
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक महिला के मैटरनिटी लीव के मामले में सुनवाई की. हाई कोर्ट ने मंगलवार को BMC को निर्देश दिया कि महिला कर्मचारी मैटरनिटी लीव पर गई तो उसे नौकरी से बर्खास्त न किया जाए. कोर्ट ने महिला की बकाया सैलरी देने का भी निर्देश दिया.
महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो: कोर्ट
जस्टिस आरिफ डॉक्टर और सोमशेखर सुंदरेसन की पीठ ने BMC से कहा कि मानवीय आधार पर निगम को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि ऐसी याचिकाएं अदालत तक न पहुंचें. पीठ ने BMC को निर्देश दिया कि वह महिला के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे और अप्रैल महीने का उसका वेतन जारी करे जो उसे मैटरनिटी लीव पर जाने के कारण नहीं दिया गया है.
अदालत डॉ सीमांती बोस की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. डॉ सीमांती बोस कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल से प्रसूति एवं स्त्री रोग विज्ञान में डॉक्टर हैं. उनकी याचिका में कहा गया कि वह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में शिक्षक ग्रेड II (जूनियर सलाहकार) के रूप में नियुक्त होने के लिए पूरी तरह से योग्य हैं और उन्हें नगर निगम की ओर से संचालित भाभा अस्पताल में नियुक्त किया गया था.
सैलरी और नौकरी को लेकर याचिका दाखिल
सीमांती बोस की ओर से पेश वकील स्वराज जाधव ने कहा कि याचिका पर जल्द से जल्द सुनवाई की जानी चाहिए, क्योंकि याचिकाकर्ता बच्चे के जन्म के बाद छुट्टी पर चली गई है और उसे उसका वेतन भी नहीं दिया गया है. सीमांती के वकील ने इस बात का भी डर जताया कि मैटरनिटी लीव पर जाने के कारण याचिकाकर्ता की नौकरी छिन सकती है.
याचिकाकर्ता के वकील जाधव ने बताया कि भाभा अस्पताल ने उनके मुवक्किल की याचिका पर जवाब दाखिल किया था जो BMC के सर्कुलर पर निर्भर था, जिसमें कथित तौर पर कहा गया था कि संविदा कर्मचारी केवल इमरजेंसी छुट्टियों का लाभ ले सकते हैं, और चूंकि याचिकाकर्ता अस्पताल में केवल कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कार्यरत थीं, इसलिए वह मैटरनिटी लीव पर नहीं जा सकतीं.
BMC के एक विज्ञापन के अनुसार, 1 दिसंबर को याचिकाकर्ता सीमांती बोस को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त किया गया था. एक बार फिर काम शुरू करने के कुछ दिनों बाद उन्होंने अस्पताल को बताया कि वह मैटरनिटी लीव पर जाएंगी.
हालांकि, उन्हें बताया गया था कि महिला संविदा कर्मचारी मैटरनिटी लीव का लाभ नहीं ले सकती हैं और अगर वह छुट्टी पर जाना चाहती हैं, तो उन्हें सैलरी नहीं मिलेगी. इसके बाद याचिकाकर्ता सीमांती बोस ने सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश अटैच किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि संविदा कर्मचारी भी मैटरनिटी लीव पर जा सकते हैं.
इसके बावजूद अस्पताल ने इस साल अप्रैल में फिर से उसके नियुक्ति पत्र में कॉन्ट्रैक्ट सेक्शन का हवाला देते हुए मैटरनिटी लीव देने से इनकार कर दिया. इसके बाद सीमांती बोस ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया. याचिका पर अब जून के दूसरे सप्ताह में सुनवाई होगी.