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महाराष्ट्र: लिव-इन पार्टनर के हत्यारे की बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 साल सजा घटाई, ये बताई वजह

अदालत ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और इसे मृतका की 12 वर्षीय बेटी के बयान के आधार पर 'विश्वसनीय और भरोसेमंद' बताया. बेंच ने कहा कि बाल गवाह को बहकाने की संभावना होती है, लेकिन घटना के दिन बच्ची 12 वर्ष की थी. उसके बयान की गहराई से जांच करने पर यह कल्पना या सिखाया हुआ नहीं लगता.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है
विद्या
  • मुंबई,
  • 26 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:28 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक अहम फैसले में कहा कि एक व्यक्ति, जिसे अपनी लिव-इन पार्टनर की बेरहमी से पिटाई कर हत्या करने का दोषी ठहराया गया था, पिछले 15 साल से ज़मानत पर था, इसलिए उसकी सजा 10 साल से घटाकर 6 साल की जा सकती है. जस्टिस जी.ए. सनप की बेंच ने कहा कि घटना के समय आरोपी की उम्र 29 वर्ष थी. अब 15 वर्ष बीत चुके हैं, ऐसे में 6 साल की सजा न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी. 

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हालांकि, अदालत ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और इसे मृतका की 12 वर्षीय बेटी के बयान के आधार पर 'विश्वसनीय और भरोसेमंद' बताया. बेंच ने कहा कि बाल गवाह को बहकाने की संभावना होती है, लेकिन घटना के दिन बच्ची 12 वर्ष की थी. उसके बयान की गहराई से जांच करने पर यह कल्पना या सिखाया हुआ नहीं लगता. उसकी जिरह में भी उसके बयान की मूल बातें प्रभावित नहीं हुई हैं.

क्या था मामला?

कोर्ट अमरावती निवासी महादेव खंडालकर द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2007 के हत्याकांड के मामले में दोषी ठहराया गया था. जिसमें उसके लिव इन पार्टनर ने 13 चोटों के कारण दम तोड़ दिया था. यह मामला अर्चना की मौत के इर्द-गिर्द घूमता है, जो अपनी पहली शादी टूटने के बाद महादेव खंडालकर के साथ रिश्ते में थी. अभियोजन पक्ष के अनुसार 10 नवंबर 2007 को महादेव खांडलकर ने अर्चना की वफादारी पर शक करते हुए बेल्ट और बेलन से उसकी बेरहमी से पिटाई की. यह हमला अमरावती स्थित उनके घर में हुआ, जहां अर्चना अपनी पहली शादी से हुए दो बच्चों के साथ रहती थी. खंडालकर ने घटना के दौरान टीवी और टेप रिकॉर्डर की आवाज़ बढ़ा दी और बच्चों को धमकाया, जिससे वे डरकर सोफे पर बैठकर घटना को देखते रहे. हमले में अर्चना को गंभीर चोटें आईं, जिसमें सिर पर घातक चोट भी शामिल थी.

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बेटी की गवाही से साबित हुआ अपराध

बच्चों ने पुलिस को बताया कि जब उनकी मां बेहोश हो गई, तो खंडालकर घर का दरवाजा बाहर से बंद करके चला गया. बच्चों ने अपनी मां को जगाने की कोशिश की, लेकिन जब वह होश में नहीं आईं, तो उन्होंने शोर मचाया. मकान मालिक की बेटी ने दरवाजा खोला और पुलिस को सूचना दी. ट्रायल कोर्ट ने खंडालकर को दोषी ठहराते हुए 10 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई थी.

दोनों पक्षों ने दिए ये तर्क

अपील के दौरान खंडालकर की ओर से पेश हुए वकील डी.एस. धरास्कर ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि एक बाल गवाह की गवाही पर आधारित थी, जिसके बारे में उनका दावा है कि कथित तौर पर सिखाए जाने के कारण यह अविश्वसनीय थी, यह भी तर्क दिया कि चोटें दुर्घटना के कारण हो सकती हैं. दूसरी ओर अतिरिक्त लोक अभियोजक एजी मेटे ने कहा कि एक 12 वर्षीय बच्ची मात्र कल्पना से इतनी विस्तृत घटना का वर्णन नहीं कर सकती. इसके अलावा, मेडिकल रिपोर्ट भी बच्ची के बयान की पुष्टि करती है, जिसमें मृतका के शरीर पर कई गहरे घाव और सिर पर घातक चोट दर्ज की गई थी. खंडालकर ने अपनी मौजूदगी स्वीकार की, लेकिन कहा कि उसने केवल 2-3 थप्पड़ मारे थे, क्योंकि अर्चना मोबाइल छुपा रही थी, जिस पर किसी अन्य पुरुष का फोन आ रहा था.

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अदालत ने क्या फैसला सुनाया?

अदालत ने माना कि बच्ची का बयान सटीक और साक्ष्यों से मेल खाता है, इसलिए दोषसिद्धि को बरकरार रखा. हालांकि 15 साल से ज़मानत पर रहने और आरोपी की उम्र को देखते हुए, सजा को 10 साल से घटाकर 6 साल कर दिया गया. अदालत ने आदेश दिया कि खंडालकर 15 दिनों के भीतर अमरावती सेशंस कोर्ट में आत्मसमर्पण करे और अपनी शेष सजा पूरी करे.

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