
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे टोल संग्रह के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र के महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता को चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जी एस कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने उपस्थित होने का निर्देश दिया है.
अदालत उन चारों जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो 2005 के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पर आधारित है. याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि एक्सप्रेसवे पर किया जा रहा टोल संग्रह अगस्त 2019 के बाद अवैध घोषित किया जाना चाहिए.
पहले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) से पूछा था कि कब तक लोगों को इस सड़क पर टोल चुकाना है. एमएसआरडीसी ने जवाब दिया था कि 2030 तक टोल वसूला जाएगा क्योंकि परियोजना लागत पूरी तरह से वसूल नहीं हुई है. निगम ने कहा कि उन्हें पूंजी परिव्यय के लिए 22370 करोड़ रुपये की वसूली करनी थी.
मामले में याचिकाकर्ता के वकील प्रवीण वाटेगांवकर ने भी इस पूंजी परिव्यय पर सवाल उठाया. कोर्ट ने MSRDC से पूछा कि निर्माण की वास्तविक लागत और वार्षिक टोल 2004 क्या है? इस पर निगम के वकील मिलिंद साठे ने कहा कि परियोजना लागत के लिए 2004 में 3632 करोड़ रुपये वसूले जाने थे, हमें 15 साल के अनुबंध के लिए 918 करोड़ रुपये मिले. हम अभी तक उबर नहीं पाए हैं.
सुनवाई के बाद अदालत ने टोल वसूली के आरोपों पर जांच करवाने की मंशा जताई है. पीठ ने कहा कि हम पूरी तरह से जांच करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कैग को निर्देश देने का प्रस्ताव करते हैं.
एक्सप्रेसवे का निर्माण 1997 से 2004 के बीच किया गया था और उसके बाद इसके रखरखाव के लिए 15 साल का अनुबंध किया गया था. अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि एमएसआरडीसी 3632 करोड़ रुपये की परियोजना के कुल पूंजी परिव्यय को पुनर्प्राप्त नहीं कर सका क्योंकि एक्सप्रेसवे को 2004 में सार्वजनिक उपयोग के लिए खोल दिया गया था और जिसके परिणामस्वरूप, वसूली अब 22,000 करोड़ रुपये है.