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महायुति vs महाविकास अघाड़ी... दोनों गठबंधनों की पार्टियों में एक-दूसरे को लेकर इतना 'अविश्वास' क्यों है?

छगन भुजबल, शरद पवार से मिलने पहुंच गए तो चर्चा पालाबदल की चल निकली. अजित पवार हर सीट पर सर्वे कराने की बात कह रहे हैं तो वहीं बीजेपी 152 सीटें जीतने का टार्गेट सेट कर चुनाव की तैयारी में जुटी है. एमएलसी चुनाव के बाद विपक्षी गठबंधन में भी विश्वास का संकट बढ़ा है. चुनावी साल में महाराष्ट्र के सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधन के घटक दलों में एक-दूसरे को लेकर इतना अविश्वास क्यों है?

देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार (फाइल फोटो: PTI) देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार (फाइल फोटो: PTI)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 16 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 4:12 PM IST

महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावी साल में सियासी पारा हाई है. मराठा आरक्षण को लेकर माहौल गर्म है. इस मुद्दे पर मराठा और ओबीसी समाज के लोगों के बीच की खाई पाटने के लिए पहल करने की अपील करने के लिए एक दिन पहले जब छगन भुजबल, शरद पवार से मिलने पहुंचे तो उनके पालाबदल के कयास लगाए जाने लगे. इसी बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित) के प्रमुख अजित पवार ने ये ऐलान कर दिया कि हम हर सीट पर सर्वे कराएंगे. सत्ताधारी महायुति की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक साल पहले से ही 152 सीटें जीतने का टार्गेट सेट कर चुनावी तैयारियों में जुटी है.

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दूसरी तरफ, हाल के एमएलसी चुनाव में उद्धव ठाकरे की पार्टी ने उम्मीदवार का ऐलान किया तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने नाराजगी जताने में जरा भी देर नहीं लगाई. शरद पवार ने भी लाइन क्लियर कर दी है कि विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी बहुत अधिक समझौता करने वाली नहीं है. इन सबकी वजह से ये सवाल उठने लगे हैं कि चुनावी साल में गठबंधन सहयोगियों के बीच एक-दूसरे को लेकर इतना अविश्वास क्यों हैं?

अविश्वास के पीछे एमएलसी चुनाव!

महायुति और महाविकास अघाड़ी, दोनों ही गठबंधनों में शामिल पार्टियों के एक-दूसरे पर अविश्वास को एमएलसी चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है. हाल ही में हुए एमएलसी चुनाव में दोनों गठबंधनों की प्रमुख पार्टियों ने अपने-अपने विधायकों को अलग-अलग होटलों में रखा लेकिन तब भी कांग्रेस के सात विधायकों ने महायुति के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी. 2022 में हुए एमएलसी चुनाव में तब की एमवीए सरकार की अगुवा शिवसेना को एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत का सामना करना पड़ा था जिसने महाराष्ट्र में गठबंधनों की तस्वीर बदल दी थी. इसके एक साल बाद ही एमवीए के एक और घटक एनसीपी के 40 विधायकों को साथ लेकर अजित पवार भी महायुति के साथ हो लिए. अविश्वास की जड़ें बगावत, टूट और क्रॉस वोटिंग के इन सियासी घटनाक्रमों से भी जुड़ी हुई बताई जा रही हैं. 

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चुनाव बाद के समीकरण और मुख्यमंत्री की कुर्सी को भी एक वजह बताया जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि दोनों ही गठबंधनों में जितने भी दल हैं, सबकी लालसा है कि चुनाव बाद सीएम उनका ही बने. एकनाथ शिंदे को ये भरोसा नहीं है कि दोबारा महायुति सरकार बनने पर सीएम वही रहेंगे या नहीं. अजित पवार की महत्वाकांक्षा भी उनके महायुति में शामिल होने के समय भी सामने आई थी. वहीं, बीजेपी चाहती है कि उसके पास अकेले दम बहुमत रहे और सरकार बनाने-चलाने के लिए उसे किसी पर निर्भर न रहना पड़े. एमवीए में भी कुछ ऐसी ही कहानी है. उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार और नाना पटोले तक, सभी कहीं ना कहीं चुनाव बाद अपना सीएम चाहते हैं.

अधिक सीटें पाने की लड़ाई

महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं. अपना सीएम बनाने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा विधायक हों. ज्यादा से ज्यादा विधायक तभी होंगे जब पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सीटें भी केवल संख्या गिनाने वाली न हों, ऐसी हों जहां संबंधित पार्टी के जीतने की संभावनाएं भी ज्यादा हों. ऐसे में हर दल की यही रणनीति होगी कि सीएम की कुर्सी के इर्द-गिर्द पूरा ताना-बाना बुनकर सीट शेयरिंग के लिए बातचीत की मेज पर पहुंचा जाए. अजित पवार ने हर सीट पर सर्वे कराने का ऐलान करते हुए यह भी कहा है कि हमारी पार्टी एनडीए के घटक दल के रूप में ही चुनाव मैदान में जाएगी. हम अपनी-अपनी सर्वे रिपोर्ट लेकर साथ बैठेंगे और सीट शेयरिंग फॉर्मूला फाइनलाइज करेंगे.

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अजित का बयान भी इसी तरफ इशारा माना जा रहा है कि पार्टी एक-एक सीट पर अपनी स्थिति का आकलन कर मजबूत सीटें चिह्नित कर अधिक से अधिक सीटें पाने के लिए मोलभाव करेगी. दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना के दो फाड़ होने से पहले एमवीए की सबसे बड़ी पार्टी होने का हवाला देकर अधिक सीटें पाने की जुगत में है तो कांग्रेस विधानसभा में इस समय एमवीए का सबसे बड़ा घटक होने के आधार पर. शरद पवार की पार्टी भी लोकसभा चुनाव में बेहतर स्ट्राइक रेट की बुनियाद पर अधिक सीटों के लिए दावेदारी कर रही है. महाराष्ट्र के दोनों गठबंधनों में शामिल पार्टियां अभी से ही चुनाव बाद का ब्लूप्रिंट बनाने में जुटी हैं और अविश्वास की एक वजह यह भी हो सकता है.

कॉन्टेस्ट का बदला रूप

महाराष्ट्र के दोनों ही गठबंधनों की जो तस्वीर है, उसमें पेच ही पेच हैं. एक पेच कॉन्टेस्ट का बदला रूप भी है. सूबे में शिवसेना और बीजेपी के चुनावी गठबंधन का लंबा इतिहास रहा है. इनकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस और एनसीपी ही रहे हैं. महाराष्ट्र के चुनावों में मुख्य रूप से चार तरह के कॉन्टेस्ट देखने को मिलते रहे हैं- बीजेपी बनाम कांग्रेस, बीजेपी बनाम एनसीपी, शिवसेना बनाम एनसीपी और शिवसेना बनाम कांग्रेस.

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अब स्थिति ये है कि शिवसेना और एनसीपी के एक-एक धड़े दोनों गठबंधनों में हैं. जिन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच प्रतिद्वंदिता रही है, उन सीटों पर यह मान लें कि तस्वीर जस की तस रहेगी तब भी बीजेपी बनाम एनसीपी, शिवसेना बनाम एनसीपी के कॉन्टेस्ट वाली सीटों पर पेच फंसेगा. दोनों ही दलों के जो धड़े महायुति में हैं, वे अतीत का हवाला देकर ऐसी सीटें अपने पाले में करने के लिए पूरा जोर लगाएंगे.

ऐसी ही स्थिति का सामना एमवीए को भी उन सीटों पर करना पड़ सकता है जहां एनसीपी और कांग्रेस से शिवसेना के मुकाबले का इतिहास रहा है. 2019 के चुनाव की ही बात करें तो तब एकजुट शिवसेना और बीजेपी ने साथ चुनाव लड़ा था और कांग्रेस-एनसीपी साथ-साथ थे. गठबंधन सहयोगियों का ये विरोधाभासी अतीत भी एक-दूसरे पर अविश्वास की एक वजह हो सकती है.

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