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'जो बालासाहेब का ना हुआ, वो मोदी का क्या होगा', CM शिंदे पर उद्धव गुट का वार

शिंदे सरकार का मंगलवार को अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है, जिस पर पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम एकनाथ शिंदे का फोटो लेकिन बाल ठाकरे का फोटो नहीं है. इस पर ठाकरे गुट ने शिंदे को घेरा लिया है. वहीं अब सामना में एक संपादकीय प्रकाशित हुआ है, जिसमें इस विज्ञापन के जरिए महाराष्ट्र सरकार में फूट पड़ने का दावा किया गया है.

महाराष्ट्र सरकार के इस एड में देवेंद्र फडणवीस का फोटो भी नहीं है महाराष्ट्र सरकार के इस एड में देवेंद्र फडणवीस का फोटो भी नहीं है
aajtak.in
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  • 14 जून 2023,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST

महाराष्ट्र में सरकार के विज्ञापन को लेकर राजनीति तेज हो गई है. इसी विज्ञापन को लेकर अब सामना ने अपने संपादकीय में शिंदे सरकार को घेर लिया है. उसमें लिखा कि जो बाला साहेब का नहीं हुआ, वो मोदी का क्या होगा. दरअसल शिंदे सरकार का एक विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित हुआ है, जिसमें लिखा है-राष्ट्र में मोदी, महाराष्ट्र में शिंदे सरकार. इस विज्ञापन में ऊपर शिवसेना का चुनाव चिह्न तीर-कमान भी है. इसमें पीएम मोदी और सीएम शिंदे की तस्वीर है लेकिन शिवसेना संस्थापक दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की कोई तस्वीर नहीं है, जबकि शिंदे हमेशा से उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते रहे हैं.

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विज्ञापनबाज है शिंदे सरकार

सामना ने अपने संपादकीय में लिखा- महाराष्ट्र की फडणवीस-शिंदे सरकार गजब की विज्ञापनबाज सरकार है. खुलासा हुआ है कि अब तक इस सरकार ने खुद के विज्ञापन के लिए 786 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से खर्च कर दिया है. खर्च किया, इसकी बजाय कहना चाहिए कि विज्ञापनबाजी पर जनता का पैसा बर्बाद किया गया है. अब तक इस गैर-कानूनी सरकार ने कई विज्ञापन दिए, लेकिन कल (मंगलवार) शिंदे गुट की ओर से प्रकाशित एक फुल पेज के विज्ञापन से फडणवीस समेत उनके 105 विधायकों का कलेजा पानी-पानी हो गया है. सभी समाचार पत्रों में करोड़ों रुपये खर्च करके फ्रेंट पेज पर ‘मोदी-शिंदे’ के फोटो के साथ विज्ञापन प्रकाशित हुआ. इसमें फडणवीस गायब हैं. यह विज्ञापन सरकारी नहीं चुराई गई नकली शिवसेना का है.

विज्ञापन में फडणवीस भी नहीं

संपादकीय में आगे लिखा कि विज्ञापन में पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर का प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया है, जबकि फडणवीस कहीं नजर नहीं आ रहे हैं. विज्ञापन सरकारी न होने के कारण फडणवीस को बगल किया गया. ‘हम ही असली शिवसेना और हम ही हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे के विचारों के उत्तराधिकारी हैं’ कहकर ढोल पीटने वालों के इस विज्ञापन में मोदी हैं, जबकि शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे भी पूरी तरह नदारद है. इस बारे में बीजेपी और शिंदे गुट के प्रवक्ताओं का क्या कहना है? एक ही समय पर फडणवीस को झटका देने वाले और शिवसेना प्रमुख को नजरअंदाज करने वाले विज्ञापन का क्या उद्देश्य है? सवाल एक विज्ञापन का नहीं, बल्कि इस बात का है कि खुद को शिवसेना कहने वालों ने अपने गुट को मोदी के सामने नतमस्तक कर दिया है. बालासाहेब ठाकरे कुछ नहीं ‘सब कुछ मोदी’ हैं, ऐसा इस विज्ञापन ने संदेश दिया है.

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अभी तक नरेंद्र-देवेंद्र का हो रहा था प्रचार

बिना सर्वे कराए विज्ञापन में दावा किया गया, ‘श्री एकनाथजी शिंदे को महाराष्ट्र की 26.1 प्रतिशत जनता फिर से मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहती है और देवेंद्र फडणवीस को 23.2 फीसदी जनता मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहती है.’ इसका मतलब यह हुआ कि पिछले सिर्फ 9-10 महीने में शिंदे ने लोकप्रियता के मामले में फडणवीस को पछाड़ दिया है. देश में मोदी और महाराष्ट्र में शिंदे को लोकप्रिय ठहरानेवाली विज्ञापनबाजी से भाजपावालों का चेहरा महाराष्ट्र में मुरझा गया है. एक साल पहले ‘देश में नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र’ का प्रचार चल रहा था. उस प्रचार को इस विज्ञापन ने खत्म कर दिया है. 

बीजेपी-शिंदे गुट में शुरू हो गई खींचतान

सच तो यह है कि बीजेपी और शिंदे गुट में खींचतान की राजनीति शुरू हो गई है. सच तो यह है कि शिंदे गुट को लोगों का समर्थन नहीं है. लोगों का समर्थन कितना और विश्वास है. अगर इसे आजमाना है तो इसका एकमात्र विकल्प मुंबई सहित 14 महानगरपालिकाओं के चुनाव, लेकिन शिंदे मंडल चुनाव से भाग रहे हैं. 

मोदी-शाह के डर से हटाई फोटो

आलंदी में पुलिस ने वारकरियों पर लाठीचार्ज किया, इसलिए प्रदेश के गांव-गांव में जनता मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को श्राप दे रही है. बीजेपी की बची-खुची प्रतिष्ठा शिंदे गुट के कारण धूल में मिल गई, यह सच्चाई है. शिंदे गुट 'दिल्लीश्वरों' का गुलाम बन गया है. मोदी और शाह के डर से उन्होंने विज्ञापनों में बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर लगाना भी बंद कर दिया. बालासाहेब का नाम भी लेना बंद कर दिया. शिवसेना प्रमुख को केवल 10 महीने में भूल जाने वाले इन लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं? विज्ञापन ने साफ कर दिया कि शिवसेना प्रमुख के प्रति उनका प्यार और सम्मान महज दिखावा था. जो बालासाहेब का नहीं हुआ, वह मोदी का क्या होगा? 

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