
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एडवोकेट शेख सादिक इसाक कुरैशी को जमानत दे दी, जिन्हें एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (ATS) ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. कुरैशी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 121-ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और 153-ए (समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ाने) के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) की धारा 13(1)(b) के तहत आरोप लगाए गए थे.
प्रॉसिक्यूशन ने आरोप लगाया था कि कुरैशी और उनके साथियों ने मुंबई में कई कार्यक्रम आयोजित किए, जिनका उद्देश्य भारत के संविधान को हटाकर अपने धर्म का शासन स्थापित करना था. इसके अलावा, यह भी दावा किया गया कि वकील होने के नाते कुरैशी कानून की खामियों को दिखाते थे और PFI के लिए कमजोर युवाओं की भर्ती करते थे.
PFI बैन के बाद गिरफ्तार हुए थे कुरैशी
कुरैशी के वकील मिहिर देसाई और हसनैन काज़ी ने तर्क दिया कि कुरैशी को 22 सितंबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था, जबकि PFI पर 27 सितंबर 2022 को प्रतिबंध लगाया गया. इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने UAPA के तहत कोई अपराध किया था.
जमानत पर कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने कहा कि जांच में PFI का एक 'रोडमैप डॉक्यूमेंट' मिला है, जिसमें 2047 तक भारत में इस्लामिक शासन लाने की योजना का उल्लेख है. हालांकि, अदालत को ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि कुरैशी इस डॉक्यूमेंट के बारे में जानते थे या इसके उद्देश्यों को पूरा करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे.
कोर्ट ने क्यों दी जमानत?
ट्रायल जल्दी खत्म होने की संभावना नहीं: चार्जशीट में 255 से ज्यादा गवाह हैं और अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं.
सबूतों की कमी: जांच में एडवोकेट कुरैशी के फोन से जूडो-कराटे की ट्रेनिंग वाले वीडियो और एक भाषण मिला, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि वे PFI की बड़ी योजना में शामिल थे.
पहले के केसों का संबंध नहीं: सरकार ने दलील दी कि कुरैशी के खिलाफ चार और मामले लंबित हैं, लेकिन अदालत ने पाया कि दो मामलों में वे पहले ही बरी हो चुके हैं और बाकी दो मामले एक दशक पुराने हैं.