
मध्य प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के बिना नहीं कराए जाएंगे. इसकी वजह है कि शिवराज सरकार द्वारा पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज संशोधन अध्यादेश वापस ले लिया गया है. राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि बैठक में पंचायत चुनाव को लेकर निर्णय लिया जा सकता है. शिवराज सरकार ओबीसी आरक्षण पर पंचायत चुनाव में फंस गई है. ऐसे में अपने ही बुने जाल में घिरी सरकार ने यू टर्न ले लिया है.
एमपी पंचायत चुनाव होंगे निरस्त
दरअसल, मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित (पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य) पदों को छोड़कर राज्य में पंचायत चुनाव करा रहा था. ऐसे में जिस अध्यादेश के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव कार्यक्रम घोषित हुआ था, सरकार ने उसे ही वापस ले लिया है. ऐसे में अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव निरस्त हो जाएंगे. सवाल उठता है कि बीजेपी से ओबीसी आरक्षण में कहां चूक हो गई और अब आगे सरकार के पास क्या रास्ता है.
सुप्रीम कोर्ट के आधार पर होगा आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण के संबंध में दिए गए आदेश के मुताबिक शिवराज सरकार को अब आरक्षण की प्रक्रिया अपनानी होगी. इसके लिए पहले पिछड़ा वर्ग की गणना करनी होगी और उसके आधार पर आरक्षण का निर्धारण होगा. सूबे में पंचायतों का नए सिरे से परिसीमन कराकर रोटेशन के आधार पर आरक्षण प्रक्रिया करनी होगी.
ओबीसी आरक्षण को लेकर एमपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश की रोशनी में काम करना होगा और साथ ही पंचायत चुनाव में आरक्षण अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण को मिलाकर 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं हो इस बात का भी ध्यान रखना होगा. ओबीसी आरक्षण के सवालों में घिरे शिवराज सिंह चौहान दिल्ली दौरे पर हैं और वह केंद्रीय मंत्रियों और दिल्ली में बड़े वकीलों से मिलकर इसकी काट तलाशेंगे.
कमलनाथ के आदेश को पलटा शिवराज सरकार
बता दें कि मध्य प्रदेश में तत्कालीन कमलनाथ की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान 102 ग्राम पंचायतें खत्म कर 1200 नई ग्राम पंचायतें बनाई थीं. कमलनाथ सरकार ने सिंतबर 2019 में यह किया था. इसके साथ प्रदेश में 23,835 ग्राम पंचायतें हो गई गई थी. 904 जिला पंचायत सदस्य और 6035 जनपद सदस्य त्रि-स्तरीय पंचायत का प्रतिनिधित्व करते हैं. पंच, सरपंच, जनपद सदस्य और जनपद अध्यक्ष के लिए आरक्षण भी हो गया था. जिला पंचायत अध्यक्षों के लिए आरक्षण बाकी था.
कमलनाथ सरकार के दौरान पंचायतों को परिसीमन और रोटेशन को खत्म करने के लिए शिवराज सरकार पिछले महीने ही अध्यादेश लेकर आई थी. इसके तहत पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच सरकार ने ऐसी पंचायतों के परिसीमन को निरस्त कर दिया है, जहां बीते एक साल से चुनाव नहीं हुए हैं. ऐसी सभी जिला, जनपद या ग्राम पंचायतों में पुरानी व्यवस्था ही लागू कर दी गई थी। जो पद, जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, वही रखा गया था.
एमपी पंचायत चुनाव में कहां फंसा पेच
पंचायत आरक्षण के रोटेशन प्रणाली को न अपनाए जाने के चलते लेकर पेंच फंस गया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना पंचायत चुनाव में आरक्षण के फैसले को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया सकता. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर ही चुनाव करवाए जाएं. हालांकि, सरकार को ट्रिपल टेस्ट के तहत ओबीसी के लोगों की गिनती करनी होगी. ये करने में सरकार को चार महीने का समय लग सकता है.
महाराष्ट्र के फैसले का एमपी में असर
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने वाले अध्यादेश को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने अपने 6 दिसंबर के आदेश में भी किसी तरह की तब्दीली से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले का असर मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव पर पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग से पिछली अधिसूचना में बदलाव करते हुए हफ्ते भर में नई अधिसूचना जारी करे.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिसूचना में पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया है. इसके बाद अदालत ने बाकी बची 73 फीसदी सीटें सामान्य श्रेणी के लिए रखे जाने की नई अधिसूचना जारी करने का आदेश राज्य निर्वाचन आयोग को दिया था. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ओबीसी के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करे. इसके बाद मामला और उलझ गया.
ओबीसी आरक्षण पर घिरी शिवराज सरकार
पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म होने से शिवराज सरकार घिर गई थी. सरकार ने इस मसले पर न तो विपक्ष और न ही अपने नेताओं से भी राय मशविरा किया. इसलिए कई बड़े नेता खुलकर सामने आ गए. उमा भारती ने भी ऐतराज जताया था तो केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी सवाल खड़े किए थे. इसके अलावा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी शिवराज सिंह चौहान सरकार को घेरा था,
कमलनाथ ने आरोप लगाया था कि मध्य प्रदेश की सरकार जानबूझकर ओबीसी का आरक्षण समाप्त कर रही है. इसीलिए जानबूझकर पंचायत चुनाव की प्रक्रिया ही इस तरह बनाई गई कि उसमें कई संवैधानिक कमियां रह जाएं. उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेता सिर्फ झूठ प्रचार करने में लगे हैं. बीजेपी हमेशा से ओबीसी विरोधी पार्टी रही है, जबकि कांग्रेस ने ही हमेशा ओबीसी वर्ग को प्रदेश और देश में अधिकार दिए हैं. कमलनाथ ने कहा कि सरकार अगर वाकई ओबीसी के आरक्षण के साथ चुनाव कराना चाहती है, तो उसे तत्काल सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन लगानी चाहिए. इसमें में कांग्रेस अपना सहयोग देगी.
बीजेपी नेताओं ने भी खड़े किए सवाल
वहीं, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा था कि जब कभी हमें चुनावी राजनीति में आरक्षण की बात करनी थी तो हमें सुप्रीम कोर्ट या फिर सदन की राह को अपनाना चाहिए. उसमें जो चूक जिन सरकारों ने की है, उसे दुरुस्त करने के लिए एक बेहतर तरीका ये है कि हम संयम का परिचय दें. पिछडों को आग में ना झोंकें तो अच्छा होगा. इस बयान से साफ है कि केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल का यह संदेश अपनी ही सरकार के लिए हैं.
ऐसे में विरोधियों के साथ-साथ पार्टी के अंदर से ओबीसी के बड़े नेताओं की उठती आवाज ने शिवराज सरकार को बेचैन कर दिया था. इसके बाद सरकार बैकफुट पर है. ओबीसी पंचायत पर बुरी तरह से घिरी शिवराज सरकार इन चीजों के लिए कांग्रेस के सिर पर ठिकरा फोड़कर अपने बचाव में जुटी हैं. ऐसे में एक महीने पहले अध्यादेश पास कर शिवराज सरकार ने राज्य में पंचायत चुनाव कराने का फैसला किया था और अब उसी अध्यादेश को वापस ले लिया है. अब इस अध्यादेश के आधार पर राज्य में चुनाव नहीं हो सकेंगे.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली में ओबीसी आरक्षण के मसले पर सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता के साथ चर्चा की है. तीन जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने को लेकर सुनवाई है. इसके बाद ही अब राज्य में फिर से पंचायत चुनाव को लेकर कोई फैसला हो सकता है.