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बाल ठाकरे का '80-20 फॉर्मूला'... जिसके सहारे उद्धव खेमा फिर से शिवसेना को खड़ा करने में जुटा

एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सियासत पर संकट गहरा गया है. शिवसेना के 40 से ज्यादा विधायक और एक दर्जन सांसद उद्धव का साथ छोड़कर एकनाथ शिंदे के साथ खड़े हो गए हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के खेमा शिवसेना को दोबारा के खड़ा करने के लिए पार्टी संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के सियासी नक्शे कदम पर चलने का फैसला किया.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 03 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव ठाकरे के तख्तापलट के बाद अब शिवसेना पर दावेदारी को लेकर जोर-आजमाइश हो रही है. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे खेमा अपने-अपने दावे कर रहे हैं. इस दोनों खेमे की लड़ाई पर चुनाव आयोग से होते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. कानूनी लड़ाई के साथ-साथ उद्धव खेमा दोबारा से शिवसेना के सियासी आधार को मजबूत करने में जुट गया, जिसके लिए बाला ठाकरे के 80-20 फॉर्मूला का सहारा ले रही है.  

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बता दें कि शिवसेना के 40 से ज्यादा विधायक और एक दर्जन सांसद उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर सीएम एकनाथ शिंदे  के साथ खड़े हैं. शिवसेना में हुई बगावत के चलते शिंदे के साथ पार्टी के कई बड़े नेताओं ने साथ छोड़ दिया है. शिवसेना के दादा भुसे, उदय सामंत, अब्दुल सत्तार, शंबुराज देसाई जैसे बड़े नेता ठाकरे का साथ छोड़ चुके हैं. इस तरह ठाणे से लेकर विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र और कोंकण तक के शिवसेना नेता उद्धव का साथ छोड़ चुके हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे खेमा दोबारा से अपना सियासी आधार को मजबूत करने की कवायद में है. 

शिवसेना को शिंदे के कब्जे से बचाने के लिए कानूनी लड़ाई के साथ-साथ जमीन पर उतरकर संघर्ष करने के लिए उद्धव खेमा पूरी तरह से कमर कस लिया है. मुंबई से बाहर निकलकर महाराष्ट्र की खाक छानने और शिवसेना को दोबारा से खड़ा करने की रणनीति पर ही आदित्य ठाकरे राज्य का दौरा कर रहे हैं. आदित्य ठाकरे ने पहला चरण भिवंडी से शिरडी तक की शिव संवाद यात्रा की, जिसके ठाणे नासिक, अहमदनगर, औरंगाबाद समेत कुछ जिलों का दौरा किया. इसके बाद दूसरे फेज में सावंतवाड़ी और कोल्हापुर के दौरे पर निकले.  

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आदित्य ठाकरे मुंबई के बाहर अपने पहले बड़े आउटरीच कार्यक्रम के तहत शिंदे और शिवसेना के एक बड़े वर्ग के विद्रोह के बाद सेना कैडर को एकजुट करने के प्रयास के तहत देखा जा रहा है. एकनाथ शिंदे को लेकर आदित्य ठाकरे काफी आक्रमक नजर आए थे. साथ ही ठाकरे ने बागी विधायकों के क्षेत्र में उनकी जमकर आलोचना की थी. आदित्य ठाकरे साथ ही अपने दादा और शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की राह पर चलने का संदेश दे रहे हैं. शिवसेना संगठन से जिन लोगों ने शिंदे साथ पार्टी छोड़ी है, उनकी जगह पर नए नेताओं को नियुक्त भी कर रहे हैं. 

उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद उनके गृह क्षेत्र ठाणे जनपद में शिवसेना का जिला अध्यक्ष का पद कबीर दिघे और उपनेता के पद पर अनीता बिरजे को नियुक्त किया है. कबीर दिघे एकनाथ शिंदे के सियासी गुरु आनंद दिघे के भतीजे हैं. आनंद दिघे के सियासी विरासत को उद्धव ने कैश कराने की रणनीति बनाई है. अनीता बिरजे ने सोमवार को बागी एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं से साफ कहा कि वह शिवसैनिकों की भावनाओं के साथ नहीं खेलें. 

अनिता बिरजे ने पार्टी में बगावत होने और पार्टी को दो धड़ों में बंटने के कारण शिवसैनिक कंफ्यूज थे. हालांकि नए नेताओं के नाम की घोषणा के बाद सभी शिवसैनिक राज्य और जिले के लोगों के लिए काम करने के लिए एक संकल्प लेकर सामने आए हैं. उन्होंने कहा कि हम 80 प्रतिशत सामाजिक कार्य और 20 प्रतिशत राजनीति के साथ दिवंगत शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे द्वारा बाताए गए रास्ते पर ही चलेंगे. 

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अनिता बिरजे ही नहीं बल्कि शिवसेना के युवा अध्यक्ष आदित्य ठाकरे भी अपनी यात्रा के दौरान बाला साहेब ठाकरे के इसी 80-20 के फॉर्मूले पर काम करने पर शिवसैनिकों को जोर दे रहे हैं. इसका मतलब साफ है कि उद्धव खेमा फिर एक बार फिर से बाल ठाकरे के सियासी नक्शे कदम पर चलकर अपने खोए हुए सियासी आधार को मजबूत करने पर जोर देगा. पार्टी के पास दोबारा से खड़े होने का यही फॉर्मूला बचा है. 

दरअसल, बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना का गठन किया था, उस समय में उन्होंने पार्टी में ऐसे लोगों को जोड़ा था, जिनका अपना कोई सियासी आधार नहीं था. आटो-टैक्सी चालक से लेकर मीलों में काम करने वाले मजदूरों तक को शामिल कर लिया था. बाल ठाकरे का शिवसैनिकों को साफ संदेश था कि 80 प्रतिशत सामाजिक कार्य और 20 प्रतिशत राजनीति के क्षेत्र में काम करेंगे. 

महाराष्ट्र और मुंबई में उन्होंने तब शिवसेना को खड़ा किया था जब वहां दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीयों की तूती बोलने लगी थी, कहना चाहिए कि उनकी सेना इससे लड़ी. मराठियों के बीच गर्व अहसास कराने का काम भी किया. सामाजिक क्षेत्र में  काम करने का नतीजा है कि राज्य में 80 फीसदी नौकरियों में अब मराठी ही हैं. बाल ठाकरे की छवि लोगों के बीच गढ़ी, जिसमें वो दुस्साहसी, बेधड़क और ताकतवर नेता के तौर पर उभरे. शिवसेना महाराष्ट्र के जिन क्षेत्रों में सत्ता में आई, चाहे नगर निगम रही या फिर पंचायत, उन्होंने सबसे पहले हर जगह पर मराठी और अपने लोगों को बैठाना व नौकरी देना शुरू किया. 

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बाल ठाकरे की राह से उद्धव ने चलने के संकेत दिए हैं तो उनकी पार्टी के नेता भी खुलकर यह बात करने लगे हैं, क्योंकि शिंदे ने बगावत का बिगुल फूंका उन्होंने यह कभी नहीं दिखाया कि वो सत्ता के लिए यह सब कर रहे हैं. शिंदे बार-बार उद्धव ठाकरे पर बालासाहेब ठाकरे के विचारधारा और हिंदुत्व के एजेंडे को छोड़ने का आरोप लगाया. एकनाथ को सत्ता का लोभ नहीं दिखाने का एक फायदा यह मिला कि उन्हें इस दौरान उद्धव और शिवसेना के कट्टर कार्यकर्ताओं का भी उतना विरोध नहीं देखना पड़ा, जिसकी उम्मीद शायद खुद उद्धव ठाकरे ने कर रखी थी. यही वजह है कि उद्धव खेमा फिर से बाल ठाकरे के पुराने फॉर्मूले पर लौटती नजर आ रही है? 

 

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