
आजादी के सात दशक बाद भी महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य में हजारों लोगों को पीने योग्य पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. अकोला जिले के बालापुर, तेल्हारा और अकोट तहसील के सलाइन बेल्ट में हालात बेहद गंभीर हैं. यहां 60 से अधिक गांवों में लोगों को खारा पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे सैकड़ों लोग किडनी फेलियर और अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार हो गए हैं.
आजतक इस मुद्दे पर हालात का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंचा. अकोला जिले के बालापुर तालुका के सावरपाटी गांव में लोग सालों से खारा पानी पीने के चलते गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. गांव के लोग नल और बोरवेल का पानी पीने को मजबूर हैं, जो पूरी तरह से क्षारयुक्त है. नतीजा—कई लोगों की किडनी खराब हो चुकी है. गांव के प्रशांत काले की किडनी फेल हो गई. इलाज में 12 लाख रुपये खर्च हुए, जिसके लिए उन्हें अपनी खेती की जमीन बेचनी पड़ी, लेकिन उनकी हालत नहीं सुधरी.
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खारा पानी पीने से खराब हो रही लोगों की किडनी
इसी गांव के मयूर विरोकर भी लगातार खारा पानी का सेवन करके से किडनी स्टोन की बीमारी का सामना कर रहे हैं. उनका इलाज चल रहा है. सिर्फ सावरपाटी ही नहीं, बालापुर तहसील के निमकर्दा टाकली गांव में भी खारे पानी का कहर जारी है. शोभा साबले ने एक साल के भीतर अपने बेटे प्रकाश और पति गजानन को किडनी फेलियर के कारण खो दिया. साबले ने आजतक से बातचीत में कहा, 'गांव का पानी खारा है, जिससे मेरे बेटे और पति दोनों की किडनी खराब हो गई. इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. पीने के लिए मीठा पानी तक नहीं मिलता.'
सावरपाटी गांव वालों का कहना है कि प्रशासन सालों से सिर्फ आश्वासन दे रहा है, लेकिन हालात जस के तस हैं. मीठे पानी के लिए लोग 15-20 किलोमीटर दूर जाकर पानी लाते हैं या फिर महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर हैं. स्थानीय निवासी पुरुषोत्तम घोगरे ने कहा, 'पानी इतना खारा है कि पीते ही मुंह सूख जाता है. गांव के लोग बीमार हो रहे हैं, लेकिन प्रशासन कुछ नहीं कर रहा.' इस मामले को लेकर स्थानीय पत्रकार देवानंद पाटिल ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, 'हर सरकार वादा करती है, लेकिन सत्ता में आते ही इस समस्या को भूल जाती है. गांव वालों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.' बालापुर पंचायत समिति के अतिरिक्त ब्लॉक विकास अधिकारी विनोद काले ने इस मामले में गांवों में मेडिकल जांच कराने का आश्वासन दिया. इस दौरान गांव वालों ने उन्हें पानी पिलाया जो बेहद खारा था, जिसे उन्होंने मुंह में लेते ही बाहर थूक दिया. बालापुर बीडीओ विनोद काले ने आजतक से कहा, 'जल्द ही गांवों में मेडिकल कैंप लगाकर किडनी रोगियों की जांच की जाएगी. पानी की गुणवत्ता भी टेस्ट कराई जाएगी.'
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वहीं, बालापुर विधानसभा क्षेत्र के शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) विधायक नितिन देशमुख ने आरोप लगाया कि सत्ता बदलने के कारण जलापूर्ति योजना को रोक दिया गया, जिससे यह समस्या और बढ़ गई. उन्होंने कहा, 'हजब हम सत्ता में थे तो हमने 69 गांवों में जलापूर्ति योजना की मंजूरी को लेकर काम शुरू किया था, लेकिन सरकार बदलने के बाद यह काम रुक गया. अब दोबारा इसे शुरू कर दिया गया है, अगले 4-5 महीने में लोगों को मीठा पानी मिलेगा.' गांव वाले सरकार और प्रशासन से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं. सवाल यह है कि क्या सरकार इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान करेगी या फिर ग्रामीणों को ऐसे ही खारे पानी के साथ जिंदा रहने के लिए छोड़ दिया जाएगा?