
हर्षवर्धन पाटिल ने कहा कि 100 दिन में सिर्फ मोदी सरकार में ही अनुच्छेद 370 हटाने जैसा मजबूत फैसला लेने की हिम्मत है.
हर्षवर्धन पाटिल का कांग्रेस छोड़ना, पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. पाटिल राज्य में कांग्रेस के शीर्ष नेता रहे हैं. वे पुणे जिले की इंदापूर विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे हैं. हर्षवर्धन पाटिल के पास 1995 से 2014 तक सभी राज्य सरकारों में मंत्री के रूप में सेवा देने का भी रिकॉर्ड है.
1995, 1999 और 2004 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की. 2009 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1995 में उन्होंने शिवसेना-बीजेपी सरकार का समर्थन किया था और उन्हें मंत्री भी बनाया गया था.
स्थानीय राजनीति में पाटिल की लड़ाई हमेशा शरद पवार की पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) के खिलाफ रही है. 2014 में जब कांग्रेस और एनसीपी ने गठबंधन तोड़ लिया था तो हर्षवर्धन पाटिल एनसीपी उम्मीदवार दत्ता भारन से हार गए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में पाटिल ने एनसीपी के साथ समझौता किया और बारामती लोकसभा सीट पर सुप्रिया सुले का समर्थन किया.
पाटिल एनसीपी के कांग्रेस के साथ असहयोगात्मक रवैये से नाराज थे. उन्होंने एनसीपी पर आरोप लगाया था कि एनसीपी स्थानीय स्तर पर कांग्रेस की मदद नहीं कर रही है. पाटिल इंदापूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन स्थानीय एनसीपी नेता उन्हें सीट नहीं देना चाहते हैं. इसी बात से नाराज होकर पाटिल ने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया.
हालांकि बीजेपी में शामिल होने के बाद भी उनकी राह आसान नहीं होने वाली है. इंदापुर निर्वाचन क्षेत्र बीजेपी-शिवसेना के बंटवारे में शिवसेना हक में गई है. ऐसे में अगर वे इसी सीट पर कबिज होना चाहते हैं, तो बीजेपी को पहले शिवसेना की इजाजत लेनी पड़ेगी, और सीट शेयरिंग पर सहमति बनानी पड़ेगी.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों का जल्द ऐलान होने वाला है लेकिन इससे पहले ही कांग्रेस पार्टी में इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है. मंगलावर को कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री कृपाशंकर सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. साथ ही फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.
लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में इस्तीफों का दौर जारी है. कांग्रेस पार्टी में स्थिरता नहीं आ पा रही है. अगर कांग्रेस में इस्तीफों का दौर थमता नहीं है तो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को खासी दिक्कत होने वाली है. जहां बीजेपी में बड़े राजनीतिक दिग्गजों का शामिल होना जारी है, वहीं कांग्रेस अभी तक नेतृत्व के संकट से जूझ रही है.