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MP: बाल विवाह के खतरे सुन 17 साल की लड़की ने शादी से किया इंकार

देश की नई पीढ़ी काफी सजग है. स्कूल में पढ़ते वक्त ही सोच लेती है कि आगे की पढ़ाई कहां और कैसे करनी है. पढ़ाई खत्म होने से पहले ही नौकरी के बारे में भी निर्णय कर लेती है. आत्म निर्भर होने पर शादी का ख्याल जहन में आता है. लेकिन देश में अभी भी एक वर्ग शिक्षा को दरकिनार कर बाल विवाह करा देते हैं.

फोटो-REUTERS फोटो-REUTERS
aajtak.in
  • सतना,
  • 25 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 8:19 PM IST

एक तरफ जहां चंद्रयान-2 की सफलता में मुथाया वनिता और रितु करिढाल का अहम योगदान रहा. वहीं विभिन्न क्षेत्रों में भी महिलाएं अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं. फिर चाहे हिमा दास हो या किरण बेदी, महिलांए किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं. शहर में सपने लिए कई लड़कियां नए आयाम छूने निकल पड़ती हैं.

लेकिन शहर की महत्वाकांक्षा से दूर किसी गांव में आज भी कुछ तबके में रूढ़िवादी सोच कायम है. सोच जकड़कर रखने की. ऐसी सोच देश के विकास में बाधा है. एक तरफ जहां शहर में लड़कियां विदेश में पढ़ाई के लिए तैयारी करती हैं वहीं कुछ गांव में लड़कियों को मूल शिक्षा से भी वंचित रख उनकी कम उम्र में ही शादी करा दी जाती है.

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ताजा मामला मध्य प्रदेश के सतना जिले के टगरपार गांव का है जहां 17 साल की लड़की सोना मेहंदी कार्यक्रम में शादी न करने का ऐलान करती है. गांव की लड़की के लिए ऐसा करना अनोखा और साहसिक कदम था. उसके एक कमरे वाला मिट्टी का घर मेहमानों से भरा था. इसके बावजूद उसके माता-पिता ने उसके निर्णय का समर्थन किया और पढ़ाई जारी रखने की हामी भरी.

दरअसल सोना ने पहले शादी की अनुमति दे दी थी क्योंकि वह बाल विवाह के दुष्परिणामों से अनजान थी. उसकी दादी और मौसी की शादी भी तभी हुई थी जब वे नाबालिग थीं. लेकिन शादी से दो दिन पहले सोना की शादी रुकवाने में उसकी मौसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सोना ने कहा, 'मेरी मौसी ने मुझे अपनी परेशानियों के बारे में बताया कि किस तरह उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. वह 15 साल से क्रोनिक एनीमिया से पीड़ित हैं क्योंकि शादी के दो साल बाद ही जब वह 16 साल की थी तभी उनकी पहली संतान पैदा हो गई थी. वह बहुत ही कठिन परिस्थितियों में रह रही हैं क्योंकि अब उनके छह बच्चे हैं. उनकी सबसे छोटी संतान सात महीने की है. उन्होंने मुझे शादी के लिए ना कहने के लिए कहा वरना मुझे भी कुछ ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता.'

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सोना की मौसी रेखा बाई (32) ने खुलासा किया कि डॉक्टरों ने उन्हें और बच्चे पैदा ना करने की सलाह दी है. लेकिन उनके मजदूर पति को पुरुष नसबंदी कराने की जरूरत महसूस नहीं होती. उन्होंने कहा, 'घरवाले मेरी शादी करवाना चाहते थे. उनके पास इतनी आमदनी नहीं थी कि वे एक और पेट भर सकें. मेरे ससुराल वालों ने मुझे मेरी पढ़ाई पूरी नहीं करने दी और मैं जल्द ही मां बन गई. मैं अपनी भतीजी और बेटियों को ऐसा नहीं करने दूंगी. यदि मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी होती तो आज मेरा जीवन कुछ और हो सकता था.'

सोना की मां मिंता बाई का कहना है कि वह खुश हैं कि उनकी बहन ने उनकी बेटी को समझाने का कदम उठाया. मैंने और मेरे पति ने सोना पर दबाव नहीं बनाने का फैसला किया है.

स्वास्थ्य की दृष्टि से जिले की स्थिति औसत दर्जे की है. इस ग्रामीण क्षेत्र की अधिकांश समस्याएं नाबालिग विवाह, एनीमिया और कुपोषण से जुड़ी हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जिले की 20-24 वर्ष की उम्र की 40.3 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले कर दिया गया था.

वहीं UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में भारत में नाबालिग लड़कियों की शादी की संख्या लगभग आधी हो गई. इसके बावजूद देश में 15 लाख लड़कियों की 18 साल से कम उम्र में ही शादी हो जाती है. 

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आपको बता दें कि देश में बाल विवाह कानूनन अपराध है. जिसके तहत 2 साल की सजा का भी प्रवधान है साथ ही 1 लाख रुपये का फाइन या दोनों. 

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