
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र जेल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 के दौरान पैरोल पर छोड़े गए एक कैदी द्वारा जमा कराई गई 20 हजार रुपये की राशि जब्त करना पूरी तरह गलत है. हाईकोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर ये राशि वापस नहीं की गई तो जेल अधिकारियों पर जुर्माना लगाया जाएगा.
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस नीला गोकले की बेंच ने अतिरिक्त लोक अभियोजक केवी सास्ते से कहा कि ये गरीब लोग हैं, उनकी जमा रकम रखकर आप क्या हासिल करेंगे? सास्ते जी, ये रकम वापस करनी ही होगी. आपके अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा.
कोर्ट ये टिप्पणी उस समय कर रही थी, जब वह हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए राजेंद्र पिसल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अगस्त 2019 में दोषी ठहराए गए पिसल को कोल्हापुर सेंट्रल जेल में रखा गया था, लेकिन कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के तहत कई कैदियों को पैरोल पर घर भेज दिया गया था. जो एक तरह की जेल छुट्टी थी. उन्हें स्थिति बेहतर होने पर वापस लौटने का आदेश दिया गया था.
पिसल का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानूनी सहायता के माध्यम से नियुक्त अधिवक्ता मनोज बडगूजर ने बेंच के समक्ष कहा कि दोषी को पैरोल के लिए 20,000 रुपये जमा करने का निर्देश दिया गया था, जिसका भुगतान उसने मई 2021 में किया था. वर्तमान में पिसल पैठण जेल में बंद हैं और उन्होंने जेल प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट को पत्र लिखा था, जिसे कोर्ट ने याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया.
वकील बडगूजर ने बताया कि रिहाई के समय पिसल को यह कहा गया था कि स्थिति सामान्य होने पर उन्हें समर्पण की सूचना दी जाएगी. 19 मई 2022 को जेल प्रशासन ने उन्हें पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि उनकी कोविड पैरोल 4 मई को खत्म हो गई है और उन्हें 19 मई तक सरेंडर करना है. ये पत्र उन्हें 31 मई को सातारा जिले के कराड में मिला और अगले 24 घंटे में ही उन्होंने समर्पण कर दिया. इसके बावजूद जेल प्रशासन ने उनके समर्पण को देरी माना और 20,000 रुपये की जमानत राशि जब्त कर ली.