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नाव चलाकर स्कूल जाती छात्राओं का दर्द बॉम्बे HC तक पहुंचा, लिया स्वत संज्ञान

इंडिया टुडे समूह के 'मुंबई तक' की एक रिपोर्ट देखने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि हमारे पास छात्रों की पीड़ा और दुर्दशा व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं.

नाव से स्कूल जातीं छात्राएं. नाव से स्कूल जातीं छात्राएं.
विद्या
  • मुंबई,
  • 01 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:59 AM IST
  • 'मुंबई तक' की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
  • सतारा में नाव से नदी पार कर बच्चों के स्कूल जाने की दिखाई थी रिपोर्ट

इंडिया टुडे समूह के 'मुंबई तक' की एक रिपोर्ट देखने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि हमारे पास छात्रों की पीड़ा और दुर्दशा व्यक्त करने के लिए शब्दों की कमी है. दरअसल, मुंबई तक ने महाराष्ट्र के सतारा जिले में नाव से नदी पार कर बच्चों के स्कूल जाने की रिपोर्ट की थी. जस्टिस पीबी वराले और जस्टिस एएस किलोर की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्टरी को रोस्टर असाइनमेंट के अनुसार मामले को आगे के निर्देश के लिए उपयुक्त बेंच के समक्ष रखने के लिए कहा है.

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मुंबई तक के इम्तियाज मुझावर ने मराठी में सतारा की आंखें खोलने वाली एक रिपोर्ट की थी. सतारा जिला के जवाली तालुका के खिरवंडी गांव में छात्र खुद नाव चलाकर स्कूल जाते दिखे थे. स्कूली बच्चों पर बनी इस रिपोर्ट को देखने के बाद हाईकोर्ट ने बच्चों के साहस की भी तारीफ की. दरअलस, रिपोर्ट में दिखाया गया था कि छात्राओं को स्कूल पहुंचने के लिए नाव से यात्रा करनी पड़ती है. स्कूल सुबह 9 बजे शुरू होता है.

रिपोर्ट में दिखाया गया था कि छात्राएं खुद छोटी नाव चलाकर स्कूल जा रहीं हैं. छात्राओं का गांव संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है. छात्राओं को पहले कोयना बांध के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए एक नाव में यात्रा करनी होती है और उसके बाद दूसरे छोर से घने जंगल के माध्यम से लगभग 4 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है. इस क्षेत्र में भालू, बाघ आदि सहित जंगली जानवर भी रहते हैं.

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अदालत ने आगे कहा कि खबरों में दिखाई देने वाली स्थिति को देखते हुए हम कहते हैं कि एक तरफ बच्चियों के सामने आने वाली विपत्तियां और दूसरी तरफ इन छात्रों में पढ़ाई के लिए आगे बढ़ने का साहस, इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प है. महाराष्ट्र सरकार बच्चों की देखभाल करने की दिशा में काम कर सकती है. 

कोर्ट ने सतारा के बच्चों के हौसले की सराहना करते हुए कहा कि हमें 'हम सावित्री की बेटी हैं' कविता याद आ रही है. यह कहते हुए कोर्ट ने कविता की चार पंक्तियों का भी उल्लेख किया. 
"अब हमारे पंखों में शक्ति है
हम अब साबित करने के लिए बेताब हैं
अब किसी को देर न करने दें
हम सावित्री की बेटी हैं."

 

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