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जेएनयू विवादः मद्रास के बाद अब बॉम्बे आईआईटी के शिक्षकों में भी मतभेद

आईआईटी बॉम्बे के शिक्षकों के एक समूह ने उच्च शिक्षा के कुछ संस्थानों को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का गढ़ बताया है. शिक्षकों के इस समूह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अपील की है कि वे छात्रों को परिसरों में 'विचारधाराओं के युद्ध का पीड़ित' न बनने का संदेश दें.

मोनिका शर्मा/BHASHA
  • मुंबई,
  • 28 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 7:09 PM IST

आईआईटी बॉम्बे के शिक्षकों के एक समूह ने उच्च शिक्षा के कुछ संस्थानों को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का गढ़ बताया है. शिक्षकों के इस समूह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अपील की है कि वे छात्रों को परिसरों में 'विचारधाराओं के युद्ध का पीड़ित' न बनने का संदेश दें. आईआईटी मद्रास के दो शिक्षक समूहों ने भी कुछ वक्त पहले जेएनयू विवाद को लेकर अपने मतभेदों को सार्वजनिक किया था.

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मतभेदों का नतीजा
60 सदस्यों की यह याचिका दरअसल आईआईटी-बॉम्बे के ही शिक्षकों के एक अन्य समूह की ओर से बीते दिनों एक बयान जारी करने के बाद आई है. उस समूह ने जेएनयू विवाद में शामिल आंदोलन करने वाले छात्रों का समर्थन करते हुए कहा था कि सरकार को राष्ट्रवाद का अर्थ थोपना नहीं चाहिए.

राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का गढ़ बन रहे संस्थान
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में संस्थान के 60 सदस्यों ने दावा किया है कि जेएनयू प्रकरण राष्ट्र हित को कमजोर करता है और यह इस बात के पर्याप्त संकेत देता है कि कुछ समूह प्रमुख संस्थानों के युवा मस्तिष्कों का इस्तेमाल शांति एवं सदभाव के स्थान पर गाली-गलौच और उग्रता वाला माहौल बनाने के लिए करने की कोशिश कर रहे हैं. पत्र में कहा गया कि जेएनयू के अलावा, कई अन्य उच्च शिक्षा संस्थान ऐसी गतिविधियों के लिए शरणस्थली माने जाते हैं, जो कि राष्ट्रहित में नहीं हैं. कुछ मेधावी छात्र परिसर में सकारात्मक माहौल बनाने के बजाय, अकादमिक गतिविधयों में बाधा डालने वाली हरकतों में शरीक हो जाते हैं.

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पहले भी लिखे गए पत्र
इससे पहले जेएनयू विवाद पर ही दो अलग-अलग मतों के साथ आईआईटी, मद्रास के दो शिक्षक समूहों ने अपने विवाद को सार्वजनिक किया था. उन्होंने भी अपनी सोच जाहिर करते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखे थे.

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