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मध्य प्रदेश: गाड़ी नहीं मिली तो आधा किलोमीटर तक ढोया पोते का शव

मध्य प्रदेश में मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आई है जहां सिस्टम की लापरवाही के कारण एक शख्स को अपने पोते का शव आधा किमी तक हाथों में लेकर पैदल चलना पड़ा. इसके बाद थक हार कर वो गोद में पोते का शव रखकर एक मैदान में बैठ गए. लोगों ने इस शख्स को रास्ते में देखा लेकिन शव पूरी तरह कपड़े से लिपटा होने के चलते कोई पूरा मामला समझ नहीं पाया.

पोते के शव के साथ आदिवासी शख्स पोते के शव के साथ आदिवासी शख्स
रवीश पाल सिंह
  • खरगोन,
  • 21 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:03 PM IST

मध्य प्रदेश में मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आई है जहां सिस्टम की लापरवाही के कारण एक शख्स को अपने पोते का शव आधा किमी तक हाथों में लेकर पैदल चलना पड़ा. इसके बाद थक हार कर वो गोद में पोते का शव रखकर एक मैदान में बैठ गए. लोगों ने इस शख्स को रास्ते में देखा लेकिन शव पूरी तरह कपड़े से लिपटा होने के चलते कोई पूरा मामला समझ नहीं पाया.

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करंट लगने से हुई 10 साल के बच्चे की मौत
मामला खरगोन जिले के आदिवासी अंचल सेगांव का है. पुलिस चौकी के छिपीपुरा में 10 साल के महेश की करंट से मौत हो जाने के बाद मृतक के दादा सहित परिजनों को शव अपने गांव ले जाने के लिए घंटों परेशान होना पड़ा. महेश को गांव में बिजली के खंभे से करंट लगा था. गंभीर हालत में गांव से बालक को ब्लॉक सेगांव के सरकारी अस्पताल लाया गया था. जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पोस्टमार्टम के बाद महेश का शव परिजनों को सौंप दिया गया.

डॉक्टरों ने झाड़ा पल्ला
मजदूरी करके परिवार का पेट पालने वाले सुखलाल आदिवासी के पास अपने बेटे का शव 30 किमी दूर अपने गांव छिपीपुरा ले जाने के पैसे नहीं थे. उन्होंने अपने बड़े भाई गुलसिंग और एक परिजन दिलीप के साथ सेगांव अस्पताल में डॉक्टरों से मदद मांगी मगर डॉक्टरों ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि बीमार को अस्पताल लाने के लिए वाहन व्यवस्था है मगर शव को घर या गांव ले जाने के लिए हमारे पास वाहन व्यवस्था नहीं है.

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स्थानीय लोगों ने किया शव वाहन का इंतजाम
डॉक्टरों की बात सुनकर महेश के दादा शॉल में पोते का शव लपेटकर अस्पताल परिसर में घंटों घूमते रहे लेकिन कोई मदद नहीं मिली. बाद में वो शव को गोद में उठाकर पैदल ही गांव की ओर चल दिए. करीब आधा किमी पैदल चलने के बाद सड़क के किनारे मैदान पर अपने पोते का शव हाथ में रखकर वो बैठ गए. जब स्थानीय लोगों को पता चला तो उन्होंने शव वाहन की व्यवस्था की. स्थानीय लोगों और पुलिस की मदद से गरीब आदिवासी परिवार अपने बेटे का शव गांव ले जा सका.

जिला मुख्यालय पर विभिन्न सामाजिक संगठनों के करीब 5 वाहन हैं, फिर भी सेगांव के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर ने वाहन की कोई व्यवस्था नहीं की जबकि सेगांव जिला मुख्यालय से सिर्फ 30 किमी दूर है.

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