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पढ़ें क्यों आंदोलन की राह पर हैं एमपी के किसान, जिसने ले ली 5 की जान

मध्य प्रदेश के किसान नेताओं का कहना है कि किसानों को उनके उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. जितना पैसा वे अपनी फसल उगाने में लगा रहे हैं, उतना उन्हें उसे बेचने में नहीं मिल रहा है.

मध्य प्रदेश में किसानों का प्रदर्शन मध्य प्रदेश में किसानों का प्रदर्शन
विजय रावत
  • मंदसौर,
  • 06 जून 2017,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

अपनी फसल के उचित मूल्य सहित अन्य मांगों को लेकर 10 दिन के लिए सड़कों पर उतरे मध्यप्रदेश के किसानों का आंदोलन हिंसक रूप ले चुका है. पुलिस फायरिंग में 5 किसानों की मौत हो गई जबकि कई अन्य घायल हो गए हैं. राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ ने आंदोलन को और बड़ा रूप देने की चेतावनी दी है. किसान मजदूर संघ ने बुधवार को प्रदेश व्यापी बंद का ऐलान किया है. हालात संभालने की कोशिश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इमरजेंसी बैठक बुलाई और उसके बाद किसानों की सभी वाजिब मांगें मान लेने का ऐलान किया. उन्होंने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए और मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख मुआवजे का ऐलान किया.

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मध्य प्रदेश के किसान नेताओं का कहना है कि किसानों को उनके उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. जितना पैसा वे अपनी फसल उगाने में लगा रहे हैं, उतना उन्हें उसे बेचने में नहीं मिल रहा है. इससे किसान की हालत बहुत खराब हो गई है और वे कर्ज के तले दबे हुए हैं. मध्यप्रदेश सरकार ने गेहूं को न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, लेकिन सरकार किसानों के गेहूं को इस कीमत पर नहीं खरीद रही है, जिसके कारण उन्हें अपने उत्पाद को 1200 रुपये से 1300 रुपये प्रति क्विंटल मजबूरी में बाजार में बेचना पड़ रहा है. इससे ज्यादा कीमत पर कोई भी किसान से गेहूं खरीदने को तैयार नहीं है. प्याज एवं संतरे तो बहुत ही कम दाम मिलने के कारण किसानों को फेंकने पड़ रहे है.

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इससे पहले भारतीय किसान संघ ने मुख्यमंत्री के साथ वार्ता के बाद आंदोलन ख़त्म करने का फैसला किया था, लेकिन अन्य संगठनों ने आंदोलन नहीं छोड़ने का ऐलान किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ वार्ता के बाद आंदोलन ख़त्म करने का फैसला किया, लेकिन आंदोलन में अगुआ भारतीय किसान यूनियन और राष्ट्रीय किसान मज़दूर संघ ने संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ने का ऐलान किया.

उज्जैन में बैठक के बाद तय हुआ कि किसान कृषि उपज मंडी में जो उत्पाद बेचते हैं, उनका 50 फीसदी उन्हें नकद मिलेगा जबकि 50 फीसदी आरटीजीएस के ज़रिए यानी सीधा उनके बैंक खाते में आएगा. ये भी तय हुआ कि मूंग की फसल को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदेगी. कई और निर्णय भी किए गए.

बैठक के बाद भारतीय किसान संघ के शिवकांत दीक्षित ने घोषणा की कि चूंकि सरकार ने उनकी सारी बातें मान ली हैं इसलिए आंदोलन को स्थगित किया जाता है. वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ ने इस समझौते की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार इस आंदोलन से घबराकर ऐसे हथकंडे अपना रही है, वहीं भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि हड़ताल उनके संगठन ने शुरू की थी और खत्म भी वही करेंगे. दूसरे गुट अभी भी हड़ताल पर कायम हैं.

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