
पूर्व आईपीएस अधिकारी और पुणे की पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरा बोरवंकर की किताब 'मैडम कमिश्नर' से सियासी जगत में हंगामा मच गया है. उन्होंने अपनी किताब में खुलासा किया है कि पुणे के तत्कालीन संरक्षक मंत्री और अब महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने पुलिस के स्वामित्व वाली बेशकीमती तीन एकड़ जमीन एक प्राईवेट पार्टी को नीलाम करवा दी.
मीरा बोरवंकर ने आरोप लगाया कि यह निर्णय संरक्षक मंत्री द्वारा लिया गया था और तत्कालीन संभागीय आयुक्त द्वारा इसकी निगरानी की गई थी. हालांकि कड़े संघर्ष के बाद बोरवंकर जमीन वापस लेने में कामयाब रहीं लेकिन अजित पवार ने तत्कालीन गृह मंत्री आरआर पाटिल के खिलाफ कई बयान दिए थे.
पाटिल करते थे बोरवंकर का सपोर्ट
गौर करने वाली बात ये है कि बोरवंकर ने किताब में लिखा है कि तत्कालीन गृह मंत्री आरआर पाटिल बोरवंकर की नीतियों का समर्थन करते थे, लेकिन इस बार उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए थे, क्योंकि जिला मंत्री (अजित पवार) अधिक शक्तिशाली थे और उन्हें अपने काम के लिए ना सुनना पसंद नहीं था. उन्होंने यह भी लिखा कि कीमती सरकारी जमीन को निजी हाथों को सौंपने में निश्चित रूप से घोटाला हुआ, जिसमें राजनेताओं और नौकरशाहों को भारी रिश्वत दी गई. एक पुलिस अधिकारी ने बोरवंकर से कहा, 'कोई भी, न तो अधिकारी और न ही मीडिया, "दादा" को ना कहने की हिम्मत करता है.
किताब में अजित पवार का सीधा नाम नहीं
पुस्तक के अनुसार 2010 में, पुणे के यरवदा में, जहां शहर का केंद्रीय कारागार है, पुणे पुलिस की बेशकीमती जमीन पुणे के तत्कालीन संरक्षक मंत्री अजित पवार के आदेश पर नीलाम की गई थी. जब बोरवंकर को मंत्री ने जमीन सौंपने के लिए बुलाया, तो उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि यह पुलिस के उपयोग और पुलिस कर्मियों के आवास के लिए आवश्यक है.
बोरवंकर की आज यानि रविवार को रिलीज होने वाली पुस्तक 'मैडम कमिश्नर' में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र किया गया है.पुस्तक में, बोरवंकर ने "जिला मंत्री" के नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन उन्हें "दादा" के रूप में संदर्भित किया है.
हाईकोर्ट तक पहुंचा था मामला
बोरवंकर लिखती हैं कि जब उन्होंने जमीन सौंपने के लिए मुझे बुलाया तो मैंने मना कर दिया. मैंने यहां तक कहा कि मेरी राय में यह प्रक्रिया (बोली लगाने की) ही त्रुटिपूर्ण थी और पुलिस विभाग के हितों के खिलाफ थी. मंत्री ने अपना आपा खो दिया और जमीन का नक्शा कांच की मेज पर फेंक दिया.
किताब में वो आगे लिखती हैं, 'यह महसूस करते हुए कि बोरवंकर का पुलिस की जमीन को देने का कोई इरादा नहीं है, तो इसके लिए सबसे ऊंची बोली लगाने वाला बॉम्बे हाईकोर्ट चले गया. उसने पहले ही महाराष्ट्र गृह विभाग को 1 करोड़ अग्रिम भुगतान कर दिया था. कोर्ट में महाराष्ट्र गृह विभाग ने इस डील का विरोध करने से इनकार कर दिया, जबकि पुलिस विभाग इस डील के खिलाफ था. सरकारी वकील ने गृह विभाग और पुलिस विभाग को सुझाव दिया कि मामले को खुली अदालत में नहीं बल्कि आंतरिक रूप से सुलझाया जाए.'
बदला और पोस्टिंग की राजनीति
पुस्तक में बोरवंकर आगे लिखती हैं, "कुछ महीनों के बाद, जब पुणे के बिबवेवाड़ी इलाके में दंगे भड़क उठे, तो जिला मंत्री ने एक छोटा टीवी साक्षात्कार देकर अपना बदला ले लिया, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि 'पुलिस कमिश्नर को लेकर कुछ करना होगा.' मैंने जल्द ही जिला मंत्री से मिलने का समय मांगा. पुणे के सरकारी गेस्ट हाउस में, मैंने उनसे मराठी टीवी चैनलों पर की गई उनकी टिप्पणी के बारे में पूछा तो उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से इससे साफ इनकार कर दिया."
अजित पवार ने खारिज किए आरोप
वहीं उप मुख्यमंत्री अजित पवार के कार्यालय ने पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरा बोरवंकर की किताब में उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि अजित पवार उक्त मामले में शामिल नहीं थे और रिपोर्ट में उल्लिखित जमीन से उनका कोई संबंध नहीं है.
वहीं इस मामले को लेकर शिवसेना (उद्धव गुट) नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'भाजपा को यह सोचने की जरूरत है कि सरकार चलाने के लिए वे किस तरह के लोगों को अपने साथ लेकर चल रहे हैं जो सरकारी जमीन हड़पना चाहते हैं. अब ईडी, ईओडब्ल्यू और फड़नवीस इस बारे में क्या करेंगे?'