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'महाराष्ट्र सरकार ने मेधा पाटकर की याचिका पर जिस तरह आपत्ति जताई, वह तुच्छ...', बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी

मेधा पाटकर ने एडवोकेट सतीश तालेकर और माधवी अयप्पन के माध्यम से याचिका दायर की है, जिसमें मांग की गई है कि सरकार पिछले साल बारिश के दौरान झोपड़ी को ध्वस्त करने और इस साल भी मानसून के दौरान ऐसा ही करने की कार्रवाई के लिए उचित आवास प्रदान किया जाए.

बॉम्बे हाई कोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट
विद्या
  • मुंबई,
  • 03 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 6:34 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने जिस तरह से सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की याचिका पर आपत्ति जताई है, वह तुच्छ है. उन्होंने मुंबई के मालवानी इलाके में अंबुजवाड़ी में झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति लाने में सरकार की निष्क्रियता के खिलाफ याचिका दायर की है.

मेधा पाटकर ने एडवोकेट सतीश तालेकर और माधवी अयप्पन के माध्यम से याचिका दायर की है, जिसमें मांग की गई है कि सरकार पिछले साल बारिश के दौरान झोपड़ी को ध्वस्त करने और इस साल भी मानसून के दौरान ऐसा ही करने की कार्रवाई के लिए उचित आवास प्रदान किया जाए.

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जब मेधा पाटकर की याचिका सुनवाई के लिए आई तो उनके वकील के कुछ कहने से पहले ही जस्टिस एमएस सोनक और कमल खता की कोर्ट में अतिरिक्त सरकारी वकील ने प्रारंभिक आपत्ति जताई और कहा कि वह इससे प्रभावित नहीं हैं, वह (मेधा पाटकर) वहां रहती भी नहीं हैं, उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए उन्हें यह रिट याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है.

हालांकि जस्टिस सोनक ने तुरंत कहा कि आप इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह तुच्छ बात है कि राज्य इस मुद्दे को उठा रहा है. शिकायत राज्य द्वारा अपने वैधानिक कर्तव्य का पालन न करने के संबंध में है, उन्होंने कहा कि संदेश जरूरी है, न कि संदेशवाहक. यह अच्छा नहीं लगता. इसके बाद बेंच ने याचिका की सुनवाई 13 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी. 

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दरअसल, अंबुजवाड़ी मालवानी क्षेत्र में स्थित लगभग 35 एकड़ भूमि है, जो कभी एक खाड़ी के किनारे मैंग्रोव कीचड़ से ढकी हुई थी, याचिका में कहा गया है कि आज भी पूरा क्षेत्र विकास योजना में हरित क्षेत्र के रूप में चिह्नित है. क्षेत्र में बसावट 1970 के दशक के आसपास शुरू हुई और याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में लगभग 58,000 लोग वहां रहते हैं और इस प्रकार यह आज मुंबई शहर में दूसरी सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती बन गई है.

2005 में बृहन्मुंबई नगर निगम ने पहली बार क्षेत्र में तोड़फोड़ की थी. मेधा पाटकर ने तब भी तोड़फोड़ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. विरोध के बाद झुग्गीवासियों को फिर से बसने की अनुमति दी गई और निवासियों द्वारा बिजली और पानी की आपूर्ति और स्वच्छता ब्लॉक जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रदान की गईं.

याचिका में कहा गया है कि यहां के निवासियों को विभिन्न झुग्गी पुनर्विकास योजनाओं के तहत बसाया जा सकता है, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में बड़े बिल्डर मालवानी पहुंचे और मंत्री की कंपनी भी अंबुजवाड़ी के पास निर्माण कर रही है, जिसका पहुंच मार्ग इस झुग्गी से होकर गुजरता है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि परियोजना की बाजार क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से एक मंत्री अपनी राजनीतिक शक्ति और प्रभाव का इस्तेमाल कर रहे हैं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि उनके इशारे पर ही जून 2023 और अब भी तोड़फोड़ अभियान चलाया गया है.

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हालांकि इस मामले में प्रतिवादी बनाए गए मंत्री ने अभी तक याचिका पर जवाब दाखिल नहीं किया है, लेकिन उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पहले, महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (MSHRC) के समक्ष मेधा पाटकर की याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है. MSHRC ने माना कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग सरकारी जमीन पर रह रहे थे, इसलिए अधिकारी कानूनन ऐसे अनधिकृत निर्माणों को हटाने के लिए बाध्य हैं. 

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