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पुणे: गणपति की मूर्तियां बनाने वाले इस साल भी ऑर्डर बहुत कम होने से मायूस

लॉकडाउन की वजह से गणपति मूर्तियां बनाने वालों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना महामारी की वजह से गणेशोत्सव छोटे पैमाने पर ही मनाए जाने के आसार नजर आ रहे हैं.

गणपति की मूर्तियां बनाने वाले कम बिक्री से मायूस गणपति की मूर्तियां बनाने वाले कम बिक्री से मायूस
पंकज खेळकर
  • पुणे,
  • 26 मई 2021,
  • अपडेटेड 5:24 PM IST
  • गणपति की मूर्तियां बनाने वाले मायूस
  • कोरोना काल में घट गए ऑर्डर

महाराष्ट्र में गणेशोत्सव पर लोगों में जोश देखते ही बनता है. खास तौर पर मुंबई-पुणे जैसे बड़े शहरों में. लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी ने त्योहार पर ब्रेक लगा दिया. लोगों ने यहीं सोचा कि 2020 की कमी 2021 में गणेशोत्सव को धूमधाम से मना कर पूरी करेंगे. मगर कोरोना ने अभी तक पीछा नहीं छोड़ा. इस महामारी की दूसरी लहर ने और भी विकराल रूप दिखाया. नतीजा ये रहा कि महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यों में फिर से पूर्ण लॉकडाउन लगाना पड़ा. 

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गणेशोत्सव पर पंडालों में सजाने के लिए गणपति की मूर्तियों को बनाने का काम कुछ महीने पहले ही शुरू हो जाता है. पिछले साल सार्वजनिक पंडालों पर जहां रोक लगा दी गई थी, वहीं मूर्तियों का साइज फिक्स कर दिया था.

लॉकडाउन की वजह से गणपति मूर्तियां बनाने वालों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना महामारी की वजह से गणेशोत्सव छोटे पैमाने पर ही मनाए जाने के आसार नजर आ रहे हैं. ऐसे में मूर्तियां बनाने वालों को अब तक बहुत कम ही ऑर्डर मिल पाए हैं.  

गुरवारपेठ के पानघंटी चौक में स्थित न्यानेश्वर आर्ट्स के मुख्य मूर्तिकार नाना इंदारी की उम्र 49 साल है. वो पिछले 25 साल से गणपति मूर्तियां बनाते आ रहे हैं. 2019 तक यहां हर साल 2000 प्लास्टर की मूर्तिया बनाई जाती रहीं. इसी तरह न्यानेश्वर आर्ट्स की ओर से मिटटी की 800  मूर्तियां बनाई जाती थीं. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मूर्तियों के बहुत कम ऑर्डर मिलें.  

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अगर पुणे और आसपास के क्षेत्र की बात की जाए तो कोरोना महामारी की दस्तक से पहले हर साल गणेशोत्सव के लिए दस से पंद्रह लाख छोटी गणेश मूर्तियां बनती थीं. लेकिन अब यह आंकड़ा बहुत कम हो गया है. नाना इंदारी बताते हैं कि हर वर्ष उनकी आमदनी 5 से 6 लाख रुपये होती थी, लेकिन अब घटकर एक तिहाई ही रह गई है.  

मजदूरों का भी टोटा  

महामारी के  कारण दूसरे राज्यों से काम करने आए मजदूर अपने गांव लौट गए हैं. इससे भी पुणे में मूर्तियों की वर्कशॉप्स के काम पर फर्क पड़ा है. ऐसे में मूर्तिकारों को खुद ही मूर्तियों से जुड़े सारे काम करने पड़ रहे हैं. 

मूर्तिकार अभिषेक गवली ने बताया कि मूर्तियां बनाने का हुनर उन्होंने अपने पिता से सीखा था. गवली कहते हैं कि पिछले साल से जो मंदी शुरू हुई, वैसी स्थिति उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी. पिछले साल की ही 600 प्लास्टर की मूर्तियां उनकी वर्कशॉप में वैसी की वैसी रखी हैं. इस साल उनके इंदिरा नगर स्थित बिब्वेवाडी वर्कशॉप में सिर्फ इको फ्रैंडली मिटटी की मूर्तियां ही बनेंगी.

हर साल अभिषेक गवली मूर्तियों से 10 लाख रुपए तक कमाते थे लेकिन पिछले साल सिर्फ 3 लाख रुपये की आमदनी हुई. इस साल भी वैसे ही आसार हैं. 

नाना इंदारी  के मुताबिक पंडालों के लिए गणपति की विशाल मूर्तियों के ऑर्डर तो बिल्कुल नहीं है. जो ऑर्डर हैं वो घरों में स्थापित की जाने वाली गणपति की छोटी मूर्तियों के हैं. 2019 तक गणपति मूर्तियों के लिए बुकिंग मई महीना चढ़ते ही शुरू हो जाती थी. इस साल भी गणेशोत्सव पर अनिश्चितता को देखते हुए मूर्तियां बनाने वालों को काफी नुकसान होने की आशंका है. 

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दानपेटियों में आने वाला चढ़ावा घटा 

श्रीमंत दगडू शेठ गणेश मंडल के ट्रस्टी महेश सूर्यवंशी ने आजतक को बताया कि लगातार दूसरे वर्ष महामारी और लॉकडाउन की वजह से दानपेटी में आने वाला चढ़ावा भी पहले की तुलना में बहुत कम रह गया है. हर साल करीब 15 करोड़ रुपये दान और चढ़ावे में आते थे. लेकिन पिछले साल की तरह ही इस साल भी दान और चढ़ावा चार करोड़ रुपए के आस पास ही रहेगा. हालांकि मंडल की ओर से सामाजिक कार्यों में कोई कमी नहीं आने दी गई है. हर दिन तीन हजार मरीजों के लिए भोजन का प्रबंध श्रीमंत दगडू शेठ गणेश मंडल की ओर से किया जा रहा है.

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इसके अलावा मंडल ने पुणे शहर में मरीजों के लिए 9 एंबुलेंस उपलब्ध करा रखी हैं. इसी मंडल की ओर से शहर के कोंडवा इलाके में पिताश्री वृद्धाश्रम में 60 बुजुर्ग लोगो की देखभाल की जा रही है.  महेश सूर्यवंशी के मुताबिक लॉक़डाउन में मंदिर में श्रद्धालु नहीं आ सकते लेकिन मंदिर के सभी काम वैसे ही जारी हैं. यहां काम करने वाले कर्मचारों को समय पर वेतन देने के साथ उनका अच्छी तरह ख्याल रखा जा रहा है. 

पिछले साल से सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव का भव्य आयोजन रुका हुआ है. सावर्जनिक गणेशोत्सव की शुरुआत पुणे से ही हुई थी इसलिए यहां इसका खास महत्व माना जाता है. 

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पुणे से ही हुई थी सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत - 

दरअसल, गणेशोत्सव की पहचान ही महाराष्ट्र में सार्वजनिक तौर पर मनाए जाने की है. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने दस दिन के सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत पुणे के ही केसरीवाड़ा से 20 अक्टूबर 1893 को की थी. इससे पहले ब्रिटिश काल में सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को लोगों के साथ मिलकर एक जगह पर मनाने की अनुमति नहीं थी. लोग घरों पर ही गणपति की पूजा किया करते थे. तब लोकमान्य तिलक ने अपनी बात लोगों को एकजुट करने और उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ये अनोखा तरीका निकाला. उन्होंने केसरीवाड़ा में अपने निवास स्थान से पहले सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की. 

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