
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आईटी नियमों में 2023 के संशोधनों को असंवैधानिक मानते हुए खारिज कर दिया. इन संशोधनों के तहत केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने कामकाज के बारे में 'फर्जी और भ्रामक' सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें खारिज करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट स्थापित करने की अनुमति दी गई थी.
आईटी नियमों में किए गए बदलावों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अतुल चंदुरकर की टाई-ब्रेकर बेंच ने कहा, "मेरा मानना है कि संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं".
न्यायमूर्ति चंदुरकर ने शुक्रवार को कहा कि नियमों ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है. न्यायाधीश ने कहा, "मैंने मामले पर विस्तार से विचार किया है. विवादित नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन करते हैं."
उन्होंने कहा कि नियमों में फर्जी, झूठा और भ्रामक शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है और इसलिए यह गलत है.
जनवरी 2024 में जस्टिस गौतम पटेल और डॉ नीला गोखले की खंडपीठ द्वारा अलग-अलग फैसला सुनाए जाने के बाद यह मामला टाई-ब्रेकर जज के पास आया. इस पर न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि आईटी एक्ट में संशोधन अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करते हैं और आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट नहीं करते हैं.
संशोधनों की हुई थी आलोचना
बता दें कि 2023 में, केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम 2021) में संशोधन किया था. लेकिन नियम 3, जो केंद्र को झूठी ऑनलाइन खबरों की पहचान करने के लिए फेक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार देता है, को आलोचना और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की गई. स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा सहित याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा किए गए संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 की शक्तियों (अल्ट्रा वायर्स) से परे थे और संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और किसी भी पेशे को अपनाने या कोई व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (ए) (जी)) का उल्लंघन करते थे.
बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ के थे दो मत
बॉम्बे हाईकोर्ट के जनवरी 2024 के फैसले में, जस्टिस पटेल ने माना था कि प्रस्तावित फैक्ट चेक यूनिट ऑनलाइन और प्रिंट कंटेंट के बीच अलग-अलग व्यवहार के कारण अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत मौलिक अधिकारों का सीधे तौर पर उल्लंघन करती है.
हालांकि, दूसरी ओर जस्टिस गोखले ने कहा था कि आईटी नियमों में संशोधन असंवैधानिक नहीं था, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए संभावित पूर्वाग्रह के आरोप निराधार थे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध नहीं था, न ही संशोधन उपयोगकर्ताओं के लिए किसी दंडात्मक परिणाम का सुझाव देते हैं.
टाई-ब्रेकर जज की राय के साथ, 2023 के संशोधनों को 2-1 के फैसले से खारिज कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिफिकेशन पर लगाई थी रोक
केंद्र सरकार ने 20 मार्च को आईटी रूल्स 2021 के तहत, पीआईबी के अंडर में फैक्ट चेक यूनिट बनाने का नोटिफिकेशन जारी किया था. लेकिन इस पर 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने ये फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फैक्ट चेक यूनिट का नोटिफिकेशन बॉम्बे हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले के बीच आया है, इसलिए इस पर अभी रोक लगनी चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है और इस पर नियम 3(1)(b)(5) के असर का विश्लेषण हाईकोर्ट में जरूरी है. इसलिए जब तक हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक नोटिफिकेशन पर रोक रहेगी.
क्या है केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट?
पिछले साल केंद्र सरकार ने इंटरमीडियरी गाइडलाइन और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स, 2021 में संशोधन किया था. ये नियम इंटरमीडियरीज को नियंत्रित करते हैं, जिनमें टेलीकॉम सर्विस, वेब होस्टिंग सर्विस, फेसबुक-यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गूगल जैसे सर्च इंजन आते हैं.
इन संशोधित नियमों में कहा गया कि सरकार के पास एक फैक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार होगा. अगर यूनिट को लगता है तो वो केंद्र सरकार के कामकाज से जुड़ी खबर को 'फर्जी', 'गलत' या 'भ्रामक' बता सकती है. अगर किसी खबर या पोस्ट को 'फर्जी', 'गलत' या 'भ्रामक' बताया जाता है तो फिर उसे हटाना होगा. न्यूज वेबसाइट सीधे इसके दायरे में नहीं आते, लेकिन सोशल मीडिया वेबसाइट और वेब होस्टिंग सर्विस आती हैं.
इसका मतलब ये हुआ कि गलत बताई गई खबर को इंटरनेट से हटाना होगा. हालांकि, आईटी नियमों के तहत इंटरमीडियरीज को लीगल इम्युनिटी यानी कानूनी प्रतिरक्षा भी मिली हुई है. लेकिन उन्हें ये भी ध्यान रखना होगा कि कोई गलत, फर्जी या भ्रामक कंटेंट पोस्ट न हो. फैक्ट चेक यूनिट की तरफ से अगर किसी कंटेंट या पोस्ट को फर्जी, गलत या भ्रामक बताया जाता है और तब भी उसे हटाया नहीं जाता, तो फिर इंटरमीडियरी के खिलाफ लीगल एक्शन लिया जा सकता है.