
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपने 5 साल के बेटे के साथ गंभीर दुर्व्यवहार और उपेक्षा की आरोपी 28 वर्षीय मां को जमानत दे दी. न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की पीठ ने महिला की गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक खामियों और यौन उत्पीड़न के आरोपों की पुष्टि करने के लिए ठोस सबूत नहीं होने का हवाला देते हुए उसे जमानत देने का फैसला सुनाया.
महिला को आईपीसी, POCSO Act (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (किशोर न्याय अधिनियम) की विभिन्न धाराओं के तहत दहिसर पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट ने अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि महिला और उसके लिव-इन पार्टनर ने बच्चे पर अत्याचार और उसके साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे इंटरनल ब्लीडिंग और फ्रैक्चर सहित बच्चे को गंभीर चोटें आईं.
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पति ने दर्ज कराया था मामला
यह मामला महिला से अलग रह रहे उसके पति ने दर्ज कराया था. इस जोड़े की शादी 2017 में हुई थी और बच्चे का जन्म 2018 में हुआ था. पति का आरोप था कि जब भी उनके बीच झगड़ा होता था तो महिला अपना गुस्सा बच्चे पर निकालती थी. हालांकि पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'प्रथम दृष्टया, यह आरोप विश्वसनीय नहीं लगता क्योंकि इसके समर्थन में जो साक्ष्य पेश किए गए हैं वे इसकी पुष्टि नहीं करते. कोई मां अपने एक साल के बच्चे के साथ इतनी बेरहमी से पेश आएगी, जैसा कि आरोप लगाए गए हैं, इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता.'
पिता ने आरोप लगाया था कि जब उसने अपनी पत्नी से तलाक लेने का फैसला किया, तो वह परिवार को उनके मूल स्थान पर छोड़कर मुंबई में रहने आ गई. मुंबई में महिला कथित तौर पर एक अन्य व्यक्ति से मिली और उसके साथ रहने लगी. वह उस व्यक्ति के यहां डोमेस्टिक हेल्प के रूप में काम करने लगी. वह शख्स भी इस मामले में आरोपी है.
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पति ने आगे कहा कि 2023 में उसकी मां (महिला की सास) ने अपनी बहू (आरोपी महिला) को फोन किया और कहा कि वह बच्चे को ले जाए, क्योंकि उसका पिता (महिला का पति) उसकी अच्छे से देखभाल करने में असमर्थ है. महिला ने अपनी सास की बात मानी और बच्चे को अपने साथ मुंबई ले आई. इसके कुछ दिन बाद पति ने महिला और उसके लिव-इन पार्टनर के खिलाफ POCSO के तहत मामला दर्ज कराया.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, जब महिला ने लड़के को उसके पिता की हिरासत से लिया तो वह स्वस्थ स्थिति में था और कुछ महीने बाद, उसे गंभीर चोटें आईं, जिसमें सबड्यूरल हेमरेज, दौरे और कॉलरबोन की हड्डी टूटना शामिल थी. वाडिया अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट में चोट के निशान और एनल में घाव का उल्लेख किया गया है, जिससे यौन शोषण का संदेह पैदा होता है.
महिला के वकील का तर्क
हालांकि, महिला के वकील प्रशांत पांडे ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है. उन्होंने बताया कि महिला अपने बेटे को इलाज के लिए कई अस्पतालों में ले गई थी, जिससे पता चलता है कि उसने अपनी क्षमता और आर्थिक स्थिति के अनुसार बच्चे को अच्छा से अच्छा इलाज प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
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अदालत ने कहा कि महिला की गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया. उसे उसके अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी. न्यायमूर्ति जाधव ने बचाव पक्ष के इस तर्क में भी दम पाया कि यौन शोषण के आरोप एफआईआर में देरी से जोड़े गए, जिससे मामले की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ गईं. पीठ ने कहा कि महिला अपने बच्चे को जिन सभी अस्पतालों में ले गई थी, उनमें से केवल एक, वाडिया अस्पताल की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'यौन उत्पीड़न की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.'
कोर्ट ने महिला को क्यों दी जमानत?
पीठ ने कहा, 'वाडिया अस्पताल की रिपोर्ट में इससे ज्यादा कुछ नहीं है. रिकॉर्ड पर यौन शोषण की जांच से संबंधित कोई सबूत नहीं रखा गया है.' इस प्रकार पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि सिर्फ एनल के पास मौजूद पेरि एनल मार्क के आधार पर बिना किसी उचित मेडिकल इंवेस्टिगेशन या मेडिकल रिपोर्ट की पुष्टि केबाल यौन शोषण का मामला नहीं समझा जा सकता है. पीठ ने महिला को जमानत देते हुए कहा, 'ध्यान देने योग्य बात यह है कि वर्तमान मामले में बच्चा एनीमिया और कुपोषण से पीड़ित है, जो रिकॉर्ड पर मौजूद विभिन्न मेडिकल रिपोर्टों से स्पष्ट है. रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि बच्चों में पेरिनल घाव अक्सर कब्ज के कारण होता है. हार्ड स्टूल पास होने के कारण एनल एरिया में घाव हो जाता है, मल त्यागने के दौरान बच्चे को दर्द का कारण बनती हैं.'