
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर नए सियासी समीकरण बनते नजर आ रहे हैं. हाल ही में दिल्ली में शिवसेना सांसद संजय राउत और कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई बार एक साथ दिखाई दे रहे थे. वहीं मुंबई में भारतीय जनता पार्टी (BJP)और राज ठाकरे चुपके-चुपके मिलते हुए नजर आ रहे हैं. साल 2019 में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बीजेपी के खिलाफ थी, अब वहीं शिवसेना के खिलाफ बीजेपी के साथ आती मनसे नजर आ रही है.
दरअसल 2019 में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद भी उद्धव ठाकरे यह सफाई देते रहे कि बीजेपी ने उनके साथ वादा-खिलाफी की इसलिए उन्हें कांग्रेस के साथ जाकर सरकार बनानी पड़ी. सरकार बनाने के बाद भी कांग्रेस के साथ शिवसेना के रिश्ते कितने दिन चलेंगे, इस पर लगातार सवाल खड़े किए जा रहे थे.
कांग्रेस-शिवसेना के मजबूरी वाले गठबंधन पर महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले का बयान भी लोगों के लिए हैरान करने वाला है. उन्होंने यह कहकर सियासी हलचल बढ़ा दी थी कि कांग्रेस अपने बलबूते पर आगे का चुनाव लड़ेगी. माना यह जा रहा था कि नाना पटोले, राहुल गांधी के कहने पर यह सियासी बयानबाजी कर रहे थे.
क्या मैं राज कुंद्रा हूं... आखिर क्यों बोले राज ठाकरे?
क्यों बढ़ी थी कांग्रेस-शिवसेना में तकरार?
यह बयानबाजी दरअसल तब शुरू हुई जब अपने बयानों के लिए मशहूर शिवसेना नेता संजय राउत ने राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर कई सवाल खड़े कर दिए. ऐसे में माना जा रहा था कि कांग्रेस की ओर से बयानों को लेकर काउंटर अटैक किया जा रहा था. अब शिवसेना और राहुल गांधी दोनों को समझ आ गया है कि बीजेपी के वर्चस्ववाद के शिकार दोनों राजनीतिक पार्टियां हो सकती हैं. दोनों अतीत तो नहीं सुधार सकते हैं लेकिन वर्तमान और भविष्य को बचा सकते हैं.
पुरानी तल्खियों को भूल रही है कांग्रेस
कांग्रेस अपने वैभव को भूलकर उन राज्यों के छोटे दलों के साथ गठबंधन को मजबूत कर रही है, जहां वे कांग्रेस से बेहतर बीजेपी को टक्कर दे सकते हैं. वहां उन क्षेत्रीय दलों की ताकत को कांग्रेस मान रही है. राहुल गांधी सभी विपक्षी पार्टियों को जुटाकर, विचारधारा भुलाकर पार्टियों के साथ एकजुट हो रहे हैं.
1965 से लेकर 1989 तक विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ माहाौल तैयार किया. अब कांग्रेस अतीत भूलकर विपक्षी पार्टियों को मनाने में जुटी है. महाराष्ट्र में, जहां शिवसेना बेहद मजबूत पार्टी मानी जाती है, वहां कांग्रेस अलग जाने का लोकसभा चुनावों में जोखिम नहीं लेगी. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही है, जहां बड़ी संख्या में लोकसभा सीटे हैं.
शिवसेना की मजबूरी है कांग्रेस के साथ गठबंधन
दूसरी तरफ शिवसेना में एक वर्ग है, उसे लगता है कि अब केंद्र में भी बीजेपी के खिलाफ राजनिती करने का वक्त आ गया है. उस वर्ग को लगता है कि साथ में रहने के बाद भी बीजेपी उन्हें निगल सकती है. इससे बेहतर कमजोर कांग्रेस का साथ देना होगा, जो महाराष्ट्र में शिवसेना के लिए कम से कम कुछ साल के लिए चैलेंज नही बन सकती. अगर उद्धव ठाकरे की मौजुदा सरकार टिकेगी तो 2024 में बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव मुश्किल भरे हो सकते हैं.
बीजेपी और मनसे, दुश्मन का दुश्मन दोस्त
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि उत्तर भारतियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले राज ठाकरे को साथ में कैसे लिया जाए. लेकिन दोनों दलों को सियासी माहौल ने यह इशारा कर दिया है कि दोनों को साथ आना होगा अगर शिवसेना से लड़ाई लड़नी है. दरअसल बीजेपी के महाराष्ट्र के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल राज ठाकरे से मिले और उसके बाद बाहर निकलकर मीडिया को कहा कि जैसे 'दो हिंदू' एक-दूसरे से मिलने के बाद कहते वैसे हम फिर मिलेंगे.
राज ठाकरे और उत्तर भारतीयों का विरोध
चंद्रकांत पाटिल ने यह भी कहा कि राज ठाकरे उत्तर भारतीय विरोधी नहीं हैं. बीजेपी को भी इस बात का एहसास है कि 2022 में होने वाले महानगर पालिकाओं के चुनाव में अगर पार्टी शिवसेना और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार को मात नहीं देगी तो बेहद मुश्किल होगी.
फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं राज ठाकरे
मुंबई, ठाणे, कल्याण और नासिक में बीजेपी का सीधा मुकाबला शिवसेना से है. पुणे में नेशनिलस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से और नागपुर में कांग्रेस से. बीजेपी की मुख्य लड़ाई मुंबई में रहेगी, ऐसे में अगर शिवसेना और एनसीएसी अगर साथ आ गए, तो बीजेपी की राह मुश्किल हो जाएगी. ऐसे में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राज ठाकरे को साथ लेकर बीजेपी उन्हें राजनीतिक जीवनदान कर सकती है. लेकिन वे भी फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं.
मनसे के साथ जाने में बीजेपी को नहीं मुश्किल!
दरअसल 2014 में एक बार फिर बीजेपी से उन्होंने उम्मीद की थी कि मनसे को साथ लेकर चलने में बीजेपी को दिक्कत नहीं होगी. लेकिन तब बीजेपी ने शिवसेना से नाता न तोड़ने को ही समझदारी मानी. बीजेपी का साथ न मिलने से बेचैन राज ठाकरे ने 2019 में पवार के साथ जानने की भी कोशिश की. लेकिन 2019 में शिवसेना , कांग्रेस और एनसीपी के साथ आने से सभी समीकरण बदल गए.
राज ठाकरे अब भी संभलकर चलना चाहते हैं कि कहीं बीजेपी वापस शिवसेना को मनाने में कामयाब रही, तब उन्हें दोबारा मुंह की खानी पड़ेगी. लेकिन
मुंबई, ठाणे, पुणे और नासिक के लिए बीजेपी के साथ उनकी बातचीत धीमी गति से शुरु हो चुकी है. महाराष्ट्र में नए समीकरणों के दिन है.