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Maharashtra News: महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाली 90 साल की महिला का वर्षों पूराना एक सपना पूरा होना वाला है. वह पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित अपने बचपन के घर को देखने जा पाएंगी. बुजुर्ग महिला का नाम रीना वर्मा है. उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान का वीजा मिल पाया है.
दरअसल, रीना वर्मा पिछ्ले 7 दशकों से पाकिस्तान में अपने बचपन के घर को देखने जाना चाह रही थीं. इसके लिए वह लगातार कोशिश भी कर रही थीं. 2 साल पहले में रीना वर्मा ने फेसबुक पर ‘पंजाब ग्रुप’ से जुड़ी. जिसके मेंबर्स दोनों देशों में बिछड़े हुए पंजाबियों को मिलाने की कोशिश करते हैं. इस ग्रुप के जरिए रीना वर्मा (तोषी छिब्बर) की पहचान पाकिस्तानी पत्रकार सज्जाद हैदर से हुई. उन्होंने रीना वर्मा का रावलपिंडी का घर ढूंढ निकाला लेकिन कोरोना महामारी आने से आगे कुछ हो नहीं पाया.
2021 के जुलाई महीने में एक और पाकिस्तानी पत्रकार बिनिष सिद्ध, जो कराची की रहने वाली हैं. जिन्होंने इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब के जरिए पार्टीशन के वक्त दोनों देशों के नागरिकों ने जो तकलीफें झेली हैं. उन लोगों की आवाज... चाहे वो पाकिस्तान में रहने वाले हों या हिंदुस्तान में, उनका दर्द दुनिया भर में पहुंचाने की कोशिश की. इसलिए उन्होंने रीना वर्मा का वीडियो बनाया, जो बाद में वायरल हो गया.
रीना वर्मा का यह वीडियो अब पाकिस्तान की वर्तमान फॉरेन मिनिस्टर ऑफ स्टेट हिना रब्बानी के नजर में आया. तो वह रीना वर्मा की मदद को आगे आईं और उनको इस बार पाकिस्तान का वीजा मिल गया.
पुणे के कोंडवा इलाके में रीना वर्मा अपने बचपन की ढेर सारी यादों को संजोए हुए हैं. वह सुंदर से छोटे से फ्लैट में अकेली रहती हैं. रीना वर्मा बताती हैं कि उनके पति इंद्र प्रकाश वर्मा बैंगलोर में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स में काम करते थे. साल 2005 में उनका देहांत हो गया. रीना वर्मा की बेटी दिल्ली में रहती है. तो वहीं 3-4 पहले उनके बेटे का स्वर्गवास हो गया.
घर का हर एक काम रीना वर्मा खुद करती हैं. रसोई, कपड़े धोना, कपड़े प्रेस करना और पौधों को पानी देना यह सब काम रीना वर्मा अकेले ही करती हैं. उम्र के इस पड़ाव में रीना वर्मा ने खुद को अपडेटेड रखा है. वह कंप्यूटर, टैबलेट, मोबाइल, फेसबुक, गूगल सब जानती हैं. उन्हें संगीत बहुत पसंद है. वह पुराने गानें गुनगुनाते रहती हैं.
वीजा मिलने पर रीना वर्मा का कहना है, 'आज खुशी तो बहुत हो रही है कि इतने सालों से जाने की कोशिश कर रही थी. मैंने बचपन जहां गुजारा, वहां जाने को मिल रहा है. खुशी के साथ में दर्द भी है क्योंकि विभाजन के वक्त जिस हालात में रावलपिंडी का घर छोड़ना पड़ा. उसे मैं भूल नही सकती है.’
रीना वर्मा ने बताया रावलपिंडी में डीएवी कॉलेज रोड पर उनका बड़ा सा मकान था. पिताजी सरकारी अफसर थे. घर परिवार में 8 सदस्य थे. 4 बहनें, 2 भाई और माता पिताजी. दुख उन्हें इसलिए भी हो रहा है कि जब वह घर लौटेंगी. तब उसके परिवार को कोई भी सदस्य आज जीवित नहीं, जो उनके साथ 1947 में रावलपिंडी में रहा करते थे.
रीना वर्मा के मुताबिक, रावलपिडी में वो मॉडर्न स्कूल में पढ़ती थीं. जो अब वहां नहीं है. स्कूल घर के पास में था. रीना दसवीं तक मॉडर्न स्कूल में पढ़ीं. वो बताती हैं कि घर में उन्हें तोषी के नाम ने बुलाते थे. उनकी सहेलियां भी उन्हें तोषी के नाम से बुलाते थीं. उन्होंने बताया 'वैसे तो सहेलिया बहुत थीं, लेकिन हमारा एक ग्रुप था जिसमे 5 सहेलियां बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं. रीना, विमला, उर्मिला, कांता और पद्मा 5 सहेलियों का ग्रुप था. 5 सहेलियों में रीना बाकियों से उम्र मे 2 साल से छोटी थी. पार्टिशन के बाद 2 सहेलियों से संपर्क बना रहा. विमला मुंबई में सेटेल हो गई. 2019 तक दोनों एक-दूसरे से मिलते रहे, 2019 में विमला की डेथ हो गई.
वह बताती हैं कि उनके पिता भाई प्रेमचंद छिब्बर 1939 में सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए थे. 8 सदस्य के परिवार के देखभाल के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी. अच्छी खासी सेविंग्स 3 बैंक में रखी थी. उस वक्त एक बड़ा प्लॉट खरीदा था रावलपिंडी के पास, जहां पिताजी फार्म हाउस बनाने वाले थे क्योंकि उन्हें बगीचे का शौक था. विभाजन हो जाने से सारा कुछ वहीं रह गया. जीवन अचानक कोरा हो गया. जो भी समेटने को मिला वो लेकर पिताजी बाद में इंडिया आए. 1947 के फरवरी और मार्च में दंगे हुए. तब तनाव वाला माहौल था. रात के वक्त बारी-बारी से पहरा देना पड़ता था.
रीना वर्मा कहना है कि सुरक्षा के मद्देनजर जब माहौल बहुत बिगड़ गया. तब इलाके में रहने वाले लोग एक हफ्ते तक पास वाले आर्मी कैंप में रहने चले गए. मेजर हरनाम सिंह जो छिब्बर परिवार के पड़ोसी थे. उन्होंने बच्चों को और लड़कियों को सेफ्टी के लिए आर्मी कैम्प में एक हफ्ते के लिए ले जाना ठीक समझा था.
उन्हें याद है कि हर गर्मियों के दिनों में पिताजी मरी हिल स्टेशन के बर्फीले पहाड़ों पर घूमने ले जाया करते. 1947 में पिताजी को उनके हितचिंतकों ने बताया गया कि तनाव के कारण शिमला जाएं लेकिन वहां पहले ही बहुत लोग जा चुके थे इसलिए मई महीने मे शिमला के पास वाले सोलन पहाड़ पर चले गए जहां छिब्बर परिवार 5 महीने तक रहा. माता-पिताजी जुलाई महीने में सोलन आए, 5 महीने रहने के बाद पुणे में शिफ्ट हो गए जहां रीना के बड़े भाई कैप्टन सुबोध छिब्बर की पोस्टिंग हुई थी.