
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक कॉन्ट्रैक्टर को टेंडर की शर्तों को चुनौती देने वाली पीआईएल दायर करने की अनुमति देना 'न्यायालय की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग और पीआईएल की शुद्धता को प्रदूषित करने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है.'
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके बारे में कहा जा रहा था कि यह कथित तौर पर जनहित में दायर की गई थी, हालांकि याचिका स्पष्ट रूप से परोक्ष उद्देश्यों के साथ दायर की गई.
एमएमआरडीए के खिलाफ दायर की गई याचिका
यह याचिका नीलेश कांबले नाम के एक व्यक्ति ने मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) के खिलाफ अथॉरिटी की ओर से जारी किए गए एक टेंडर के खिलाफ शिकायत करते हुए दायर की गई थी. कांबले ने खुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता बताया जो टेंडर में मांगे गए बिजनेस के समान ही व्यवसाय करता है लेकिन वह टेंडर की एक शर्त से असंतुष्ट था.
कोर्ट ने कहा- इनफ़ इज़ इनफ़!
कांबले की ओर से पेश वकील इंदिरा लाब्डे की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, 'Enough is Enough'. बेंच ने कहा कि समाज या संगठन के किसी भी सदस्य को आम जनता के हित में याचिका दायर करने की अनुमति देते हुए लोकस के नियम में ढील दी गई है, खासकर उन लोगों के हित में जो किसी न किसी वजह से मुसीबत में हैं. इसका कारण गरीबी, अशिक्षा या सामाजित स्थिति हो सकती है.'
'अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग'
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मुद्दे में व्यावसायिक हित है और यह स्पष्ट है कि इस याचिका की कार्यवाही व्यक्तिगत कारण के लिए शुरू की गई है, न कि जनहित के लिए. बेंच ने कहा कि कांबले ने कहा था कि इस मामले में उनका कोई व्यक्तिगत हित नहीं है. इस तरह के बयान को अगर याचिकाकर्ता के विवरण के साथ जोड़कर देखा जाए तो यह बहुत अजीब है और याचिकाकर्ता को इस पीआईएल में कोई भी राहत पाने का अधिकार नहीं देता है.
पीठ ने कहा कि इस प्रकार एक कॉन्ट्रैक्टर को टेंडर की शर्तों को चुनौती देने वाली पीआईएल दायर करने की अनुमति देना हमारी राय में अदालत की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग और पीआईएल की धारा की शुद्धता को प्रदूषित करने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं है.