Advertisement

महाराष्ट्र की सत्ता का रिमोट अब ठाकरे नहीं बल्कि बीजेपी के हाथ में

महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन और शिंदे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के साथ ही सत्ता के रिमोर्ट कन्ट्रोल का हाथ भी बदल गया है. महाराष्ट्र के सत्ता का रिमोट अब ठाकरे परिवार को हाथों में होने के बजाय बीजेपी के पास होगा!

उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो) उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • मुंबई,
  • 01 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 7:27 PM IST
  • बाल ठाकरे ने 1966 में की थी शिवसेना की स्थापना
  • मातोश्री के हाथ में होता था सत्ता का रिमोट
  • उद्धव ने 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सत्ता से विदाई के बाद शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी हो गई है. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को वह झटका दिया है, जो नारायण राणे, राज ठाकरे और छगन भुजबल जैसे नेता भी नहीं दे पाए थे. सत्ता परिवर्तन और शिंदे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के साथ ही सत्ता के रिमोट कन्ट्रोल का हाथ भी बदल गया है. महाराष्ट्र की सत्ता का रिमोट अब ठाकरे परिवार के हाथ में नहीं बल्कि बीजेपी के पास है. 

Advertisement

उद्धव ठाकरे अपनी सरकार और मुख्यमंत्री का पद दोनों गंवा चुके हैं. पार्टी के दो तिहाई विधायक भी बागी खेमे की अगुवाई कर रहे एकनाथ शिंदे के साथ हैं. उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे ने 19 जून,1966 को जिस पार्टी की स्थापना की, वो अब ठाकरे परिवार की पकड़ से बाहर हो गई है. उद्धव का तख्ता पलट करने वाले एकनाथ शिंदे सत्ता पर काबिज तो हो गए हैं, लेकिन अधिकतर राजनीतिक विश्लेषक उन्हें सियासी कठपुतली ही मान रहे हैं. 

बाल ठाकरे के हाथ में था सत्ता का रिमोट

दरअसल, शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे न तो कभी चुनाव लड़े और न ही किसी संवैधानिक पद पर रहे. जब-जब उनकी पार्टी सरकार में रही तो सत्ता का रिमोट उनके हाथ में रहा. महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी और शिवसेना की जब सरकार बनी तो मुख्यमंत्री भले ही मनोहर जोशी थे, लेकिन सत्ता का रिमोट मातोश्री में बाल ठाकरे के हाथ में था.  22 नवंबर, 1995 को एनरॉन इंटरनेशनल के अध्यक्ष केनेथ ले और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रेबेका मार्क ने महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार से बातचीत के लिए भारत का दौरा किया था. एनरॉन इंटरनेशनल के दोनों ही सदस्यों ने तत्कालीन सीएम मनोहर जोशी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और इसके बजाय शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे से मुलाकात की. इसके बाद ही तय हो गया था कि मनोहर जोशी सिर्फ सत्ता के मुखौटे हैं, कन्ट्रोल बाल ठाकरे के हाथ में है. 

Advertisement

BJP के पास पहुंचा रिमोट

वक्त का पहिया घूमा तो दो दशक के बाद महाराष्ट्र की सियासत में ऐसा उलटफेर हुआ कि नब्बे के दशक का रिमोट कन्ट्रोल शिवसेना के हाथ से बीजेपी के हाथ में आ गया. बीजेपी के समर्थन से ही शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं. बीजेपी शिवसेना के द्वारा किए पिछले सभी अपमानों को अभी तक भूली नहीं है, जिसके चलते इस तरह से सियासी समीकरण बना रही है ताकि सत्ता का रिमोट अब कभी ठाकरे परिवार के हाथ न जा सके. उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल कर देवेंद्र फडणवीस का सियासी कद बढ़ा है. बीजेपी किंगमेकर बन गई है और फडणवीस एकनाथ शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बन गए हैं. वहीं, शिंदे खेमे के जरिए उद्धव ठाकरे के हाथों से शिवसेना की बागडोर भी छीनने की कवायद हो रही है. इस तरह से उद्धव ठाकरे के सामने दोहरी चुनौती है. 

2019 में उद्धव ठाकरे बने सीएम

उद्धव ठाकरे ने साल 2019 में बीजेपी से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार ही नहीं बनाई बल्कि खुद मुख्यमंत्री भी बन गए. ठाकरे परिवार से उद्धव पहले सदस्य थे, जो मुख्यमंत्री बने. हालांकि, वैचारिक विरोधी दलों के साथ हाथ मिलाने को लेकर सवाल भी खड़े हुए, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के लिए उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया. उद्धव ठाकरे के लिए यही ढाई साल महंगे पड़े. एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व के एजेंडे से हटने और बाल ठाकरे के आदर्शों से भटकने का आरोप लगाते हुए विद्रोह कर दिया. शिवसेना के दो तिहाई विधायकों को तोड़कर उन्होंने उद्धव को सत्ता से बेदखल कर दिया. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा देकर अपने हथियार डाल दिए.  

Advertisement

बाल ठाकरे ने नहीं लड़ा था कभी चुनाव

महाराष्ट्र की सियासत में अभी ये वक्त बताएगा कि एकनाथ शिंदे हीरो साबित होते हैं या विलेन. शिवसेना में बगावत का जो घटनाक्रम रहा उससे साफ है कि उद्धव की शुरुआती विफलता इतने बड़े विद्रोह की भनक न लगना रही.  बागियों को वापस लाने के तमाम प्रयास तो किए गए लेकिन मुंबई से दूर गुवाहाटी में उनके ठहरने के चलते वे सफल नहीं हो सके. ऐसे में उद्धव ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया. उद्धव ठाकरे ने जिस क्षण इस्तीफा दिया, उसी से स्पष्ट हो गया कि उन्होंने अपने पिता के विपरीत जाकर सियासी मुकाम चुना था. बाल ठाकरे हमेशा अपने हाथों में रिमोट रखते थे. यही कारण था कि ठाकरे ने कभी चुनाव नहीं लड़ा और शिवसैनिकों के मन में डर पैदा किए रखा, लेकिन उद्धव ने सत्ता पर खुद काबिज होकर उस डर को खत्म कर दिया.  

मातोश्री के प्रति था लोगों में सम्मान

बाल ठाकरे का अपना सियासी रुतबा था. उन्हें शिवसैनिक अपने गुरु के रूप में देखते थे तो सहयोगी दल भी उनका सम्मान करते थे. शिवसैनिक उनके आवास मातोश्री को भी सम्मान की नजर से देखते थे. लेकिन उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनकर ठाकरे ब्रांड को कमजोर कर दिया. सत्ता में रहते हुए उद्धव ठाकरे पर उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने सवाल खड़े किए तो सत्ता की नाकामियों के लिए विपक्ष ने भी उनपर निशाना साधा. बागी नेताओं ने उद्धव को हिंदुत्व की विचारधारा से पूरी तरह से भटकने का दोषी ठहराया. 

Advertisement

उद्धव के लोगों पर होंगी एजेंसियों की नजर

उद्धव ठाकरे और शिवसेना पार्टी के भविष्य के बारे में और भी अटकलें लगाई जा रही हैं. क्या ठाकरे इस पार्टी पर कभी सत्ता में ला पाएंगे? दरअसल उद्धव ठाकरे अपने उदार स्वभाव के लिए जाने जाते हैं, इसलिए उद्धव के लिए यह एक चुनौती है. उनकी पार्टी के लोगों में एक डर है कि उनके साथ उनके सलाहकार भी केंद्रीय एजेंसियों की रडार पर रहेंगे. सत्ता पर एकनाथ शिंदे काबिज हैं और सरकार का रिमोट बीजेपी के पास है तो ऐसे डर बेवजह नहीं हैं. जाहिर है शिवसेना के लिए और खुद ठाकरे परिवार के लिए ये बेहद मुश्किल दौर है.  

(रिपोर्ट- नीता कोल्हत्कर) 

ये भी पढ़ें

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement