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महाराष्ट्र के महा-ड्रामे में आगे क्या? गिरेगी उद्धव सरकार या बागियों पर कसेगा दल-बदल कानून का शिकंजा?

सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आने वाले दिनों में और क्या नाटकीय मोड़ देखने को मिलने वाले हैं? उद्धव गुट, शिंदे गुट के पास क्या विकल्प खुले हैं, राज्यपाल क्या कर सकते हैं?

बागी विधायक एकनाथ शिंदे बागी विधायक एकनाथ शिंदे
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2022,
  • अपडेटेड 12:04 AM IST

महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के लिए सत्ता में बने रहना चुनौती साबित हो रहा है. आंकड़ों के खेल में सरकार पहले ही अल्पमत में जा चुकी है. वहीं दूसरी तरफ शिंदे गुट अभी भी गुवाहाटी में जमा हुआ है. उसके समर्थन विधायकों की संख्या भी कम होने के बजाय बढ़ी है. ऐसे में अभी तक स्थिति उनके पक्ष में दिखाई पड़ती है. लेकिन सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आने वाले दिनों में और क्या नाटकीय मोड़ देखने को मिलने वाले हैं? उद्धव गुट, शिंदे गुट के पास क्या विकल्प खुले हैं, राज्यपाल क्या कर सकते हैं? एक नजर तमाम समीकरण पर डालते हैं-

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शिंदे गुट के पास विकल्प

शिंदे गुट के पास इस समय दो विकल्प मौजदू हैं. सबसे आसान विकल्प तो ये है कि तमाम बागी विधायक किसी पार्टी से हाथ मिलाएं, बहुमत साबित करें और सरकार बना लें. अगर दो तिहाई विधायकों का समर्थन हासिल है, ऐसी स्थिति में ये गुट आसानी से खुद को दूसरी राजनीतिक पार्टी के साथ अपना विलय कर सकता है. लेकिन ये विकल्प सिर्फ तभी खुलता है अगर शिंदे गुट सही में किसी पार्टी के साथ विलय करना चाहता और सरकार बनाने की इच्छा जाहिर करता है. 

लेकिन यहां पर एक पेच ये फंसता है कि अगर ये गुट दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं जुटा पाए, ऐसी स्थिति दल-बदल कानून लागू हो जाएगा और ये सभी अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे. अब शिंदे गुट के पास एक और बड़ा विकल्प मौजूद है, जिसकी राह थोड़ी ज्यादा मुश्किल और चुनौतियों से भरी रह सकती है. अगर पर्याप्त समर्थन हासिल हो जाए, तो शिंदे गुट पूरी शिवसेना पर ही अपना अधिकार जमा सकता है. ऐसा करने के लिए इस गुट को ज्यादा से ज्यादा पार्टी के सदस्यों के वोट की जरूरत पड़ेगी. इसके बाद चुनाव आयोग को एक अप्लीकेशन लिख पार्टी को लेकर दावा ठोका जा सकता है.

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वैसे आजतक से बात करते हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा है कि विधायकों को अयोग्य घोषित करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है, उनके पास पहले से पूरा बहुमत है. वहीं दुष्यंत दावे मानते हैं कि इस साम-दाम दंड-भेद वाली राजनीति को खत्म होना पड़ेगा. हम सिर्फ कोर्ट, और दल-बदल कानून पर निर्भर नहीं कर सकते हैं. वैसे तो जो विधायक बागी बन रहे हैं और लालच में आ रहे हैं, वो जिम्मेदार हैं, लेकिन जो उन्हें लालच दे रहा है, वो भी उतना ही जिम्मेदार है.

फ्लोर टेस्ट का विकल्प

ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्यपाल जल्द ही फ्लोर टेस्ट का ऐलान कर सकते हैं. ये भी संभव है कि शिंदु गुट आगे से फ्लोट टेस्ट की अपील करे. अभी तो आंकड़े एकनाथ शिंदे और उनके बागी विधायकों के पक्ष में दिखाई पड़ते हैं. अगर अभी फ्लोट टेस्ट होता है तो महा विकास अघाडी सरकार का गिरना तय माना जा रहा है. लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर सरकार गिर भी जाती है तो क्या शिंदे गुट किसी दूसरी पार्टी को समर्थन देगा. ऐसा नहीं होने पर वे अयोग्य भी घोषित किए जा सकते हैं.

इस विकल्प के साथ एक दूसरे विवादित सवाल ये भी उठता है कि क्या फ्लोर टेस्ट करवाया जा सकता है? साल 2016 में अरुणाचल प्रदेश के Nabam Rebia मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि राज्यपाल बिना मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों से बात के विधानसभा को भंग नहीं कर सकते हैं.  अगर सिर्फ राज्यपाल को ऐसा लगे कि मुख्यमंत्री या फिर कैबिनेट मंत्रियों ने सदन में विश्वास खो दिया है, तब राज्यपाल फ्लोर टेस्ट करने के लिए कह सकते हैं और सरकार को बहुमत साबित करना होगा.

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