
राजनीतिक शतरंज के माहिर खिलाड़ी शरद पवार अपने ही दांव में बुरे तरीके से फंस गए हैं. इस बार मुश्किल और मुसीबत पहले से ज्यादा बढ़ी है. शरद के 'विश्वसनीय' भतीजे अजित पवार ने एक चाल में उनकी सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया है. इस बार अजित पहले से ज्यादा चतुर और माहिर खिलाड़ी बनकर उभरे हैं. यही वजह है कि उन्होंने पहले से ज्यादा बड़ी बगावत की और किसी को कानोंकान खबर नहीं होने दी. एक घंटे के अंदर पार्टी के बड़े नेताओं समेत एनडीए गठबंधन में शामिल हो गए और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन गए हैं.
अजित की इस बगावत से खुद एनसीपी चीफ शरद पवार हैरान देखे जा रहे हैं. क्योंकि उनके सामने 2024 का लोकसभा चुनाव है. उसी साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव. शरद के पास देश की विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की जिम्मेदारी है. महाविकास अघाड़ी को संभालने की चुनौती है और घर-परिवार और पार्टी को भी टूटने से बचाने का नया संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में देखना होगा कि साढ़े तीन साल बाद दोबारा आई इस चुनौती और संकट से शरद पवार किस तरह निपटने की तैयारी करते हैं? जानिए तीन बड़ी चुनौतियां...
1. विपक्ष को एकजुट करने की जिम्मेदारी
एनसीपी चीफ शरद पवार (82 साल) के पास विपक्ष को एकजुट करने की जिम्मेदारी है. वो यूपीए गठबंधन में शामिल दलों में सबसे सीनियर नेता हैं. यही वजह है कि सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार भी शरद पवार को वरीयता देते आए हैं. हाल ही में पटना में बुलाई गई बैठक में शरद पवार समेत विपक्षी दलों का महाजुटान हुआ था. इसमें 15 दल शामिल हुए थे और अगली बैठक शिमला में आयोजित करने का ऐलान किया था. हालांकि, चार दिन पहले शरद पवार ने बैठक के स्थान बदलने के बारे में जानकारी दी और घोषणा की थी कि अगली बैठक बेंगलुरु में होगी. ये बैठक 13 और 14 जुलाई को होगी. शरद के पास विपक्षी दलों और नेताओं में सांमजस्य बनाने की जिम्मेदारी है.
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यही वजह है कि पवार सभी दलों का एकसाथ लेकर चलने की वकालत करते आ रहे हैं. अगले महीने होने वाली बैठक में विपक्षी एकता के फॉर्मूले को अंतिम रूप दिया जाएगा. दूसरी बैठक में सीट बंटवारे पर चर्चा होगी. अगली बैठक में तय होगा कि कौन कहां लड़ेगा. शरद पवार के सामने विपक्षी दलों में सीट शेयरिंग, स्थानीय मतभेदों को दूर करने की चुनौती है.
2. महाराष्ट्र में MVA को बचाने की चुनौती?
महाराष्ट्र में 2019 के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था. लेकिन, सीएम पद को लेकर रार होने पर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था. ऐसे में किसी भी पार्टी के पास बहुमत का जादुई नंबर नहीं था. इस बीच, 23 नवंबर 2019 को अजित पवार ने एनसीपी से बगावत की और सुबह 8 बजे राजभवन में डिप्टी सीएम की शपथ ली थी. देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए थे. हालांकि, तुरंत बाद एनसीपी चीफ शरद पवार ने मोर्चा संभाला और अजित को मना लिया था. शरद पवार ने ही बीजेपी के खिलाफ नया मोर्चा बनाया और उसमें कांग्रेस, शिवसेना समेत छोटे दलों को एकजुट किया.
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943 दिन चल पाई थी MVA सरकार
शरद पवार ने ही सरकार बनाने का फॉर्मूला तय किया और शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का महाविकास अघाड़ी (एमवीए) नाम से गठबंधन बनाया. पवार ने ऐलान किया कि MVA की तरफ से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे. अजित को डिप्टी सीएम बनाया गया था. हालांकि, यह सरकार 2 साल 213 दिन ही चल पाई और जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर सरकार गिरा दी. इस बीच, सरकार और गठबंधन के बीच शरद पवार को ही सेतु की तरह काम करते देखा गया. वो सभी दलों को साथ लेकर आगे बढ़ते देखे गए. विवादों को भी शरद पवार के माध्यम से सुलझाया गया.
MVA को बचाने की चुनौती?
महाविकास अघाड़ी इस समय नगर निकाय, लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर रणनीति बना रहा था. सीट शेयरिंग को लेकर शरद पवार को बीच का रास्ता निकालना था. तीनों ही दलों ने पवार को एक तरह से इसकी जिम्मेदारी सौंप रखी थी. लेकिन, अजित के झटके ने शरद की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.
3. घर टूटा... अब पार्टी के टूटने पर संकट बढ़ा
शरद पवार के भतीजे अजित पवार का सत्ता के प्रति मोह 2019 में ही देखने को मिल गया था. लेकिन, तब चाचा शरद पवार मनाने में कामयाब हो गए थे. यही वजह है कि शरद ने अजित को डिप्टी सीएम बनाकर खुश करने की कोशिश की थी. हालांकि, उसके बाद पार्टी के कार्यक्रमों और बैठकों में अजित की जब-तब नाराजगी की खबरें आना कम नहीं हुईं. पिछले साल दिल्ली में एनसीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अजित के नाराज होकर चले जाने की बात सामने आई. हालांकि, पार्टी ने तब सफाई दी और एकजुट होने का संदेश दिया.
संगठन में बड़ी जिम्मेदारी ना मिलने से नाराज थे अजित
अजित को एमवीए गठबंधन में नेता प्रतिपक्ष बनाकर साधने की कोशिश की गई थी. हाल ही में अजित को लेकर फिर नाराज होने की खबरें तब आईं, जब शरद पवार ने इस्तीफे का ऐलान किया और बाद में अपना फैसला वापस ले लिया. उसके बाद पार्टी में दो नए कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को बनाकर चौंका दिया. कहा जा रहा था कि अजित को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है, इससे वो नाखुश हैं. महाराष्ट्र का प्रभारी भी सुप्रिया सुले को बनाया गया था.
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अजित ने दूसरी बार परिवार और पार्टी तोड़ी
माना जा रहा था कि शरद पवार अब अजित की जगह अपनी बेटी सुप्रिया सुले को ज्यादा तरजीह दे रहे थे. वो सुप्रिया को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते थे, अजित पवार भी यह बात बाखूबी जानते थे, इसलिए उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना ज्यादा बेहतर समझा और एनसीपी को तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया. अजित पवार को ऐसा लगने लगा कि उन्हें अब कम तरजीह मिल रही है. यही वजह है कि उन्होंने साढ़े तीन साल के अंदर दूसरी बार घर, परिवार और एनसीपी को तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने का फैसला किया.
बैठक छोड़कर चली गईं थीं सुले
अजित ने रविवार को 40 विधायकों का समर्थन होने का दावा किया है. अजित समेत 9 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली है. अजित ने रविवार को बैठक बुलाई थी. इस बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले भी शामिल हुईं. हालांकि, सुले बैठक छोड़कर चली गईं थीं.
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तो शरद पवार के हाथ से निकल जाएगी पार्टी और सिंबल
अजित की बगावत के बाद शरद पवार के सामने पार्टी को बचाने का भी संकट खड़ा हो गया है. अगर दो तिहाई विधायक अजित के साथ चले आते हैं तो पार्टी पर शिवसेना की तरफ संकट आ सकता है. महाराष्ट्र में एनसीपी के 53 विधायक हैं. ऐसे में दो तिहाई बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत होगी. वहीं, अजित गुट ने फिलहाल अभी 40 विधायकों का समर्थन देने का दावा किया है. अगर अजित जादुई आंकड़ा पार कर लेते हैं तो शरद पवार के हाथ से पार्टी और चुनाव चिह्न दोनों छिनने का खतरा बढ़ जाएगा.
बाजी पलटने के माहिर खिलाड़ी हैं शरद पवार
शरद पवार को राजनीति में आशावादी और माहिर खिलाड़ी के तौर पर देखा जाता रहा है. साल 2019 में शरद पवार महाराष्ट्र में सरकार बनाने के शह-मात के खेल में बीजेपी को सियासी मात दे चुके हैं, लेकिन इस बार चुनौती काफी बड़ी है. इस संकट के बाद शरद पवार के सामने महा विकास अघाड़ी, पार्टी और परिवार को बचाना सबसे अहम है. शरद पवार इस बात को बखूबी तरीके से जानते हैं कि अजित अगर बीजेपी-शिंदे सरकार में शामिल हो गए हैं तो उनके सामने खुद को साबित करने और विधायकों को तोड़ने की बड़ी चुनौती रहेगी. ऐसे में शरद पार्टी को साधने लिए कोई बड़ा दांव चल सकते हैं.
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82 साल के पवार 63 साल से राजनीति हैं. वे 1 मई 1960 से राजनीति में सक्रिय हैं. पिछले छह दशकों में महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स उनके इर्द-गिर्द ही घूमते देखी गई है. पवार 'फैक्टर' को सबसे अहम फैक्टर माना जाता रहा है. 1978 में शरद पवार 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे. वे चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और करीब एक दशक तक केंद्र में मंत्री रहे हैं. कहा जाता है कि बाजी पलटने में पवार को महारत हासिल है.
राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर लड़ाई?
माना जाता है सुप्रिया सुले पहले पूरे प्रदेश की राजनीति में ध्यान नहीं देती थीं. वे अपने संसदीय क्षेत्र बारामती में ही सक्रिय रहती थीं, लेकिन 2019 के चुनाव के बाद जिस तरह से सुप्रिया सक्रिय हुईं और पिता के साथ कंधे से कंधे मिलाकर साथ देते नजर आईं. 2 मई को पार्टी के स्थापना दिवस पर शरद पवार ने सुप्रिया को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर बड़ा संदेश भी दे दिया. इसी के साथ यह सवाल उठने लगा था कि एनसीपी में शरद पवार का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन होगा? अजीत पवार या सुप्रिया सुले?
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अजित ने उठाए थे शिवसेना से गठबंधन पर सवाल
दरअसल, शरद पवार पहले से ही चौकन्ना थे. 22 अप्रैल 2023 को अजित पवार ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी थी. उन्होंने कहा था, मैं 100 परसेंट सीएम बनना चाहता हूं. इसके लिए 2024 का इंतजार क्यों करना? अजित का ये बयान ऐसे समय पर आया है जब कहा जा रहा था कि NCP में फूट पड़ सकती है. उन्होंने महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन को लेकर कहा था कि हम पहले धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशील होने के बारे में बात करते थे, लेकिन 2019 में कांग्रेस और NCP ने सरकार बनाने के लिए शिवसेना के साथ गठबंधन किया और हम धर्मनिरपेक्षता की लाइन से अलग हो गए. इसकी बड़ी वजह ये थी कि शिवसेना एक हिंदुत्व पार्टी रही है.
2019 में भी अजित ने बगावत की थी
बताते चलें कि अजित पवार साल 2019 में भी चर्चा में आए थे. तब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आए थे और बीजेपी गठबंधन को बहुमत मिला था. लेकिन, उद्धव ठाकरे (शिवसेना) ने खुद को सीएम बनाने की शर्त रख दी, जिसके बाद यह गठबंधन मुश्किलों में आ गया. इस बीच, 23 नवंबर 2019 को अजित पवार ने एनसीपी से बगावत की और सुबह 8 बजे राजभवन में डिप्टी सीएम की शपथ ली थी. देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए थे. हालांकि, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मोर्चा संभाला और और NCP के विधायकों को एकजुट कर लिया था. उन्होंने पहले अजित को मनाया. फिर सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए. कोर्ट ने 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने का आदेश दिया. लेकिन सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही फडणवीस ने पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि NCP ने अब सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ये सरकार सिर्फ तीन दिन चल सकी.
एनसीपी के इन नेताओं ने शपथ ली
अजित गुट का दावा है कि उनके पास 40 एनसीपी विधायकों का समर्थन है. अजित समेत 9 विधायक मंत्रीपद की शपथ ले चुके हैं. इनमें धर्मराव अत्राम, सुनील वलसाड, हसन मुश्रीफ, दिलीप वलसे, छगन भुजबल, धनंजय मुंडे और महिला विधायक अदिति तटकरे का नाम शामिल है. प्रफुल्ल पटेल ने भी एनसीपी का साथ छोड़ा है. एनसीपी के 6 एमएलसी भी अजित के साथ जाने की चर्चा हैं.
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बगावत के बाद क्या बोले शरद पवार?
शरद पवार ने पुणे में प्रेस कांफ्रेंस की और कहा, पहले भी ऐसी बगावत हो चुकी है. लेकिन मैं फिर से पार्टी खड़ी करके दिखाऊंगा. कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया था कि महाराष्ट्र के मुख्य सहकारी बैंक में भारी भ्रष्टाचार है. एनसीपी के नेता जो आज बीजेपी सरकार में शामिल हुए हैं, बताते हैं कि भ्रष्टाचार साफ हो गया है और मैं इसके लिए पीएम को धन्यवाद देता हूं. अगले कुछ दिनों में लोगों को पता चल जाएगा कि इन एनसीपी नेताओं ने हाथ क्यों मिलाया है. जो लोग शामिल हुए हैं उन्होंने मुझसे संपर्क किया है और कहा है कि उन्हें बीजेपी ने आमंत्रित किया है. उन्होंने कहा है कि उनका रुख अलग है.
अजित पवार ने क्या कहा है...
डिप्टी सीएम बनने के बाद अजित पवार ने प्रेस कांफ्रेस की और कहा, उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस के सभी लोगों का आशीर्वाद मिला हुआ है. राष्ट्रवादी कांग्रेस में सब आते हैं. सभी विधायक उनके साथ हैं. सभी का मतलब सभी साथ हैं. उन्होंने आगे कहा कि हम बहुत अच्छी तरह से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाएंगे. हम अलग-अलग क्षेत्रों में भी पार्टी वर्कर्स से मिलेंगे. जब से देश आजाद हुआ, तब से देखा गया कि देश नेतृत्व के साथ आगे बढ़ता है. पहले नेहरूजी थे, पटेल थे. उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री का नेतृत्व आया, उसके बाद फिर इंदिराजी का नेतृत्व आया. इमरजेंसी के बाद इंदिराजी के नेतृत्व में ही सरकार बनी. उसके बाद राजीवजी की सरकार बनी.
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अजित ने कहा, 1984 के बाद देश में कोई भी एक ऐसा नेता जिसके नेतृत्व में देश आगे गया, ऐसा नहीं हुआ. अलग-अलग गुट में सरकार बनी. आपने पिछले 9 साल में देखा होगा कि मोदी जी के नेतृत्व में सरकार विकास के लिए कार्य कर रही है. विदेश में भी उनको खूब सम्मान मिला. सब ठीक तरह से चालू है. सामने वाले विरोधी केवल अपने-अपने राज्य का देखते हैं. विपक्ष का कोई नेता जो नेतृत्व कर सके, मुझे नहीं दिखता है.
उद्धव के हाथ से चला गया सिंबल और पार्टी
बता दें कि महाराष्ट्र में शिंदे गुट के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन होने से उद्धव को बड़ा झटका लगा था. चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना था और पार्टी का सिंबल तीर-धनुष देने का फैसला लिया था. जबकि उद्धव को UBT शिवसेना का नया नाम और सिंबल दिया था. ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए याचिका दायर की थी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.