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पिता की दूसरी शादी पर सवाल उठा सकती है बेटी? जानें बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा

बेटी का कहना था कि उसकी सौतेली मां ने उसके पिता से शादी की और उनका गलत फायदा उठाकर उनकी संपत्तियां अपने नाम करवा ली. इस पर मां का आरोप था कि बेटी संपत्ति हड़पना चाहती है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो) बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
विद्या
  • मुंबई,
  • 19 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- पिता की दूसरी शादी पर सवाल उठा सकती है बेटी
  • पिता ने 2003 में पत्नी की मौत के बाद दूसरी शादी की थी
  • बेटी का आरोप, सौतेली मां ने पिता की संपत्ति पर कब्जा किया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि एक बेटी अपने पिता की दूसरी शादी की वैधता पर सवाल उठा सकती है. जस्टिस आरडी धनुका और जस्टिस वीजी बिष्ट की बेंच ने 66 साल की बेटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही. उसके पिता ने 2003 में अपनी पत्नी की मौत के बाद दूसरी शादी की थी. 

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2015 में उसके पिता की मौत हो चुकी है. 2016 में बेटी को ये एहसास हुआ कि उसकी सौतेली मां ने जब उसके पिता से शादी की थी, तब वो पहले से ही शादीशुदा थी और उसका तलाक भी नहीं हुआ था. बेटी का आरोप है कि उसकी सौतेली मां उसके पिता की मानसिक हालत और बीमारियों के बारे में पहले से जानती थी और इसके बावजूद उसने शादी कर इसका गलत फायदा उठाया. बेटी का ये भी कहना है कि शादी के बाद उसकी सौतेली मां ने पिता की संपत्तियों को अपने नाम करवा लिया. बेटी का ये भी कहना है कि उसकी सौतेली मां ने कई उन अचल संपत्तियों पर भी कब्जा कर लिया, जिस पर असल में उसका हक था. इसका नतीजा ये हुआ कि कानूनी रूप से जो उस संपत्ति के हकदार थे, उन्हें वो संपत्ति नहीं मिल सकी.

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बेटी ने इस पूरे मामले को लेकर फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल की और मांग की कि 24 जुलाई 2003 को उसके पिता और उसकी सौतेली मां के बीच हुई शादी को खारिज किया जाए.

मां का आरोप- बेटी संपत्ति हड़पना चाहती है

दूसरी तरफ सौतेली मां का कहना है कि 23 अगस्त 1984 को उसने अपने पति को उर्दू में तलाकनामा दे दिया था. उसका कहना है कि मुंबई में मैरिज रजिस्ट्रार ने सारे दस्तावेजों को जांचने के बाद ही उनकी शादी को रजिस्टर किया था. मां का आरोप है कि उसकी सौतेली बेटी सारी संपत्ति हड़पना चाहती है, इसलिए इस मुद्दे को उठा रही है. उसका कहना है कि अगर बेटी को शादी से आपत्ति थी ही, तो शादी के तीन साल के भीतर ही उसे अदालत जाना चाहिए था. 

मां का ये भी कहना है कि बेटी के पास शादी की वैधता को चुनौती देने का कोई अधिकार भी नहीं है. शादी की वैधता को केवल पक्षकार यानी पति या पत्नी ही चुनौती दे सकते हैं, कोई तीसरा पक्ष नहीं. और खासतौर से तब तो और नहीं, जब पति या पत्नी में से कोई एक जीवित न हो. 

हाईकोर्ट ने कहा- शादी की वैधता को चुनौती देना बेटी का अधिकार
फैमिली कोर्ट ने इस मामले में सौतेली मां के पक्ष में आदेश दिया था. फैमिली कोर्ट ने कहा था कि बेटी को शादी की वैधता को चुनौती देने का अधिकार नहीं है. पर अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को गलत ठहराया है. हाईकोर्ट का कहना है कि बेटी के पास अपने पिता की दूसरी शादी की वैधता पर सवाल उठाने का अधिकार है. हालांकि, हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि शादी की वैधता पर फैसला लेने का अधिकार फैमिली कोर्ट का ही है. इसलिए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को 6 महीने के भीतर इस मामले पर फैसला लेने का आदेश दिया है.

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