
क्या तलाकशुदा महिला भी घरेलू हिंसा अधिनियम (PWDVA) के तहत महिला संरक्षण के तहत रखरखाव के दावे की हकदार है? इस सवाल के जवाब में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि एक बार इस तरह की हिंसा हो जाने के बाद तलाक ले लेने से पति आर्थिक देनदारी से मुक्त नहीं हो सकता. बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस आरजी अवाचट की पीठ ने यह बात एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कही. कांस्टेबल का 6 मई 2013 को विवाह हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ दो महीने से ज्यादा समय तक रहा.
महिला ने कांस्टेबल पर आरोप लगाया कि शादी के बाद कांस्टेबल ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया और उसे ससुराल से निकाल दिया. हालांकि, कांस्टेबल ने कोर्ट को अपनी अलग कहानी सुनाई. उसके मुताबिक पत्नी ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया. कांस्टेबल ने दावा किया कि महिला ससुराल छोड़कर मायके चली गई और फिर वापस नहीं लौटी. इसलिए उन्होंने अलग होने के लिए एक याचिका दायर की, जिसे अनुमति दे दी गई. तलाक के आदेश पर भी पत्नी ने आपत्ति नहीं जताई.
सिपाही की ओर से पेश वकील मच्छिंद्र पाटिल ने कहा कि वैवाहिक संबंध अस्तित्व में न होने के कारण, जिस दिन से तलाक का आदेश पारित हुआ है, पत्नी PWDVA के तहत किसी भी राहत की हकदार नहीं है. हालांकि जस्टिस अवाचट ने देखा कि पति, अपनी पत्नी के भरण-पोषण का इंतजाम करने के लिए वैधानिक दायित्व का उत्तरादायी था. चूंकि वह इस तरह की व्यवस्था नहीं कर सका, इसलिए पत्नी के पास PWDVA के तहत अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
कोर्ट ने कांस्टेबल को आदेश दिया कि वह पत्नी को मामूली गुजारा भत्ता दे. न्यायमूर्ति अवाचट ने कहा कि कांस्टेबल सौभाग्यशाली है कि उसे पत्नी को केवल 6,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करना होगा. इस समय वह 25,000 रुपये प्रति माह से अधिक का वेतन हर महीने हासिल कर रहा है.