
खाता के ले जाता...
मेरे भाई को चार खाने को और आठ ले जाने को...
पैसे कि फिक्र नाको, खाते में लिख देता हूं...
ये मीठे बोल हैं अंसार चाचा के... उन अंसार चाचा के जो अब ‘वड़ा पाव चाचा’ के नाम से मशहूर हैं. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के समनापुर को चाचा के ‘नसीब वड़ा पाव सेंटर’ ने अलग पहचान दिला दी है.
यहां वड़ा पाव खाने के शौकीनों की लंबी कतार देखी जा सकती हैं. ये चाचा की सेल्समैनशिप क्वालिटी है या मीठा बोलने का हुनर, जो एक बार उनके पास आता है, उनके बोलने के स्टाइल का मुरीद बन कर रह जाता है. किसी को एक ही वड़ा पाव खाना हो तो वो भी दो खाकर जाता है. लंबी कतार से कोई ग्राहक परेशान दिखता है तो चाचा आवाज लगाते हैं कि “अरे सर को बहुत खास मुहब्बत वाला वड़ा पाव देना.”
हर दिन यहां डेढ़ हजार से दो हजार वड़ा पाव की बिक्री होती है. किसी भी और जगह सामान्य तौर पर वड़ा पाव की कीमत 15 से 20 रुपए होती है. लेकिन चाचा ने अपनी दुकान पर वड़ा पाव के दाम 10 रुपये रखे हुए हैं. मीठी बोलने वाले अंसार चाचा के मुताबिक अधिक मुनाफा कमाना उनका मकसद नहीं है, ऊपर वाला उन्हें अभी ही बहुत दे रहा है. उनका फंडा है जिससे भी मिलो, जिससे भी बात करो, मुहब्बत के साथ करो. वडा पाव चाचा के सेल्स के हुनर को देखते हुए कई कॉलेज उन्हें अपने यहां लेक्चर के लिए बुलाते हैं, जिससे कि छात्र उनसे मार्केटिंग के गुर सीख सकें. हैरानी की बात है कि अंसार खुद सिर्फ दूसरी क्लास तक ही पढ़े हैं.
67 साल के चाचा का पूरा नाम मोहम्मद अंसार है. समनापुर उनके पैतृक गांव संगमनेर से महज चार किलोमीटर की दूरी पर ही है. बचपन में बहुत जल्दी ही उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. 7 साल की छोटी उम्र में ही उनकी अम्मी का साया उनके सिर से उठ गया. अब्बू बीड़ी बनाने का काम करते थे लेकिन उससे चार बच्चों वाले घर का गुजारा नहीं चलता था. ऐसे में सभी बच्चों से कुछ न कुछ काम करने के लिए कहा गया. अंसार चाचा ने बचपन में संगमनेर के एक होटल से नौकरी की शुरुआत की. उन्हें वेटर के काम के लिए तब हर दिन एक रुपया मिलता था. सुबह-सुबह जल्दी उठकर वो चार किलोमीटर चल कर संगमनेर पहुंचते.
अंसार चाचा की मेहनत जल्दी रंग लाई. होटल मालिक उनके काम करने के ढंग से बहुत खुश था. इसी होटल मालिक ने उन्हें सिखाया कि प्यार से बात करने से गुस्सैल ग्राहकों को भी शांत किया जा सकता है. ये मजबूरी थी या कुछ और, लेकिन अंसार चाचा ने छोटी उम्र से ही मानव स्वभाव को बहुत बारीकी से समझना शुरू कर दिया. यानी उन्होंने पढ़ाई की किताबों की जगह अनुभव को अपनी ढाल बनाया. ये बात दूसरी है कि अंसार ने अपने इकलौते बेटे को ग्रेजुएशन तक पढ़ाई कराई.
अंसार चाचा ने 1977 तक होटल में वेटर की नौकरी की. इसके बाद अंसार चाचा ने आइस कैंडी बेचने से लेकर कबाड़ के धंधे तक में हाथ आजमाया. लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ आ गया कि वड़ा पाव जैसा खाने का कोई सामान बेच कर ही हर दिन नियमित कमाई की जा सकती है. 1978 में अंसार चाचा ने वड़ा पाव के लिए ठेले से शुरुआत की. यहीं से उनका नसीब बदलना शुरू हुआ. शायद इसीलिए उनकी दुकान का नाम नसीब वड़ा पाव सेंटर है. अब उनके पास गाड़ी-बंगला सभी कुछ है लेकिन उन्होंने पारंपरिक अंदाज में ही वड़ा पाव बेचना जारी रखा हुआ है. अब उन्होंने यहीं साथ में एक और होटल खोलने का फैसला किया है जहां सिर्फ शुद्ध शाकाहारी खाना मिला करेगा. नए होटल का नाम नसीब पुरोहित रखा गया है. इसकी देखभाल का जिम्मा अंसार चाचा ने राजस्थान के एक पुरोहित को सौंपा है.
(अहमदनगर से रोहित वालके के इनपुट के साथ)