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शरद पवार नहीं, अब महाराष्ट्र के असली किंगमेकर बने अजित पवार

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार को भले ही किंगमेकर कहा जाता था, लेकिन असल किंगमेकर शरद पवार के भतीजे अजित पवार साबित हुए हैं.

चाचा को मात दे महाराष्ट्र के किंगमेकर बने अजित पवार चाचा को मात दे महाराष्ट्र के किंगमेकर बने अजित पवार
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST

  • अपने चाचा के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में आए थे अजित
  • अजित पवार ने एनसीपी को तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार को भले ही किंगमेकर कहा जाता रहा था, लेकिन असल किंगमेकर शरद पवार के भतीजे अजित पवार साबित हुए हैं. शरद पवार शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्लान ही करते रह गए और अजित पवार ने एनसीपी को तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. मुंबई में शनिवार की सुबह लोग अभी जब जगे भी नहीं थे कि देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार डिप्टी सीएम पद की शपथ ले चुके थे.

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ऐसे में हम बताते हैं कि महाराष्ट्र की सत्ता के किंगमेकर अजित पवार कौन हैं और कैसे सियासत में आज के बेताज बादशाह बनकर उभरे हैं. अजित पवार का जन्म 22 जुलाई, 1959 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में हुआ. अजित पवार एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं.

अजित पवार अपने चाचा के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में आए. शरद पवार की उंगली पकड़कर सियासत की एबीसीडी सिखा. शरद पवार के साथ अजित पवार भी कांग्रेस से अलग हो गए और एनसीपी का गठन किया. इस बार के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बारामती सीट से सातवीं बार विधायक चुने गए हैं.

अजित पवार का सियासी सफर

अजित पवार ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 1982 में की थी. उस समय उनकी महज 20 साल की उम्र थी. उन्होंने एक चीनी सहकारी संस्था के लिए चुनाव लड़ा और बाद में पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने. अजित पवार 1991 में बारामती ससंदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए, लेकिन उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के लिए सीट खाली कर दी. इसके बाद अपने चाचा की बरामती विधानसभा सीट से विधायक चुने गए.

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अजित पवार पहली बार 1992 में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने. इस तरह से अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति में धीरे-धीरे एक बड़ा नाम बन चुके थे. इसके बाद से अजित पवार ने पलटकर नहीं देखा और एक के बाद एक चुनाव जीतते गए. 2010 में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बने और 2014 तक रहे और अब एक बार फिर उपमुख्यमंत्री का ताज उनके सिर सजा है. हालांकि उनके ऊपर भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं और जांच चल रही है.

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