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NCP के लिए 'शिंदे' साबित हुए अजित पवार, क्या शिवसेना जैसे होंगे दो टुकड़े?

महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. एनसीपी नेता अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया है. उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया है. अजित समेत एनसीपी के 9 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली है. अजित गुट ने 40 विधायकों का समर्थन होने का दावा किया है. अजित महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष के पद पर थे. महाराष्ट्र में यह पूरा घटनाक्रम एक घंटे के भीतर हुआ है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार. (फाइल फोटो) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार. (फाइल फोटो)
उदित नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 6:47 PM IST

महाराष्ट्र की राजनीति में सालभर बाद एक बार फिर बड़ा उलटफेर हुआ है. अबकी बार अजित पवार ने अपनी ही पार्टी NCP के खिलाफ बगावत की है और एनडीए गठबंधन से हाथ मिलाया है. बीजेपी-शिंदे गुट ने अजित को डिप्टी सीएम बनाया है. अजित पवार के पाला बदलने से राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. माना जा रहा है कि अजित भी एनसीपी के लिए एकनाथ शिंदे साबित हुए हैं. दरअसल, सालभर पहले एकनाथ शिंदे ने भी शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से बगावत कर दी थी और बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. 

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बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को हाथोंहाथ लिया और सीएम बनाकर बड़ा दांव खेला था. जबकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बनाए गए थे. अब अजित के आने से महाराष्ट्र की एनडीए सरकार में दो डिप्टी सीएम हो गए हैं. अजित गुट का दावा है कि उनके पास 40 एनसीपी विधायकों का समर्थन है. अजित समेत 9 विधायक मंत्रीपद की शपथ ले चुके हैं. इनमें धर्मराव अत्राम, सुनील वलसाड, हसन मुश्रीफ, दिलीप वलसे, छगन भुजबल, धनंजय मुंडे और महिला विधायक अदिति तटकरे का नाम शामिल है. प्रफुल्ल पटेल ने भी एनसीपी का साथ छोड़ा है. एनसीपी के 6 एमएलसी भी अजित के साथ जाने की चर्चा हैं.

2019 में भी अजित ने बगावत की थी

बताते चलें कि अजित पवार साल 2019 में भी चर्चा में आए थे. तब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आए थे और बीजेपी गठबंधन को बहुमत मिला था. लेकिन, उद्धव ठाकरे (शिवसेना) ने खुद को सीएम बनाने की शर्त रख दी, जिसके बाद यह गठबंधन मुश्किलों में आ गया. इस बीच, 23 नवंबर 2019 को अजित पवार ने एनसीपी से बगावत की और सुबह 8 बजे राजभवन में डिप्टी सीएम की शपथ ली थी. देवेंद्र फडणवीस ने सीएम बन गए थे. हालांकि, कुछ ही दिन एनसीपी चीफ शरद पवार ने अजित को मना लिया था. 

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शिंदे की बगावत से 943 दिन सीएम बन पाए थे उद्धव

बाद में एनसीपी चीफ शरद ने गठबंधन की पहल की और शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस समेत छोटे दलों का एक गठबंधन बनाया, जिसका नाम महाविकास अघाड़ी दिया गया. शिवसेना की सबसे ज्यादा सीटें होने से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया था. उस सरकार में अजित को डिप्टी सीएम बनाया गया था. यह सरकार 2 साल 213 दिन ही चल पाई और एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में शिवसेना से बगावत कर उद्धव की मुश्किलें बढ़ा दीं.

अजित ने बढ़ा दीं शरद की मुश्किलें

बाद में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ गठबंधन का प्रस्ताव दिया और सरकार बना ली. महाराष्ट्र में अब एक बार फिर अजित की बगावत ने शरद पवार और एनसीपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. रविवार को अचानक अजित पवार के बगावत करने और डिप्टी सीएम बनने की खबर आई. अजित ने जैसे ही शपथ ली तो राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गईं. 

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इसलिए नाराज थे अजित?

बताया जा रहा है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख के रूप में काम करने का अवसर नहीं दिए जाने के बाद अजित असंतुष्ट थे. इसलिए उन्होंने रविवार को बैठक बुलाई थी. इस बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले भी शामिल हुईं. हालांकि, सुले बैठक छोड़कर चली गईं थीं. संजय राउत का कहना है कि अजित के साथ गए विधायक अयोग्य घोषित होंगे. इस संबंध में स्पीकर को पार्टी की तरफ से पत्र लिखा जाएगा.

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तो शरद पवार के हाथ से निकल जाएगी पार्टी और सिंबल

अजित की बगावत के बाद शरद पवार के सामने भी पार्टी को बचाने का संकट खड़ा हो गया है. अगर दो तिहाई विधायक अजित के साथ चले आते हैं तो पार्टी पर शिवसेना की तरह संकट आ सकता है. महाराष्ट्र में एनसीपी के 53 विधायक हैं. ऐसे में दो तिहाई बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत होगी. वहीं, अजित गुट ने फिलहाल अभी 40 विधायकों का समर्थन देने का दावा किया है. अगर अजित जादुई आंकड़ा पार कर लेते हैं तो शरद पवार के हाथ से पार्टी और चुनाव चिह्न दोनों छिनने का खतरा बढ़ जाएगा.

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उद्धव के हाथ से चला गया सिंबल और पार्टी

बता दें कि महाराष्ट्र में शिंदे गुट के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन होने से उद्धव को बड़ा झटका लगा था. चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना था और पार्टी का सिंबल तीर-धनुष देने का फैसला लिया था. जबकि उद्धव को UBT शिवसेना का नया नाम और सिंबल दिया था.

सरकार में शामिल होने के बाद क्या बोले अजित पवार?

अजित पवार ने कहा, विकास को महत्व देना बहुत जरूरी है. पिछले 9 साल से पीएम मोदी जिस तरह से काम कर रहे हैं, जो विकास के लिए काफी काम कर रहे हैं. इसलिए मुझे लगा कि मुझे भी विकास की यात्रा में भागीदार होना चाहिए, इसलिए मैं एनडीए में शामिल होना चाहता था. विपक्ष की एकता से कुछ नहीं हो पाएगा, देश को एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो विकास के लिए कार्य कर सके. मोदी जी के खिलाफ विपक्ष बिखरा हुआ है. मुझे लगता है कि सबको मौका मिलना जरूरी है. नए लोग आगे आने चाहिए, इसके लिए हम एनसीपी में कोशिश करेंगे. मेरे साथ भुजबल (छगन) भी थे और सबने विकास को महत्व दिया. कई लोग तरह-तरह की बात करेंगे, उससे हमें मतलब नहीं है. जिसको जो बोलना है वह बोल सकता है, हम उस पर ध्यान नहीं देंगे. 

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नगालैंड में बीजेपी को समर्थन

उन्होंने कहा, आगे भी हम जिला परिषद के चुनाव हों या अन्य पंचायत चुनाव... हम अपनी पार्टी (NCP) के सिंबल पर लड़ेंगे. आपको याद होगा कि नगालैंड में भी एनसीपी के 7 विधायक चुनकर आए थे और उन्होंने बीजेपी सरकार में विकास की खातिर शामिल होने का फैसला किया है. पार्टी का नाम और सिंबल भी मेरे पास ही रहेगा. मैंने बाकी विधायकों से भी संपर्क किया है और कई सारे विधायक आज शाम तक यहां पहुंचेंगे. एनसीपी पार्टी हमारे साथ है. हम एनसीपी पार्टी के रूप में शामिल हुए हैं. एनसीपी का नाम और चुनाव चिन्ह हमारे पास है. हम एनसीपी के नाम और चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव लड़ेंगे.

महाराष्ट्र में 2019 में क्या हुआ था...

महाराष्ट्र में 288 सीटों पर चुनाव हुए थे. बीजेपी 105 सीटों और शिवसेना 56 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को सरकार बनाने का स्पष्ट जनादेश मिला था. लेकिन 24 अक्टूबर 2019 को नतीजों के बाद दोनों में रार हो गई. दोनों दलों में पावर शेयरिंग को लेकर खींचतान शुरू हो गई. शिवसेना ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा ठोक दिया और कहा कि अमित शाह ने चुनाव से पहले आश्वासन दिया था. शिवसेना की डिमांड थी कि ढाई-ढाई साल के लिए दोनों पार्टियों से सीएम चुना जाए. बीजेपी इस पर राजी नहीं थी. राज्य में सरकार बनाने के लिए 145 सीट चाहिए थीं. 

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2019 में क्या रहे चुनावी नतीजे? 

सबसे ज्यादा 105 सीटें बीजेपी को मिली थीं. उसके बाद शिवसेना (अविभाजित) को 56 सीटें मिली थीं. एनसीपी को 53 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं. बहुजन विकास अघाड़ी को तीन, समाजवादी पार्टी को दो सीटें, प्रहार जनशक्ति पार्टी को दो सीटें मिली थीं. पीडब्ल्यूपीआई को एक और निर्दलीय को आठ सीटें मिली थी.

राष्ट्रपति शासन हटा और अजित बन गए डिप्टी सीएम

किसी भी पार्टी के पास बहुमत का जादूई नंबर नहीं था. फिर केंद्र सरकार ने राज्यपाल की सिफारिश पर 12 नवंबर 2019 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया. उसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) नाम से गठबंधन बनाया और शरद पवार ने ऐलान किया कि MVA की तरफ से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे. इस बीच, 23 नवंबर 2019 को अचानक राष्ट्रपति शासन हटाकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस को सीएम और अजित पवार को डिप्टी सीएम की शपथ दिलवा दी. 

सिर्फ तीन दिन चल सकी थी देवेंद्र-अजित की सरकार

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मोर्चा संभाला और और NCP के विधायकों को एकजुट कर लिया. इस बीच शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने का आदेश दिया. लेकिन सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही फडणवीस ने पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि NCP ने अब सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ये सरकार सिर्फ तीन दिन चल सकी. बाद में महा विकास अघाड़ी (MVA) की सरकार बनी. इसमें कांग्रेस, शिवसेना और NCP तीनों शामिल थीं. MVA ने उद्धव ठाकरे को सीएम बनाया.

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महाराष्ट्र में 2022 में क्या हुआ था?

पिछले साल जून के महीने में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 15 विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी. शिंदे समेत शिवसेना के 16 विधायक पहले सूरत फिर गुवाहाटी में जाकर ठहरे थे. उस समय उद्धव ने शिंदे को वापस आने और बैठकर बातचीत का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इसे शिंदे ने स्वीकार नहीं किया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. राज्यपाल ने शिंदे-बीजेपी गठबंधन सरकार को मान्यता देकर शपथ दिला दी थी. ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए याचिका दायर की थी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. 

जब उद्धव ठाकरे ने बनाई सरकार? 

साल 2019 चुनाव नतीजे के बाद मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना की दावेदारी के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन टूट गया था और उद्धव ठाकरे ने अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, जिसे सपा ने भी समर्थन दिया था. हालांकि, ढाई साल के बाद जून 2022 में शिंदे ने 15 शिवसेना विधायकों के साथ बगावत कर दी थी और पार्टी के 25 विधायकों ने बाद में साथ दिया था. इस तरह शिंदे के साथ 40 विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिलाया और शिंदे मुख्यमंत्री बने. 

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शिंदे-फडणवीस को अब तक 162 विधायकों का समर्थन? 

सियासी समीकरणों और दलीय स्थिति पर नजर डालें तो एनडीए गठबंधन के साथ जो दल हैं उनके विधायकों की संख्या 162 हैं, जो इस प्रकार है- 
1- भाजपा- 105
2- शिवसेना (शिंदे गुट)- 40 
3- प्रखर जनशक्ति पार्टी- 2 
4- अन्य दल- 3 
5- निर्दलीय 12

*अब अजित पवार की बगावत के बाद आंकड़ों में बदलाव होगा. अजित के समर्थन में आने वाले विधायकों से एनडीए की स्थिति मजबूत होगी. लेकिन, एनसीपी से आने वाले उन विधायकों की संख्या दो तिहाई होना जरूरी है. वरना, अयोग्यता का खतरा बढ़ जाएगा.

एमवीए के पास अब तक 121 विधायक थे 

विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) की बात करें तो उनके पास अब तक कुल 121 विधायक थे, जिसमें सबसे ज्यादा विधायक (53) एनसीपी के थे. एमवीए गठबंधन में शामिल दलों और उनके विधायकों की संख्या इस प्रकार है- 
1- एनसीपी- 53
2- कांग्रेस- 45 
3- शिवसेना (उद्धव गुट)- 17 
4- सपा- 2 
5- अन्य दल- 4

*अभी अजित पवार समेत 9 एनसीपी नेताओं ने शपथ ली है. यह संख्या आगे बढ़ सकती है. हालांकि, संख्या स्पष्ट होने के बाद एनसीपी के विधायकों की स्थिति साफ हो सकेगी.

पांच विधायकों का किसी को समर्थन नहीं 

पांच विधायक किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. इसमें बहुजन विकास अघाड़ी के तीन विधायक और एआईएमआईएम के 2 विधायक हैं, जो ना तो एमवीए गठबंधन का हिस्सा हैं और ना ही एनडीए गठबंधन में शामिल हैं.

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