
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा हुए करीब एक महीने हो चुके हैं, लेकिन अभी तक सरकार का गठन नहीं हो पाया है. मतदाता अभी सिर्फ यह कयास लगा रहे हैं कि राज्य में किसकी सरकार बनने जा रही है.
बीजेपी और शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 288 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा भी पार कर लिया, लेकिन नतीजे आने के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए 50-50 का फार्मूला लागू करने की मांग उठा दी. इसका मतलब यह है कि ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री रहे और ढाई साल बीजेपी का.
105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी ने 56 सीटों वाली शिवसेना की यह मांग ठुकरा दी और इस तरह 30 साल पुराना भगवा गठबंधन टूट गया. इसके बाद शिवसेना ने विपक्षी पार्टियों एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया. कांग्रेस को इस चुनाव में 44 सीटें और एनसीपी को 54 सीटें मिली हैं. शिवसेना इन दोनों दलों के साथ मिलकर बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने और अपना मुख्यमंत्री बनाने के प्रयास में है.
महाराष्ट्र में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन लागू है और सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी अलग-थलग पड़ गई है.
हालांकि, बीजेपी को मिली सीटों का गहराई से विश्लेषण करने पर दिलचस्प बातें सामने आती हैं. इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंट्रल फॉर पोलिटिकल डाटा (TCPD) के चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि एनसीपी और कांग्रेस के बागी जो चुनाव के ठीक पहले बीजेपी में शामिल हो गए, उन्होंने बीजेपी को सौ से ज्यादा सीटें लाने में मदद की. अगर बीजेपी को कांग्रेस और एनसीपी के दलबदलुओं का साथ न मिला होता तो बीजेपी सौ सीटों तक मुश्किल से पहुंचती.
खिसका जनाधार
2014 में बीजेपी और शिवसेना ने सीटों के बंटवारे पर तालमेल न हो पाने के कारण अगल-अलग चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिली थीं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर 48 में से 41 लोकसभा सीटें जीत ली थीं, ऐसे में साथ चुनाव लड़ने पर महाराष्ट्र विधानसभा उनके लिए और आसान होना चाहिए. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.
DIU ने पाया कि इस बार बीजेपी और शिवसेना 68 ऐसी सीटें हार गईं जिनपर 2014 में उनको जीत मिली थी. इस चुनाव का एंटी इंकम्बेंसी रेट 36 प्रतिशत रहा. बीजेपी ने इनमें से अपनी 34 फीसदी यानी 41 सीटें गवां दीं.
इस चुनाव में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के 11 दलबदलुओं को टिकट दिया, जबकि बीजेपी ने 15 दलबदलुओं को टिकट दिया था जिनमें से 10 चुनाव जीत गए. इस तरह अगर ये दलबदलू नहीं होते तो बीजेपी करीब 95 सीटों पर सिमट गई होती.
शिवसेना के सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि शिवसेना को उम्मीद थी कि इस बार वह बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर जिन 63 सीटों पर काबिज थी, वह तो जीतेगी ही, अतिरिक्त सीटें भी जीतेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और शिवसेना अपनी 42 फीसदी यानी 27 ऐसी सीटें हार गई जिस पर 2014 में उसे जीत मिली थी.
पार्टी सूत्रों ने कहा कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पार्टी को अति महत्वाकांक्षी ढंग से पेश किया जिससे शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे आदित्य ठाकरे काफी परेशान हैं.
दलबदलुओं की भूमिका
हालांकि, अंतिम नतीजों के तहत मिली सीटों की कुल संख्या एनडीए के लिए निराशाजनक हो सकती है, लेकिन यह गौर करने लायक है कि भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने 44 ऐसी सीटें झटक लीं जो 2014 में वे हार गई थीं. ऐसी 24 सीटें भाजपा और 20 शिवसेना के खाते में आईं.
बीजेपी जितनी नई सीटें जीती है उनमें से 12 (50 फीसदी) पर दलबदलू प्रत्याशी जीते हैं. इनमें से 9 ऐसे हैं जो पिछले चुनाव में एनसीपी या कांग्रेस में थे.
शिवसेना ने 20 ऐसी सीटें जीतीं जिनपर वह पिछली बार हार गई थी. इनमें से 7 (35 फीसदी) पर दलबदलू प्रत्याशी जीते हैं. इनमें से एक एनसीपी से, एक कांग्रेस से, दो मनसे से, एक निर्दलीय और दो छोटी पार्टियों से शिवसेना में शामिल हुए थे.
इस तरह कह सकते हैं कि अगर कांग्रेस और एनसीपी के दलबदलू न होते तो शिवसेना इस चुनाव में 54 सीटों पर सिमट जाती.
क्या दलबदलुओं की घर वापसी होगी?
अब जब महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनने की संभावना क्षीण हो गई है तो क्या कांग्रेस और एनसीपी से बीजेपी में गए नेता इन पार्टियों में वापस आ सकते हैं? एनसीपी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक का मानना है कि ऐसा हो सकता है.
नवाब मलिक ने इंडिया टुडे से कहा, “बीजेपी के करीब 70 विधायक ऐसे हैं जिन्होंने सत्ता में भागीदारी के वादे पर या तो 2014 में पार्टी ज्वाइन की थी या 2019 में ज्वाइन की. बीजेपी अब डरी हुई है कि वे हमारे पास वापस आ सकते हैं और उनमें से एक ने तो खुलेआम एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात भी की है.”
उन्होंने कहा, “सतारा और पुणे के कुछ विधायकों ने अजित पवार से संपर्क किया है. हालांकि, हम बीजेपी की तरह भर्ती अभियान नहीं चलाएंगे बल्कि योग्यता के आधार पर चुनाव करेंगे.”