Advertisement

अन्ना हजारे आज से फिर करेंगे अनशन, जानिए कहां तक पहुंची लोकपाल की लड़ाई?

लोकपाल विधेयक को 13 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था. चार दिन बाद 17 दिसंबर 2013 को यह विधेयक राज्यसभा से पास हो गया था. अगले दिन 18 दिसंबर, 2013 को ये विधेयक लोकसभा से भी पारित हो गया था. लेकिन अभी तक लोकपाल नियुक्त नहीं हो पाया है.

दिल्ली में अनशन के दौरान अन्ना हजारे (फाइल फोटो-PTI) दिल्ली में अनशन के दौरान अन्ना हजारे (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • रालेगण सिद्दि,
  • 30 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एक बार फिर आंदोलन करने का ऐलान किया है. वह बुधवार को सुबह 10 बजे महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले स्थित अपने गांव रालेगण सिद्धि में अनशन पर बैठेंगे. उन्होंने मंगलवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि लोकपाल कानून बने 5 साल हो गए और नरेंद्र मोदी सरकार पांच साल तक बहानेबाजी करती रही. उन्होंने कहा, 'नरेंद्र मोदी सरकार के दिल में अगर होता तो क्या इसमें 5 साल लगना जरूरी था?'

Advertisement

अन्ना ने कहा कि, 'ये मेरा अनशन किसी व्यक्ति, पक्ष और पार्टी के खिलाफ में नहीं है. समाज और देश की भलाई के लिए बार-बार मैं आंदोलन करता आया हूं, उसी प्रकार का ये आंदोलन है.' बता दें कि 2011-12 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान पर तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन हुआ था. यह भी खास बात है कि उस आंदोलन में शामिल रहे कई चेहरे अब सियासत में आ चुके हैं. अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, किरण बेदी पुडुचेरी की राज्यपाल नियुक्त हो चुकी हैं. वहीं, अन्ना एक बार फिर अनशन पर बैठने जा रहे हैं. इस बार आंदोलन का स्थान दिल्ली न होकर अन्ना का अपना गांव रालेगण सिद्धि ही है.

कहां तक पहुंची लोकपाल की लड़ाई?

देश में तकरीबन पांच साल की लंबी कवायद के बाद 2013 में बड़े आंदोलन के बाद लोकपाल विधेयक पारित हुआ था. लेकिन अब तक लोकपाल नियुक्त नहीं किया जा सका है. कांग्रेस नीत यूपीए सरकार में पारित यह विधेयक अभी ठोस तक रूप नहीं ले पाया है. जबकि मौजूदा सरकार का भी पांच वर्ष का कार्यकाल लगभग खत्म होने वाला है. मामला सर्वोच्च न्यायालय में लटका हुआ है. इस मामले की सुनवाई कोई डेढ़ महीने के लिए टल गई है. लेकिन यह मामला जिस तरीके से फिलहाल टल रहा है, लोकसभा चुनाव 2019 में चुनकर आने वाली सरकार इस पर कितना आगे बढ़ पाएगी, इसे लेकर कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है. मगर यह सवाल मौजू बना रहेगा कि नई सरकार में भी लोकपाल की नियुक्ति मुमकिन होगी या नहीं?

Advertisement

बहरहाल बता दें कि लोकपाल की नियुक्ति को लेकर गत गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 7 मार्च की तिथि मुकर्र की है. साथ ही शीर्ष कोर्ट ने सरकार से लोकपाल नियुक्ति के लिए किए गए प्रयासों की रिपोर्ट मांगी है. सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल जांच समिति को ये भी निर्देश दिया है कि वह लोकपाल और उसके सदस्यों के नामों का चयन करने का काम फरवरी के अंत तक पूरा कर ले. साथ ही चयन समिति के विचार के लिए नामों का एक पैनल बनाए. उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को सर्च कमेटी के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा मुहैया करने के लिए भी कहा है.

फिलहाल क्या है लोकपाल की स्थिति

बताते चलें कि लोकपाल की खोज के लिए कमेटी बनने के बाद से कोई भी बैठक नहीं हुई है. पिछले साल सितंबर में लोकपाल की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी का गठन किया गया था. इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जनवरी को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह सितंबर 2018 से अभी तक लोकपाल खोज समिति के संबंध में उठाए गए सभी प्रयासों पर एक हलफनामा सौंपे. जिसमें यह बताया जाए कि समिति गठित करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए. शीर्ष कोर्ट ने ये हलफनामा अटॉर्नी जनरल के उस जवाब के बाद मांगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि सितंबर 2018 से अभी तक समिति के गठन के लिए कई प्रयास किए गए हैं.

Advertisement

क्यों लोकपाल जरूरी है?

पारित विधेयक के मुताबिक लोकपाल के पास चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक किसी भी जनसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार है. भले ही वह मंत्री हो, सरकारी अफसर, पंचायत सदस्य इत्यादि किसी भी पद पर तैनात हो. लोकपाल जांच के बाद इन सभी की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है. विशेष परिस्थितियों में लोकपाल को किसी आदमी के खिलाफ अदालती सुनवाई करने और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का भी अधिकार है. हालांकि भारतीय सेना लोकपाल के दायरे से बाहर है. लोकपाल बिल को 13 दिसंबर, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था. चार दिन बाद 17 दिसंबर 2013 को यह विधेयक राज्यसभा से पास हो गया था. अगले दिन, 18 दिसंबर 2013 को ये विधेयक लोकसभा से भी पारित हो गया था.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement