
'मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा', यूं तो ये डायलॉग किसी बंबईया हिन्दी फिल्मों जैसा है लेकिन मौजूदा राजनीति में इस डायलॉग को पॉपुलर करने का श्रेय महाराष्ट्र के 51 वर्षीय बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को जाता है. बुधवार रात को जब शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने जब सीएम पद से इस्तीफा दिया तो फडणवीस का ये पुराना वीडियो फिर से वायरल हो गया.
माना जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से धुरी बनकर लौट आए हैं. विरोधियों को चारों खाने चित कर, खुद को ज्यादा मजूबत कर. चर्चा है कि महाराष्ट्र के अगले सीएम देवेंद्र फडणवीस बनेंगे. 1 जुलाई को उनकी फिर से ताजपोशी हो सकती है.
'...मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा
'...मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा'. 1 दिसंबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा में देवेंद्र फडणवीस ने जब ये बयान दिया था तो उन्होंने संकेत दे दिए थे कि खेल खत्म नहीं हुआ है और वे वापस आएंगे. दरअसल नवंबर 2019 में जब फडणवीस ने रात के अंधेरे में सीएम पद की शपथ ली थी तो एनसीपी के साथ जोड़-तोड़ कर बनाई गई उनकी ये सरकार इस युवा बीजेपी नेता के लिए शर्मिंदगी का सबब लेकर आई.
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जूनियर पवार यानी कि अजित पवार सीनियर पवार यानी कि चाचा शरद पवार के प्रेशर के आगे टिक नहीं पाए और उन्होंने हड़बड़ी में बने फडणवीस की इस सरकार से सपोर्ट वापस ले लिया. फडणवीस की बड़ी बेइज्जती हुई और उन्हें 80 घंटे के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद ही विधानसभा में उन्होंने कहा था- मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा'.
इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में एक अभूतपूर्व प्रयोग हुआ. उद्धव ठाकरे सीएम बने और देवेंद्र फडणवीस नेता प्रतिपक्ष.
फडणवीस के सामने ब्रांड ठाकरे से भिड़ने की चुनौती
महाराष्ट्र की सियासत में पहली बार ठाकरे परिवार का कोई सदस्य मुख्यमंत्री बना. मराठा राजनीति में ये एक बड़ा घटनाक्रम था. महाराष्ट्र की सीएम की कुर्सी अब उस बाल ठाकरे के बेटे के हाथों में थी जिसके इशारे पर महाराष्ट्र चलता था. शिवसैनिकों के लिए ये अगाध खुशी का मौका था. हालांकि शिवसेना पर आरोप लगा था कि उसने इस कुर्सी के लिए अपनी विचारधारा ही दांव पर लगा दी. लेकिन शिवसेना के लिए ये एक सपने के साकार होने जैसा था. देवेंद्र फडणवीस के सामने इस ठाकरे ब्रांड से टक्कर लेने की चुनौती थी. इसके अलावा शिवसेना कुछ ही महीने पहले तक फडणवीस की सरकार में पार्टनर थी. फडणवीस के पास उद्धव सरकार पर हमले के लिए ऑप्शन सीमित था.
फडणवीस के सामने उद्धव पर हमले के लिए सबसे बड़ा हथियार विचारधारा से समझौते का था. फडणवीस ने इसी सूत्र को पकड़ा और विचारधारा के इसी भटकाव पर उद्धव के खिलाफ खेल गए.
बतौर नेता प्रतिपक्ष फडणवीस उद्धव सरकार पर लगातार हमलावर रहे. उन्होंने राज्य सरकार पर कोरोना मिसमैनेजमेंट का आरोप लगाते हुए उद्धव को कठघरे में खड़ा किया. सीएम उद्धव की जनता से दूरी को भी उन्होंने बार बार उठाया.
करप्शन-कोरोना पर आक्रामक रहे फडणवीस
देवेंद्र फडणवीस ने राज्य सरकार में करप्शन का मुद्दा भी उठाया. इस मुद्दे पर वे MVA सरकार पर आक्रामक रहे. बता दें कि इस वक्त MVA सरकार में मंत्री रहे दो नेता नवाब मलिक और अनिल देशमुख भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं. बता दें कि मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पुलिस अफसरों को मुंबई के रेस्तरां और बार से हर महीने 100 करोड़ रुपये की उगाही का काम दिया है. इस मुद्दे पर फडणवीस ने सरकार को चौतरफा घेरा.
फडणवीस पिछले ढाई सालों से महाराष्ट्र के इस प्रयोग को बेमेल, अवसरवादी और कुर्सी परस्त बता रहे थे. उन्हें उस मौके का इंतजार था जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को एक साथ बांधने वाली इस गठबंधन की रस्सियां चटकने लगें.
राज्यसभा चुनाव में फडणवीस का माइक्रो मैनेजमेंट
महाराष्ट्र की राजनीति में ये समय आया पहले राज्यसभा चुनाव के दौरान फिर विधान परिषद चुनाव के दौरान. राज्यसभा चुनाव के दौरान पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने माइक्रो मैनेजमेंट किया और MVA की एकता को ध्वस्त कर दिया.
11 जून को महाराष्ट्र में 6 सीटों पर राज्यसभा के चुनाव हुए. इस चुनाव के नतीजों के झटके ने सरकार में थरथरी मचा दी. MVA का दावा था कि उसके चार कैंडिडेट जीतेंगे लेकिन इसके उलट बीजेपी ने तीसरी सीट अपने नाम कर ली. भाजपा के धनंजय महादिक ने शिवसेना के संजय पवार को मात दे दी. इस जीत को सुनिश्चित करने में फडणवीस का बड़ा रोल रहा. उन्होंने निर्दलीय विधायकों को विश्वास में लिया और ये सुनिश्चित किया कि वे बीजेपी कैंडिडेट को वोट दें. इस जीत से बीजेपी और फडणवीस का विश्वास बढ़ा तो शिवसेना तिलमिला कर रह गई.
विधानपरिषद चुनाव में फडणवीस ने फेल किया MVA का गणित
10 दिन गुजरने के बाद 21 जून महाराष्ट्र की राजनीति फिर उबाल पर आई. इस बार मौका था विधान परिषद चुनाव का. देवेंद्र फडणवीस ने फिर शतरंज की बिसात बिछाई और विरोधी खेमे के कई विधायकों को ट्रैप कर लिया. चुनाव नतीजे आए तो MVA हैरान. 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार खड़े थे. क्रॉस वोटिंग हुई. बीजेपी के सभी 5 कैंडिडेट जीत गए, 2 एनसीपी के जीते, 2 शिवसेना के और एक कांग्रेस का. कांग्रेस के चंद्रकात हंडोरे चुनाव हार गए. गठबंधन में अविश्वास की दरार और चौड़ी हो गई.
विधानपरिषद चुनाव के नतीजे आए और महाराष्ट्र में एक बार सियासी हलचलें फिर से तेज हो गईं. 21 जून को उद्धव के मंत्री एकनाथ शिंदे अपने 11 विश्वस्त विधायकों के साथ 'नॉट रिचेबल' हो गए. शिवसेना में बगावत शुरू हो चुकी थी. ये विधायक बीजेपी शासित गुजरात के सूरत शहर में ली मेरेडियन होटल में तफरीह करते पाए गए.
वडोदरा में आधी रात...फडणवीस और शिंदे की मुलाकात
फडणवीस पूरी घटनाक्रम पर निगाहें गड़ाये बैठे थे. हालांकि बीजेपी का कहना था कि ये शिवसेना का अंदरूनी मामला है और इससे बीजेपी का कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन जैसा कि सियासत में फेस वैल्यू पर कुछ भी नहीं होता है. निश्चित रूप से बीजेपा का शिवसेना के इस बगावत का लेना-देना था.
इस पूरे घटनाक्रम पर फडणवीस की नजर थी और वे हर हलचल मॉनिटर कर रहे थे. आजतक की एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार 24-25 जून की आधी रात को वडोदरा में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की मुलाकात हुई. उस रात को अमित शाह भी वडोदरा में मौजूद थे. इस मुलाकात में महाराष्ट्र के लिए आगे का प्लान ऑफ एक्शन बना.
शिंदे से सपोर्ट और निर्दलीयों से मिली ताकत
इस बीच मुंबई में फडणवीस के घर पर बीजेपी की कई राउंड मीटिंग हुई. पर्दे के पीछे शिंदे से बीजेपी लगातार संपर्क में थी और फडणवीस पल पल की खबर रखे हुए थे. फडणवीस निर्दलीय विधायकों से भी संपर्क साध रहे थे उनसे समर्थन का भरोसा ले रहे थे. शिंदे से सपोर्ट और निर्दलीयों से मिली ताकत के आधार पर फडणवीस ने अपनी पोजिशन और मजबूत कर ली.
28 जून को इस घटनाक्रम का क्लाईमैक्स लगभग आ गया. फडणवीस सरकार बनाने की डील पर सील लगाने दिल्ली आए और पार्टी अध्यक्ष नड्डा और अमित शाह से मिले. इस मुलाकात ने उद्धव सरकार की किस्मत तय कर दी.
एकनाथ शिंदे उद्धव का पैचअप का हर ऑफर ठुकरा चुके थे. उसी रात को फडणवीस मुंबई लौटे, तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी कोविड का इलाज कराकर अस्पताल से बाहर आ चुके थे. राज्यपाल से रात बजे मिलकर फडणवीस ने मांग की कि वे अघाड़ी सरकार को बहुमत साबित करने को कहें.
29 जून यानी कि बुधवार सुबह को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार को सदन में बहुमत साबित करने को कहा और इसके लिए 30 जून की तारीख फिक्स कर दी. MVA सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गई. लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली. लंबी सुनवाई हुई और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने 9 बजे फैसला सुना ही दिया कि फ्लोर टेस्ट गुरुवार को ही होगा. फडणवीस का मिशन पूरा हुआ और थोड़ी ही देर बाद उद्धव ठाकरे ने फेसबुक पर इस्तीफे का ऐलान कर दिया.