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'यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा कानूनन सही नहीं': प्रकाश आंबेडकर ने किया दावा

अलगाववादी नेता यासीन मलिक को NIA कोर्ट ने टेरर फंडिंग के मामले में दोषी पाते हुए दो केसों में उम्रकैद की सजा सुनाई है. साथ ही यासीन मलिक पर 10 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है. यासीन मलिक को UAPA की धारा 18, 19, 20, 38 और 39 के तहत दोषी पाया गया.

प्रकाश आंबेडकर ने यूएपीए की धाराओं को लेकर सवाल उठाया है. प्रकाश आंबेडकर ने यूएपीए की धाराओं को लेकर सवाल उठाया है.
पंकज खेळकर
  • पुणे,
  • 28 मई 2022,
  • अपडेटेड 4:25 PM IST
  • आंबेडकर ने कहा- UAPA की धाराओं पर उठाए सवाल
  • भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते हैं प्रकाश

कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा दिए जाने के फैसले को अधिवक्ता प्रकाश आंबेडकर ने गलत बताया है. उन्होंने यूएपीए की धाराओं में यासीन को उम्रकैद की सजा पर सवाल उठाए. प्रकाश ने कहा कि एनआईए कोर्ट ने यासीन मलिक को यूएपीए की उन धाराओं के तहत दोषी ठहराया है, जिन्हें हमारा कानून अस्तित्वहीन मानता है. बता दें कि प्रकाश आंबेडकर भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते हैं. प्रकाश वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं.

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उन्होंने कहा कि धारा 124(1) और 124(ए) देशद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून (colonial law) है, जिसे लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा इंग्लैंड में समाप्त कर दिया गया है. अधिवक्ता प्रकाश आंबेडकर ने बताया कि संसद ने 44वें संशोधन में उपखंड 4 और उपखंड 7 को हटा दिया है. ऐसे में कोई उपखंड 4 या उपखंड 7 नहीं रहा है. जब संविधान में ये दो उपखंड नहीं हैं और 1967 के रोकथाम अधिनियम को संसद द्वारा अलग रखा गया है. ऐसे में इसे किसी भी कोर्ट द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये कानून मौजूद नहीं है.

लेकिन उस हिंसा को लेकर क्या, जिसमें इतने लोगों की जान चली गई और JKLF चीफ को इसके लिए दोषी ठहराया गया है. इस सवाल को प्रकाश आंबेडकर ने सही ठहराया और कहा कि ना सिर्फ कश्मीर में बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में बम विस्फोटों के कारण कई लोगों ने जान गंवाई है. इन ब्लास्ट को भारतीयों ने अंजाम दिया है या बाहर के लोगों ने, इसकी जांच की जरूरत है और सजा अदालत तय करेगी.

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आगे अधिवक्ता आंबेडकर ने कहा कि अगर हिंसा हुई है और अगर इस हिंसा के कारण लोग हताहत हुए हैं तो आईपीसी के तहत ऐसी धाराएं हैं जिनमें किसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है लेकिन यहां कोई उप खंड 4 नहीं है और अनुच्छेद 22 के उप खंड 7 को हटा दिया गया है. उन्होंने कहा कि आज प्रिवेंटिव डिटेशन पर कोई कानून नहीं है, इसलिए उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि वह जो इशारा कर रहे हैं, उसकी जांच की जाए. जब अनुच्छेद 22 का कोई उप खंड 4 या उप खंड 7 नहीं है तो यूएपीए के कोई मायने नहीं हैं.


 

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