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महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच कोल्ड वॉर? ये फैसले दे रहे संकेत

देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे अपनी-अपनी ताकत दिखाने के मौके ढूंढते नजर आ रहे हैं. लेकिन जिस तरीके से मुख्यमंत्री कार्यालय ने सभी तरफ से एकनाथ शिंदे और उनके मंत्रियों की नाकाबंदी की है, वह देखते हुए इनके संबंधों मे सुधार आने की गुंजाइश कम होती नजर आ रही है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (PTI Photo) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (PTI Photo)
अभिजीत करंडे
  • मुंबई,
  • 21 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:48 PM IST

महाराष्ट्र की राजनीति में देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच चल रहे शीतयुद्ध की चर्चा जोरों पर है. इसी बीच मुख्यमंत्री कार्यालय ने एकनाथ शिंदे के कार्यकाल में पारित हुए जालना जिले के खारपुडी के 900 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दिए हैं. एक तरीके से यह एकनाथ शिंदे के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है और शिवसेना-बीजेपी के बीच संबंध नाजुक मोड़ लेते नजर आ रहे हैं. 

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लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है, जब मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे की नाकाबंदी की हो. दोनों अपनी-अपनी ताकत दिखाने के मौके ढूंढते नजर आ रहे हैं. लेकिन जिस तरीके से मुख्यमंत्री कार्यालय ने सभी तरफ से एकनाथ शिंदे और उनके मंत्रियों की नाकाबंदी की है, वह देखते हुए इनके संबंधों मे सुधार आने की गुंजाइश कम होती नजर आ रही है.

फडणवीस ने 1310 बसों का कॉन्ट्रैक्ट रद्द किया
 
महाराष्ट्र में सरकार बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने एसटी महामंडल के लिए जो 1310 बसें कॉन्ट्रैक्ट पर लेने का एकनाथ शिंदे का निर्णय था, उसे रद्द कर दिया था. पूर्ववर्ती शिंदे सरकार पर कुछ खास कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए टेंडर प्रक्रिया में बदलाव करने का आरोप लगा था और इसकी वजह से राज्य परिवहन निगम को कम से कम 2000 करोड़ रुपये के नुकसान का अंदाजा था. एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री रहते अपने करीबी महाड के विधायक भरत गोगावले को एसटी महामंडल का अध्यक्ष बनाया था.

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भरत गोगावले ने 1310 बस कॉन्ट्रैक्ट पर लेने का निर्णय लिया था. लेकिन सीएम फडणवीस ने कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने के साथ नए सिरे से और पारदर्शिता के साथ पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू करने का निर्देश​ दिया था. देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार दावोस गए थे. महाराष्ट्र के लिए बड़ी इन्वेस्टमेंट लाने का प्लान था. दावोस जाने से पहले उन्होंने महाराष्ट्र के हर जिले के लिए संरक्षक मंत्री नियुक्त करने के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. एकनाथ शिंदे सरकार में मंत्री रहे भरत गोगावले, नासिक के मालेगांव से मंत्री दादाजी भुसे को संरक्षक मंत्रियों की लिस्ट मे शामिल नहीं किया गया था. 

जिलों के संरक्षक मंत्री बनाने में भी दिखी तल्खी

रायगड में देवेंद्र फडणवीस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे की बेटी औऱ मंत्री अदिती को गार्डियन मिनिस्टर बनाया. नासिक में होने वाले कुंभ मेले को ध्यान में रखते हुए यहां की जिम्मेदारी गिरीश महाजन को सौंपी गई. इससे नाराज एकनाथ शिंदे अपने पैतृक गांव दरे चले गए थे. उनकी नाराजगी की गूंज दावोस तक पहुंची और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रायगढ़ और नासिक के संरक्षित मंत्रियों के नाम को स्थगित कर दिया. लेकिन अभी तक इन दो जिलों के संरक्षक मंत्रियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है.

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एकनाथ शिंदे के करीबी उदय सामंत महायुति सरकार में मंत्री हैं. लेकिन उनके विभाग के अफसर ‘ऊपर से आनेवाले’ आदेशों के आधार पर काम करने लगे हैं, ऐसा सूत्रों का मानना है. कुछ नीतिगत निर्णय भी उदय सामंत से चर्चा किए बिना लिए जाने लगे. इससे नाराज होकर उदय सामंत ने उद्योग विभाग के प्रधान सचिव और सीईओ को लेटर लिखकर नाराजगी जताई. इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक लिख दिया कि कोई भी निर्णय लेने से पहले उद्योग विभाग के सचिव, सीईओ और बाकी अधिकारी उनसे चर्चा जरूर कर लें. उसके बिना कोई भी निर्णय करना गलत ठहराया जाएगा.

शिंदे कार्यकाल के कई योजनाओं की समीक्षा
 

लाडली बहना योजना के कारण महाराष्ट्र के तिजोरी पर हर साल 46000 करोड़ का बोझ पड़ता है. फिर मुफ्त एलपीजी सिलेंडर और अन्य योजनाओं के खर्च को जोड़ें तो राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बड़ा मुश्किल है. इसलिए सीएम देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे के कार्यकाल मे शुरू हुई 'शिवभोजन थाली' और एकनाथ शिंदे द्वारा शुरू किया हुआ 'आनंदाचा शिधा' की समीक्षा करने के लिए कहा है. हालांकि, दोनों योजनाए बंद हो जाती हैं तो सरकारी खाजाने पर 500 करोड़ रुपये का बोझ कम हो जाएगा.

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जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, तो पीए और ओएसडी बनने के लिए अधिकारियों मे होड़ लग गई. लेकिन सभी सिफारिशें सीएम ऑफिस ने रोक कर रखी थी. किसी भी अधिकारी या प्राइवेट व्यक्ति के बैकग्राउंड की जब तक जांच नहीं होती, तब तक किसी को भी पीए नियुक्त करने का अधिकार नहीं था. उन फाइलों पर हस्ताक्षर ही नहीं हुए थे. इस वजह से बहुत से मंत्री और उनके करीबी नाराज हो गए. उन्होने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की तरह देखना शुरू किया. हालांकि, कोई भी सामने से आकर इस आदेश का विरोध नहीं कर सका.

वॉर रूम मीटिंग से एकनाथ शिंदे ने बनाई दूरी

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र मे चल रहे महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए वॉर रूम बनाया है, जिसकी बैठक मंत्रालय में हुई. उसमें एकनाथ शिंदे शामिल नहीं हुए. लेकिन दूसरे ही सप्ताह में एकनाथ शिंदे ने को-ऑर्डिनेशन कमेटी बना ली और अलग से महत्वपूर्ण परियोजनाओं का जायजा लेना शुरू कर दिया. एकनाथ शिंदे जब सीएम बने तो अपने  करीबी मंगेश चिवटे को सीएम रिलीफ फंड का प्रमुख बनाया. एकनाथ शिंदे जब शिवसेना-बीजेपी सरकार मे मंत्री थे, तभी से वह अपना रिलीफ फंड चला रहे थे. 

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लेकिन जब देवेंद्र फडणवीस सीएम बने तो सीएम रिलीफ फंड प्रमुख के पद से मंगेश चिवटे को हटाकर रामेश्वर नाईक की नियुक्ति की. उसके एक महीने बाद ही उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपना वैद्यकीय कक्ष मंत्रालय मे ही शुरू कर दिया और मंगेश चिवटे को फिर से इसका प्रमुख नियु​क्त किया. ऐसी और भी बड़ी दिलचस्प घटनाएं हुई हैं, जो सीधे तौर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के रिश्तों में कड़वाहट की ओर इशारा करती हैं. इतना ही नहीं, शिंदे और फडणवीस कैबिनेट मीटिंग को छोड़कर साथ-साथ प्रोग्राम में दिखने से भी परहेज करते हैं. इसकी वजह भी दोनों के बीच चल रहा कोल्ड वॉर माना जा रहा है.
 
एकनाथ शिंदे जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने बहुत सारी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी थी. लेकिन राज्य के तिजोरी में इन परियोजनाओं की फंडिंग करने के लिए सचमुच उतना धन बचा है या नहीं, इसपर ध्यान नहीं दिया. लाडली बहना योजना ने महाराष्ट्र की तिजोरी पर इतना बड़ा बोझ डाल दिया कि राज्य में चल रहे अलग-अलग प्रोजेक्ट्स और अन्य कार्यों का लगभग 4 हजार करोड़ रुपये का भुगतान सरकार अभी तक नहीं कर सकी है.

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