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POCSO Act: विवादित फैसला देने वाली बॉम्बे HC की जज के प्रमोशन पर संकट के बादल

जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की दो साल पहले फरवरी 2019 में जिला न्यायालय से हाईकोर्ट में अस्थाई जज के तौर पर नियुक्ति हुई है. लेकिन बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण कानून यानी पॉक्सो एक्ट और अन्य कानूनी मामलों में उनके एक नहीं कई फैसले विवादित रहे हैं. हाल ही में एक हफ़्ते के भीतर यौन उत्पीड़न के मामलों में उनके दिए दो फैसलों पर जबरदस्त विवाद हो रहा है. 

बॉम्बे हाईकोर्ट. (फाइल फोटो) बॉम्बे हाईकोर्ट. (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST
  • पॉक्सो एक्ट के मामले में दिया था विवादित फैसला
  • SC कॉलेजियम कर रहा विचार, हो सकती है कार्रवाई
  • पहले भी सुना चुकी हैं कई विवादित फैसले

पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों की नई परिभाषा देने वाली बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की कुर्सी पर कानूनी संकट आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनका प्रमोशन रोकने का मन बना लिया है. अब या तो जस्टिस गनेड़ीवाला को स्थाई जज बनाने के लिए प्रोबेशन पीरियड को कुछ और सालों के लिए लंबित कर दिया जाएगा या फिर उनको डिमोट कर जिला न्यायालय भेजा जा सकता है. 

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2019 में हुई हाई कोर्ट में नियुक्ति

जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की दो साल पहले फरवरी 2019 में जिला न्यायालय से हाईकोर्ट में अस्थाई जज के तौर पर नियुक्ति हुई है. लेकिन बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण कानून यानी पॉक्सो एक्ट और अन्य कानूनी मामलों में उनके एक नहीं कई फैसले विवादित रहे हैं. हाल ही में एक हफ़्ते के भीतर यौन उत्पीड़न के मामलों में उनके दिए दो फैसलों पर जबरदस्त विवाद हो रहा है. 

इसी साल 19 जनवरी को जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने अपना फैसला सुनाते हुए पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए शख्स को इस दलील के साथ बरी कर दिया कि पीड़िता के कपड़े तो उतरे नहीं थे तो रेप हुआ कैसे माना जाएगा? रेप के लिए तो स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट होना ज़रूरी है. ये मामला अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा तो वह भी नाराज हो गया. 

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2017 में बॉम्बे HC कॉलेजियम ने की थी सिफारिश

एक और मामले में उन्होंने कहा कि घटनास्थल पर आरोपी के पैंट की जिप खुली होना पाया जाना इस आरोप को साबित नहीं करता कि रेप हुआ. दिलचस्प तथ्य ये भी है कि 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट कॉलेजियम ने जिला जज पुष्पा वी गनेड़ीवाला को हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त करने की सिफारिश की थी.

सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 2018 में उनके सहित पांच नामों पर विचार किया. लेकिन पुष्पा गनेड़ीवाला के फैसलों पर सुई अटक गई. कॉलेजियम ने उनके नाम पर अपना फैसला टालते हुए उनसे कुछ मुद्दों और कुछ फैसलों पर सफाई तलब की थी. जनवरी 2019 में कॉलेजियम ने उनको जिला न्यायालय से हाईकोर्ट का अतिरिक्त जज नियुक्त करने की सिफारिश कर दी. 

संविधान के अनुच्छेद 234 (1) के प्रावधानों के मुताबिक हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के तौर पर बार में प्रैक्टिस करने वाले अनुभवी वकील या फिर निचली न्यायपालिका के जजों की अधिकतम दो वर्ष तक नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट को सिफारिश भेजता है.

अतिरिक्त जज का प्रोबेशन पीरियड खत्म होने से पहले अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनको परमानेंट जज बनाए जाने को हरी झंडी दे दी तो ठीक वरना नियुक्ति निष्प्रभावी हो जाती है. परमानेंट जज बनाए जाने के बाद जज को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया के ज़रिए ही हटाया जा सकता है. 

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जस्टिस गनेड़ीवाला के मामले में अगर उनको स्थाई जज नहीं बनाया गया तो उनको अपनी पिछली नियुक्ति यानी जिला जज के रूप में अपने रिटायरमेंट की उम्र तक काम करना होगा. महाराष्ट्र के अमरावती जिले में 1969 में जन्मी पुष्पा गनेड़ीवाला के रिटायरमेंट में अभी करीब दस साल हैं. लेकिन उन्हें निचली अदालत में लौटना पड़ा तो सिर्फ साठ साल की आयु तक ही सेवा दे सकेंगी.

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