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महाराष्ट्र में अब तक मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं हो पाया है. सवाल उठ रहे हैं कि BJP अकेले बहुमत के करीब है और अजित पवार ने भी खुद को सीएम की रेस से अलग कर लिया है. उसके बावजूद महायुति CM पद को लेकर फैसला क्यों नहीं ले पा रही है? माना जा रहा है कि बीजेपी हाईकमान जातीय समीकरण से लेकर एनडीए के सहयोगी दलों को भरोसे में लेकर निर्णय लेना चाहता है. यही वजह है कि पिछले चार दिन से मुंबई से लेकर दिल्ली तक बैठकें चल रही हैं. एक तरफ मराठा चेहरा एकनाथ शिंदे का नाम चल रहा है तो दूसरी तरफ अगड़े वर्ग से देवेंद्र फडणवीस हैं. बीजेपी के सामने ओबीसी वर्ग को भी साधने की चुनौती है. आखिर महायुति CM पर फैसला क्यों नहीं ले पा रही है? जानिए...
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति से बीजेपी के सबसे ज्यादा 132 उम्मीदवारों ने चुनाव जीता. शिवसेना ने 57 और एनसीपी ने 41 सीटों पर जीत हासिल की. JSS को 2 और RSJP को एक सीट पर जीत मिली. बीजेपी ने इस बार चुनाव में 149 उम्मीदवार उतारे थे. जबकि शिवसेना ने 81 और एनसीपी ने 59 प्रत्याशियों को टिकट दिया था. मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो गया है. एकनाथ शिंदे ने सीएम पद से इस्तीफा भी दे दिया है. वे नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक सीएम हैं.
पहले सहयोगी दलों, फिर विधायकों से बात करेंगे BJP पर्यवेक्षक
नए सीएम पर फैसला लेने से पहले बीजेपी अपने सहयोगी दलों और विधायकों से रायशुमारी करेगी. पार्टी के पर्यवेक्षक जल्द ही मुंबई पहुंचेंगे. वहां सबसे पहले सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बातचीत करेंगे और उनकी नब्ज टटोलेंगे. उसके बाद बीजेपी विधायक दल की बैठक में हिस्सा लेंगे और पार्टी विधायकों से बातचीत के बाद सहमति बनाई जाएगी और नए सीएम के नाम का ऐलान किया जाएगा. मुख्यमंत्री किस दल का होगा, इसे लेकर अब तक पत्ते नहीं खोले गए हैं.
क्या चाहता है बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व?
सूत्रों का कहना है कि इतनी बड़ी जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ता चाहते हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी से ही मुख्यमंत्री बने. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व का भी यही मानना है कि मुख्यमंत्री के चयन के वक्त कार्यकर्ताओं की इस भावना का भी ख्याल रखा जाए. सूत्रों के मुताबिक सीएम किस पार्टी को होगा, ये तय करने में कोई विवाद नहीं है. बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस प्रमुख दावेदार हैं. सूत्र यह भी बता रहे हैं कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व भी फडणवीस के नाम पर लगभग सहमत है. लेकिन पेच इस बात को लेकर भी फंसा है कि एकनाथ शिंदे और अजित पवार को कौन सा मंत्री पद दिया जाए.
शिंदे सेना को संतुष्ट करना चाहती है बीजेपी
बीजेपी नहीं चाहती कि बिना सामंजस्य के किसी निर्णय पर पहुंचा जाए, इसलिए पिछले चार दिन से लगातार सहयोगी दलों के साथ बातचीत की जा रही है. अब तक बड़ी चुनौती यही रही कि एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी शिवसेना को संतुष्ट किया जाए. एनसीपी ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वो फडणवीस को अपनी पहली पसंद मानकर चल रहे हैं.
बीजेपी के सामने निर्णय लेने में क्या मुश्किलें...
- महाराष्ट्र में दो साल पहले उठापटक के बाद इस चुनाव में असली परीक्षा एकनाथ शिंदे और अजित पवार गुट की थी और दोनों ही इस कसौटी पर खरे उतरे हैं. दोनों ने बंपर जीत हासिल की और अपने गढ़ों पर कब्जा बरकरार रखा है. बीजेपी भी इन दोनों दलों की प्रासंगिकता को बेहतर समझती है और किसी तरह के नए विवाद को जन्म नहीं देना चाहती है. आगे बीएमसी चुनाव हैं.
- जब राज्य में मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण की लड़ाई चल रही थी, तब एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने कमान संभाली. चूंकि, महायुति में शिंदे खुद बड़े मराठा चेहरा हैं. उन्होंने विवाद को खत्म करने के लिए प्रयास किए और नतीजे में देखा गया कि मराठा समुदाय ने जमकर महायुति के समर्थन में वोटिंग की. चुनाव से ठीक पहले यह आंदोलन महायुति के लिए सबसे बड़ी टेंशन माना जा रहा था. यानी एकनाथ शिंदे को एकदम से किनारे कर देना आसान नहीं है.
- महाराष्ट्र की राजनीति मराठा समुदाय के ईर्द-गिर्द ही घूमती है. राज्य में अब तक 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा रहे हैं. इनमें एकनाथ शिंदे का नाम भी शामिल है. राज्य में कुल 288 विधानसभा और 48 लोकसभा सीटें हैं. मराठा समुदाय करीब 150 से ज्यादा विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर मजबूत पकड़ रखता है.
- 2019 के चुनाव में भले बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ छोड़ने से सत्ता में नहीं आ सकी थी. लेकिन, ढाई साल बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत की और बीजेपी से हाथ मिला लिया और इस तरह एनडीए की सरकार बन गई. यानी शिंदे की वजह से ही महाराष्ट्र में एनडीए ने 2022 में सरकार बनाई थी.
- बीजेपी 2019 में भी सबसे बड़ी पार्टी थी और 2022 में भी सबसे बड़ी पार्टी है. लेकिन, उस समय बीजेपी को सत्ता में आने के लिए समझौता करना पड़ा था और अपने सबसे बड़े चेहरे देवेंद्र फडणवीस को बैक करने के लिए मान-मनोव्वल करनी पड़ी थी. बाद में पूर्व सीएम फडणवीस को शिंदे का डिप्टी बनाया गया था. आज भी कुछ वैसे ही हालात हैं. अगर बीजेपी अपना सीएम बनाती है तो फिर 2022 के फैसले पर सवाल उठने लगेंगे और संभव है कि नेशनल लेवल पर गलत संदेश जा सकता है.
- एकनाथ शिंदे गुट इस बार बिहार मॉडल का हवाला दे रहा है. बिहार में भले बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन वहां जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार सीएम हैं. 2025 के चुनाव में भी नीतीश कुमार ही एनडीए के चेहरे हैं. शिंदे गुट का एक तर्क यह भी है कि ये चुनाव अघोषित तौर पर शिंदे के चेहरे पर ही लड़ा गया है और रिकॉर्ड जीत भी मिली है.
- बीजेपी के सामने एक बड़ी चिंता इस बात की भी है कि शिंदे नहीं तो किस चेहरे पर दांव लगाया जाए. शिंदे एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और नतीजों ने सर्वमान्य चेहरे के तौर पर उनके नाम पर मुहर लगाई है.
- चूंकि, शिंदे मराठा चेहरा हैं. बीजेपी के पास उन्हें हटाकर किसी ओबीसी पर दांव लगाने का भी एक विकल्प है. लेकिन इससे मराठा वर्ग के बीच असंतोष भी देखने को मिल सकता है. यानी संतुलन को बनाए रखना भी एक चुनौती है.
- महाराष्ट्र बीजेपी में देवेंद्र फडणवीस सबसे बड़े नेता है. इस चुनाव में भी बीजेपी ने फडणवीस को आगे किया और बड़े चेहरे के तौर पर प्रजेंट किया. चूंकि फडणवीस अगड़े वर्ग से हैं. यानी वो ओबीसी खांचे में फिट नहीं बैठते हैं और बीजेपी के लिए उन्हें साइड करना भी मुश्किल होगा, क्योंकि उनके अपने समर्थक हैं और सहयोगी दल में शामिल एनसीपी भी नहीं चाहेगी कि बीजेपी फडणवीस की बजाय किसी नए चेहरे को सीएम बनाए.
- इस कवायद के बीच एनडीए के सहयोगी और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का बयान भी अहम है. उन्होंने साफ किया कि चुनाव से पहले शिंदे से ऐसा कोई वादा (दोबारा सीएम के लिए) नहीं किया गया था. उन्हें मुख्यमंत्री पद की मांग नहीं करनी चाहिए. अगर वे डिप्टी सीएम के लिए तैयार नहीं हैं तो उन्हें दिल्ली आना चाहिए. उन्हें दिल्ली में कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है. फिलहाल, ये देखना अहम होगा कि आखिर एकनाथ शिंदे आगे क्या नई भूमिका निभाएंगे.