जबकि रैगाव सीट पर बीजेपी का विधायक था. वहीं, बुरहानपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी के पास थी. ऐसे में कांग्रेस अपनी दोनों सीटें बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है जबकि बीजेपी क्लीन स्वीप के जुगत में है.
दिलचस्प बात ये है कि जोबट और पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने अपनी पार्टी के किसी व्यक्ति के बजाय विपक्ष से दलबदलुओं पर दांव लगाया है. पृथ्वीपुर सीट पर बीजेपी के शिशुपाल सिंह यादव और कांग्रेस के नितेंद्र सिंह राठौर के बीच मुकाबला है तो जोबट सीट पर बीजेपी सुलोचना रावत और कांग्रेस महेश पटेल आमने-सामने हैं. रैगांव सीट पर बीजेपी की प्रतिमा बागरी और कांग्रेस की कल्पना वर्मा के बीच टक्कर है.
वहीं, बुरहानपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने सांसद नंद किशोर चौहान के निधन के बाद उनके बेटे को टिकिट देने के बजाय ज्ञानेश्वर पाटील को उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के इंकार करने के बाद राजनारायण सिंह पुरनी पर भरोसा जाताया है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के बीच उपचुनाव जीतने की चुनौती है.
शिवराज के लिए क्यों अहम
एमपी का उपचुनाव सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए भी बेहद अहम हैं. हाल ही में बीजेपी ने अपने तीन राज्यों में सीएम बदले हैं. शिवराज सिंह चौहान भी डेढ़ दशक से अधिक समय से सीएम हैं. अगर परिणाम प्रतिकूल आए तो उनके सामने नई चुनौती होगी. इसीलिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एक महीने के अंदर लगभग 60 बैठकें, 40 छोटी बड़ी जनसभाएं की हैं और उन्होंने 20 रैलियों को संबोधित किया है. इसके अलावा वो पांच बार ग्रामीणों के बीच जाकर उनके सुख-दुख में शामिल हुए हैं.
सूबे में उपचुनाव की सबसे खास है और वो यह कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उपचुनाव की चार सीटों पर बीजेपी को जीत दिलाकर अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और अपने प्रदेश के अन्य बीजेपी नेताओं को अपना लोहा मनवाना चाहते हैं. ऐसे में शिवराज खुद चुनावी प्रचार अपने हाथों में ले रखी थी और जीत सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सीएम के अलावा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर और केंद्रीय मंत्री सिंधिया सहित 40 विधायकों और 12 मंत्रियों को चुनाव प्रचार के लिए तैनात किया गया.
कमलनाथ की साख दांव पर
वहीं, साल 2018 में कांग्रेस 15 साल के सियासी वनवास के बाद एमपी की सत्ता में लौटी थी, लेकिन 15 महीने में ही सरकार चली गई. कांग्रेस से नाराज होकर तत्कालीन कांग्रेस नेता और वर्तमान के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्रियों और विधायकों को साथ लेकर बीजेपी में चले गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद कमलनाथ के लिए यह उपचुनाव परिणाम बेहद अहम हो गए हैं, जिसके लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी है.
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव तमाम बड़े कांग्रेसी नेताओं ने उपचुनाव के प्रचार में ताकत झोंक दी है. ऐसे में कांग्रेस उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई तो कमलनाथ के लिए चुनौती बढ़ेगी और पार्टी में भगदड़ और बढ़ सकती है. पिछले कुछ समय से राज्य में कई कांग्रेसी विधायक और नेताओं ने हाथ का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण है.