
लोकसभा चुनाव करीब है. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव भी कुछ ही महीने बाद होने हैं. सियासत के इस चुनावी मौसम में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए बसंत और कांग्रेस के लिए पतझड़ की स्थिति बनती नजर आ रही है. महाराष्ट्र में पहले मिलिंद देवड़ा, फिर बाबा सिद्दीकी और अब पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य अशोक चव्हाण ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. मिलिंद देवड़ा भी बीजेपी की सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो चुके हैं वहीं विधायकी से इस्तीफा देकर आए अशोक चव्हाण को भी कमल निशान वाली पार्टी ने राज्यसभा का टिकट थमा दिया है.
अशोक चव्हाण वही हैं जिन्हें संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के रहते सबसे चर्चित कथित घोटालों में से एक आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के मामले में नाम सामने आने के बाद साल 2010 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. अशोक चव्हाण के बीजेपी में आने के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति की बात करने वाली पार्टी को आदर्श घोटाले के सबसे बड़े चेहरे को अपने पाले में लाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ गई? चव्हाण के साथ आ जाने में बीजेपी को आखिर क्या फायदा दिख रहा है?
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राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि अशोक चव्हाण सूबे की सियासत में एक्टिव रोल चाहते थे. कांग्रेस में रहते हुए वह विधायक थे, सीडब्ल्यूसी के मेंबर थे लेकिन उनके पास कोई बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं थी जैसा कि वह चाहते थे. दूसरी तरफ, बीजेपी भी उद्धव ठाकरे के साथ नहीं होने की वजह से नुकसान की संभावनाओं को कम से कम करने की कोशिश में है. आधी शिवसेना और आधी एनसीपी के साथ आ जाने के बावजूद सर्वे रिपोर्टस में बीजेपी को लोकसभा चुनाव में सीटों के नुकसान के अनुमान सामने आ रहे थे. एक वजह यह भी हो सकती है कि बीजेपी ने अब ऐसे नेताओं पर फोकस कर दिया है जिनका खास क्षेत्र में अपना जनाधार है और इस सांचे में चव्हाण भी फिट बैठते हैं.
अशोक चव्हाण पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण के बेटे हैं. कांग्रेस अगर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखती है तो इसके लिए भी श्रेय शंकरराव चव्हाण को ही दिया जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में अशोक चव्हाण ने मोदी लहर के बावजूद नांदेड़ लोकसभा सीट कांग्रेस की झोली में डालकर इसे साबित भी किया था. हालांकि, वह 2019 का चुनाव हार गए और अंतर 40 हजार वोट के करीब था. यह स्थिति तब थी जब बीजेपी और एकजुट शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार को 1 लाख 66 हजार से अधिक वोट मिले थे.
वंचित बहुजन अघाड़ी इस बार कांग्रेस के साथ महा विकास अघाड़ी में है. बदली परिस्थितियों में नांदेड़ की जंग बीजेपी को भी मुश्किल लग रही थी और शायद यही वजह है कि इस सीट का नाम भी पार्टी की लिस्ट में मुश्किल कैटेगरी में शामिल किया गया था. कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ में गिनी जाने वाली इस सीट से 1952 से लेकर अब तक हुए चुनावों में केवल चार बार ही गैर कांग्रेसी उम्मीदवार जीत सके. बीजेपी को 2004 और 2019 में जीत मिली थी तो वहीं 1977 में जनता पार्टी और 1989 में जनता दल ने यह सीट जीती थी. बीजेपी नेताओं को लगता है कि अशोक के पार्टी में आ जाने से यह सीट अब सबसे सुरक्षित सीटों की कैटेगरी में आ गई है.
मराठवाड़ा का गणित सेट करने की रणनीति
अशोक चव्हाण नांदेड़ में अच्छा प्रभाव रखते ही हैं, उनका मराठवाड़ा रीजन की सीटों पर अच्छा प्रभाव है. लोकसभा चुनाव के लिए पीएम मोदी ने बीजेपी के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. महाराष्ट्र बीजेपी भी अपने स्तर पर अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती और इसी कड़ी में फोकस उन इलाकों में जमीनी पकड़ रखने वाले दूसरे दलों के नेताओं को अपने साथ लाने पर है जहां पार्टी कमजोर रही है. अशोक चव्हाण के जरिए बीजेपी की रणनीति मराठवाड़ा का गणित सेट करने की होगी. इस रीजन में विधानसभा की भी 46 सीटें हैं.
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महाराष्ट्र कांग्रेस के जमीनी नेताओं में गिने जाने वाले चव्हाण का ग्रामीण इलाकों में अपना जनाधार माना जाता है. उनकी गिनती ऐसे नेताओं में होती थी जिन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता था. राहुल के एक अन्य करीबी मिलिंद देवड़ा के बाद अशोक के भी कांग्रेस छोड़ने से ग्रैंड ओल्ड पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर विपरीत असर पड़ सकता है और इसकी गूंज भी दिल्ली तक महसूस होगी. एक तरफ बीजेपी अपना कुनबा बढ़ाते हुए लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है वहीं विपक्ष का ध्यान चुनावी तैयारी के साथ अपना कुनबा बचाए रखने की ओर भी बंटेगा.
सर्वे रिपोर्ट्स के अनुमान क्या हैं?
बीजेपी महाराष्ट्र में जमीनी पकड़ रखने वाले नेताओं को साथ जोड़ने की रणनीति पर चल रही है तो उसका भी अपना गणित है. दरअसल, सर्वे रिपोर्ट्स में 'राम रथ' पर सवार बीजेपी को अगर किसी राज्य में सबसे अधिक नुकसान की आशंका है तो वह महाराष्ट्र ही है. इंडिया टुडे-सी वोटर के मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 48 में से 22 सीटें मिलने के अनुमान हैं. इस सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 16 और उसकी सहयोगी अजित पवार की एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को तीन-तीन सीटें मिल सकती हैं. महा विकास अघाड़ी को एनडीए से चार अधिक 26 सीटें मिलने के अनुमान जताए गए हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अकेले दम 23 सीटों पर जीत मिली थी.