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NCP से जमीन पर टकराव, बड़े मंत्रालय ना मिलने की टीस, क्या इसलिए बागी हुए शिवसेना विधायक?

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के कई कारण माने जा रहे हैं. एक कारण तो एनसीपी से जुड़ा हुआ भी दिख रहा है. शिवसेना का एक गुट इस बात से खासा नाराज चल रहा था कि सरकार में एनसीपी को ज्यादा तवज्जो दी गई, बड़े मंत्रालय दिए गए.

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट
मौसमी सिंह
  • मुंबई,
  • 22 जून 2022,
  • अपडेटेड 8:35 PM IST

महाराष्ट्र में उद्धव सरकार का सत्ता में बने रहना मुश्किल साबित हो रहा है. एकनाथ शिंदे के बड़े दावे और लगातार हो रही बैठकों के दौर ने जमीन पर महा विकास अघाडी की डगर को बीच मझधारमें फंसा दिया है. सवाल ये उठने लगा है कि आखिर किन कारणों से शिवसेना के विधायक बागी हो गए? जिनकी पार्टी से मुख्यमंत्री बनाया गया, उसी के विधायक अब अलग होने की बात क्यों करने लगे?

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अब कहा जा रहा है कि कहने को शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से जमीन पर टकाराव की स्थिति कई मौकों पर देखने को मिली. एनसीपी के साथ तो शिवसेना की जमीन पर जबरदस्त टक्कर दिखी. पश्चिमी महाराष्ट्र में तो शिवसेना के विधायक खासा नाराज बताए गए. बताया गया कि जिन क्षेत्रों में शिवसेना के ज्यादा विधायक रहे, वहां गार्जियन मिनिस्टर किसी एनसीपी नेता को बना दिया गया. आरोप लगने लगे कि विधायकों की मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है.

दावा तो ये भी हुआ कि कई मौकों पर विधायकों को जरूरी फंड तक उपलब्ध नहीं करवाए गए. उस स्थिति में एकनाथ शिंदे ने उन विधायकों को जरूरी फंड भी दिलवाए और कई योजनाओं का ऐलान भी किया. इसके अलावा कोरोना काल के दौरान भी एकनाथ शिंदे ने सांसदों को शहरी विकास मंत्रालय की तरफ से फंड दिलवाए थे, ऐसा कर उन्होंने कई शिवसैनिकों का दिल जीत लिया था.  

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वैसे बागी विधायकों की नाराजगी की एक वजह ये भी मानी जा रहा है कि सरकार में एनसीपी को ज्यादा बड़े मंत्रालय दे दिए गए. फिर चाहे वो वित्त मंत्रालय रहा हो या फिर सिचाई मंत्रालय. ऐसे में टकराव की स्थिति लगातार और कई बार पैदा होती रही. इसके अलावा कुछ मौकों पर बागियों को ऐसा भी प्रतीत हुआ कि एनसीपी, शिवसेना पर हावी होने की कोशिश कर रही है. 

अब अगर एनसीपी जमीन पर ज्यादा सक्रिय दिख रही थी, तो इसके भी अपने कारण माने जा रहे हैं. सरकार बनने से पहले एनसीपी को उस समय बड़ा झटका लगा था जब अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया और अगले दिन डिप्टी सीएम के रूप में शपथ भी ले ली. वो सरकार तो नहीं चल पाई, लेकिन एनसीपी को एक संदेश स्पष्ट मिल गया था. उन्हें अपने तमाम विधायकों, कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की जरूरत थी. इसी वजह से जमीन पर संगठन को मजबूत करने पर पूरा जोर दिया गया.

माना जा रहा है कि इन्हीं सब गतिविधियों ने जमीन पर कुछ शिवसैनिकों को नाराज कर दिया, वे अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से ही खफा चलने लगे. खुलकर किसी ने कुछ नहीं बोला, लिहाजा उद्धव ठाकरे भी इस संकट को नहीं भाप पाए. लेकिन अब स्थिति अलग है, सरकार बचाने की जरूरत है, कर पाते हैं या नहीं, इस पर सभी की नजर रहेगी.

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