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क्या पिता माधवराव की तरह कांग्रेस से अलग होने का कोई फैसला लेंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया?

मध्य प्रदेश बीजेपी की दिल्ली में तीन-चार राउंड की बैठकें भी हो चुकी हैं. लिहाजा प्रदेश स्तर से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बीजेपी में एंट्री पर कोई अड़चन नहीं मानी जा रही है. अब अंतिम फैसला ज्योतिरादित्य को ही करना है.

कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तनातनी से संकट में सरकार (फाइल फोटो) कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तनातनी से संकट में सरकार (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 9:33 AM IST

  • ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने की अटकलें तेज
  • मध्य प्रदेश में संकट में आई कमलनाथ सरकार

मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक उन्हें मनाने में कांग्रेस अगर सफल नहीं हुई तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उन्हें राज्यसभा भेजने का बड़ा दांव चल सकती है. इससे एक तरफ जहां बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हो जाएगी, तो दूसरी तरफ सिंधिया के रूप में पार्टी को एक और युवा चेहरा मिल जाएगा.

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सूत्रों का कहना है कि अगर कांग्रेस से अलग होने के बावजूद सिंधिया किन्हीं कारणों से बीजेपी में शामिल नहीं होते हैं तब भी पार्टी उन्हें बतौर निर्दलीय राज्यसभा भेज सकती है. इस तरह उन्हें मोदी सरकार में भी शामिल होने का मौका मिल सकता है. आज यानी 10 मार्च को उनके पिता माधवराव सिंधिया की 75वीं की जयंती है. ऐसे में चर्चा ये भी है कि क्या इस खास दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई बड़ा ऐलान करेंगे?

जब पिता माधवराव हो गए थे कांग्रेस से अलग

आज यह सवाल इसलिए भी मौजू है क्योंकि 1993 में जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी तब माधवराव सिंधिया ने पार्टी में उपेक्षित होकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और अपनी अलग पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी. हालांकि बाद में वे कांग्रेस में वापस लौट गए थे.

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वहीं 1967 में जब मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी तब कांग्रेस में उपेक्षित होकर राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ गई थीं और जनसंघ के टिकट पर गुना लोकसभा सीट से चुनाव भी जीती थीं. मौजूदा सियासी हलचल के बीच अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने पिता और दादी की तरह कुछ नया ऐलान करेंगे?

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सूत्रों का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रबल दावेदार होने के बावजूद मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद से ज्योतिरादित्य सिंधिया बाद में प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, मगर दिग्विजय सिंह के रोड़े अटकाने के कारण नहीं बन पाए. फिर उन्हें लगा कि पार्टी आगे राज्यसभा भेजेगी, मगर इस राह में भी दिग्विजय सिंह ने मुश्किलें खड़ीं कर दीं. पार्टी में लगातार उपेक्षा होते देख सिंधिया ने बीजेपी के कुछ नेताओं से भी संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया. इसी सिलसिले में बीते 21 जनवरी को शिवराज सिंह चौहान और सिंधिया की करीब एक घंटे तक मुलाकात चली थी. उसी दौरान सिंधिया के बीजेपी से नजदीकियां बढ़ने की चर्चा चली थी.

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बता दें, मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से सियासी पारा चढ़ा हुआ है. पहले 10 विधायकों के गायब होने से कमल नाथ सरकार संकट में आई थी, उसके बाद सोमवार को खबर आई कि सिंधिया के समर्थक 17 विधायक भोपाल में नहीं हैं, वे दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. इतना ही नहीं, कुछ विधायकों के बेंगलुरू ले जाने की बातें कही गईं.

इन विधायकों और मंत्रियों, जिनमें गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, तुलसी सिलावट शामिल हैं के फोन बंद हैं. इस बीच दिल्ली से खबर आई कि सिंधिया पार्टी हाईकमान से खुश नहीं हैं. वे कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. इसने कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ा दी है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि सिंधिया का अगला कदम मध्य प्रदेश में बीजेपी या कांग्रेस, किसकी होली 'रंगीन' करेगा.

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